शनिवार, 28 नवंबर 2009

तुम चलो हम चलें सावन की घटा चले......

पिछ्ले कई दिनों से वन्दे मातरम पर घमासान है, उस पर मुतवातिर इसरार और इंकार, मुझे तो दोनों ही पक्ष पूर्वाग्रही लगते हैं, देखा जाये तो राष्ट्रवाद को नागरिकों के सच्चे भावनात्मक समर्पण (दिली ताईद) की जरुरत है, क्या फर्क पड़ेगा अगर मैं किसी सांकेतिकता या प्रतीकवाद के आगे सर न भी झुकाऊं तो ?...और अगर बेमन से ही सही किसी प्रतीकात्मकता का अनुगमन कर भी लूं तो यह मेरी राष्ट्र के प्रति निष्ठा का पर्याय कैसे हुआ ? बचपन से लेकर अब तक वन्दे मातरम गाते हुए कभी नहीं सोचा कि मैं उसे खाना पूर्ति / रस्म अदायगी के लिए गा रहा हूँ या दिल से ? ऐसा सोचने का औचित्य भी नहीं था, पर पिछले दिनों इस बारे में जितना पढ़ा, जितना सुना उससे लगा कि, वन्दे मातरम गाते हुए मेरे दिल में कोई ख्याल भी कहाँ था कि मैं इसे देशभक्ति के प्रमाण पत्र के लिए गाकर अच्छा कर रहा हूँ या फिर इसे गाते हुए खुदा की जात में किसी और को शरीक कर बुरा कर रहा हूँ ! यानि कि अब तक जितना भी गाया क्या वह देश भक्ति के प्रमाणपत्र के लिए गाया ? और अगर गा भी दिया तो उससे मेरा खुदा मुझसे नाराज क्यों कर हुआ होगा ? कहने का मकसद ये है कि अगर मेरा अपना दिल साफ है तो मुझे किसी और से सर्टिफिकेट की दरकार कहाँ है और अगर मेरे अन्दर कोई बदनीयती है तो उसे कोई दूसरा पकड़ेगा कैसे ? बात दिल की है...जज्बात की है...जेहनी समर्पण की है इसमें सांकेतिकता / दिखावा कहाँ से घुस गए और इससे बढ़कर ये कि मैं कौन होता हूँ किसी बन्दे को देशभक्त या देश द्रोही करार देने वाला ? इसी तर्ज़ पर कोई दूसरा कौन होता है मुझे देशभक्त या देशद्रोही करार देने वाला ? मान लीजिये कोई व्यक्ति अपने मन में देश के प्रति कुत्सित विचार रख कर वन्दे मातरम गा रहा हो तो उसकी पहचान कैसे की जाएगी और ये कि वन्दे मातरम गाने वाले हर व्यक्ति के ख्यालात नेक हैं इसकी क्या गारंटी है ? उदाहरण के तौर पर हमारे देश में बड़ों की इज्जत / प्रतिष्ठा की एक सांकेतिक परंपरा है कि उनके पैर छुए जायें लेकिन परंपरा का परिपालन बलपूर्वक तो नहीं करवाया जाता ना ? आशय ये कि लोग दिल से इज्जत करें दिखावे में पैर छुयें या ना छुयें ! उम्मीद है कि आप भूले नहीं होंगे कि इसी नेक परम्परा की आड़ में राजीव गाँधी की जान ले ली गई थी ! चरण स्पर्श की सांकेतिकता के पीछे, धानु के मन इज्जत थी या हत्या का विचार ये तो बाद में पता चला !

इस मिसाल को देने का अर्थ ये नहीं है कि चरण स्पर्श की सांकेतिकता बुरी है बल्कि ये कि 'सांकेतिकता' उसका परिपालन करने वाले की नेक चलनी का प्रमाण नहीं हुआ करती ! मैंने अपने आलेख में लिखा कि मैं वन्दे मातरम गाता रहा हूँ पर उसके गायन को देशभक्ति और देशद्रोह से जोड़ने के बारे में कभी सोचा नहीं इसलिए अगर कोई ये कहने लग जाये कि आप वन्दे मातरम गाने वाले राष्ट्रभक्त मुसलमान हैं तो मेरे लिए डूब मरने की बात हो जाएगी क्योंकि इसे गाते हुए मैंने किसी सर्टिफिकेट की अपेक्षा नहीं की है और विशेषकर इसे गाते हुए किसी दूसरे व्यक्ति से तो बिलकुल भी नहीं जबकि मुझे पता ही नहीं कि उसके मन में क्या है ? मेरे लिए देश भक्ति और राष्ट्रवाद, राष्ट्र के प्रति मेरा मानसिक समर्पण है तथा वह किसी दिखावे किसी प्रतीकात्मकता का मोहताज नहीं है ! मेरे ख्याल से ये बेहद फ़िल्मी अंदाज है कि मुस्लिम / पर्सियन / हिन्दू की पहचान जताने के लिए टोपियों, लुंगियों और तिलक जैसे संकेतों का प्रयोग किया जाये प्रेमी और प्रेमिका के प्रेम को तोता मैना या फूलों की डालियों के आसरे अभिव्यक्त किया जाये ! मुझे तो यह प्रदर्शन काफी भोंडा लगता है ! मैं सोचता हूँ कि धर्म /आस्था/ प्रेम का वास्ता दिल से है ! अगर ये दिल के अन्दर नहीं तो संकेतों का क्या मतलब...बस ऐसे ही राष्ट्र वाद और देश प्रेम मेरे दिल का मामला है...मैं रहूँ या न रहूँ देश का इकबाल बुलंद हो...तुम रहो या न रहो देश का इकबाल बुलंद हो, हम रहे या न रहें देश का इकबाल बुलंद हो ! मेरा देश मेरे कपड़ों, मेरे आभूषणों, जिस्म पर लगे गोदने वगैरह वगैरह में नहीं मेरे दिल में बसता है !
फिलहाल दिल से मजबूर होकर गा रहा हूँ...तुम चलो हम चलें सावन की घटा चले...

6 टिप्‍पणियां:

  1. रवींद्रनाथ टैगोर की याद आती है जिनका मानना था कि राष्ट्रवाद वैमनस्य उत्पन्न करता है...राष्ट्रीयता की अपेक्षा अंतर्राष्ट्रीयता वांछित है.

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  2. मुद्दा बहुत उलझा हुआ है या कहिए उलझा दिया गया है।
    घुघूती बासूती

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  3. vandematram par utthe vivad se main soch me pad gaya hoon ke hum kis ore jaa rahe hain, jab samoocha vishwa vikas ki raftar pakadne ki koshish kar raha hain, tab hum ye sochkar lad rahe hain ki vandematram padha jana chahiye ya nahi? Hum apni nayi peedhi ko kya sirf vivad aur dange denge ya unhe sunhara bhavishya? Jamat-e-islami hind aur vishwa hindu parishad/r.s.s. ek hi sikke ke do pahlu hain.Is mudde par hue ho-halle se to lagta hain ki bharat me koi kuposhan ka shikar nahi, bharat me garibi nahi hain.

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