मंगलवार, 27 अक्तूबर 2009

वो प्रिस्क्रिपशन और महारानी ......

दिसम्बर महीने की कडकडाती ठण्ड , अपने बिस्तर से बाहर आते ही अहसास हो जाता कि शहर की सर्व सुविधायुक्त जिन्दगी और बस्तर के किसी गांव की काम चलाऊ झोपडी में जीवन गुजारने के दरम्यान फासला कितना लंबा है ! मैं जल्द से जल्द मित्र के फील्ड वर्क से निजात पाकर वि.वि.लौटना चाहता था पर दोस्त को पांच रुपये प्रति की दर से प्राप्त मुर्गों को उधेड़ने और लीलने से फुर्सत कहां थी ! उनके लिए चिकन आहार प्रथम और फील्ड वर्क द्वितीय प्राथमिकता बन चला था , सो काम को लंबा...और लंबा खींचते जाते ! इस रवैय्ये से उकता कर मैंने तय किया कि इन्हें यहीं छोड़ कर मुझे जाना ही होगा ! सच कहूं अगर कैरियर की चिंता नहीं होती तो शायद गांव वालों की मोहब्बत में मैं भी रम गया होता पर कैरियर ...? उनके पास पैसा भले ही ना हो पर स्नेह....प्रेम ...अकूत ....और संबंधों को बनाये रखने का ज़ज्बा बेजोड़ था ! तय ये हुआ कि मुझे कम से कम एक हफ्ता और रुकना होगा ..और नियति...संभवतः वो भी मुझे नए पाठ पढाना चाहती थी ! लगा कि सर्दी के साथ हल्का सा बुखार है लक्षण मलेरिया के थे इसलिए फर्स्ट एड किट से कुरोसिन टेबलेट्स लेना शुरू कर दिया पर व्याधि दवाओं पर भारी पड़ रही थी ! गांव वालों का ख्याल था कि सुबह सुबह या ...देर रात , जंगल आने जाने के दौरान किसी बुरी आत्मा नें मुझे जकड लिया है ! इसलिए वो देशज चिकित्सा पर जोर देने लगे ,मैंने कहा मित्रो मैं जगदलपुर जाकर डाक्टर से मिलना चाहूँगा ! उन्होंने कहा पहले हमारी विधि से चिकित्सा होगी ....हुई भी ! पर कोई भूत हो तो भागे भी ! थक हार कर उन्होंने बैलगाडी पर लाद कर मुझे महारानी अस्पताल जगदलपुर में पहुँचा दिया ! उन दिनों इस जिला अस्पताल में डाक्टरों की गुटबंदी और पारस्परिक वैमनस्य के किस्से हवा में थे ! अब मरीज भी मैं और एकमात्र रिश्तेदार भी मैं , इसलिए ख़ुद को भरती करवाया डाक्टरों को कोई जल्दी नहीं थी इसलिए तक़रीबन एक घंटे बाद मुझे पेइन्ग वार्ड में जगह मिली ! पहली डोज रेसोचिन का एक इंजेक्शन और फ़िर ग्लूकोज चढाने का सिलसिला चालू हुआ ,राउंड पर जो भी डाक्टर आता पिछले डाक्टर की दवाएं खारिज कर नई दवाईयां लिख देता ! बैल गाड़ी सामने सड़क पर खड़ी थी ! नर्स ( मजबूरी में नर्स कह रहा हूँ ) को इस पर भयंकर आपत्ति थी ! मैंने मित्रों से कहा ठीक है इसे और दूर खड़ा कर दो और तुम बारी बारी से मेरे पास आते जाते रहना दोपहर से रात हो चली थी पास में कोई था नहीं ग्लूकोज ख़त्म होने के करीब था मित्र नें नर्स को बुलाया वह देर से आई तब तक मेरा खून ग्लूकोज की बोतल में वापस जाने की कगार में था ! आते ही मित्र पर चढ़ दौडी , समय पर बता भी नहीं सकते थे ? मैंने कहा सिस्टर ये हिन्दी नहीं जानता पर आपको बुलाने तो गया था .. आप सुनती कहां हैं ,वह बडबडाती रही और झल्लाहट में दूसरी बोतल चढाने का उपक्रम करने लगी ,मैंने मना कर दिया तो मुझ पर बरस पड़ी ! मैंने कहा डाक्टर को बुलाइए उसने कहा सुबह मिलेंगे ! मैंने कहा ठीक है ! इलाज भी सुबह ही होगा अभी नहीं ....वो मुझे मेरे हाल पर छोड़ कर चली गई ! जैसे तैसे सुबह हुई और राउंड पर निकले डाक्टर से मैंने कहा दवा आपने लिख दीं हैं और अब मैं डिस्चार्ज होना चाहता हूँ ! दवाएं मैं घर में ले लूँगा उन्होंने कहा आप बीमार हैं ऐसे कैसे डिस्चार्ज कर दे ? मैंने कहा मत करिए मैं उठ कर चल दूँगा , उन्होंने कहा ठीक है ,अपनी रिस्क पर जाइये और फ़िर मुझे डिस्चार्ज कर दिया ,सलाह दी दवाएं समय पर लेना ,मैंने कहा डाक्टर साहब अब तक जितने भी डाक्टर राउंड पर आए उनमें से हरेक नें पिछले डाक्टर को गालियां दीं और प्रिस्क्रिप्शन ( नुस्खे ) पर नई दवाईयां लिख डालीं इसका मतलब समझायेंगे मुझे ...वो मौन थे .....फ़िर बोले जाइये सभी दवाईयां एक ही हैं ! शुरू वाली ही ले लीजियेगा ! मैं गांव वापस आ गया और कुछ दिनों में दवाओं की कृपा से ठीक भी हो गया वरना वो नर्स ? ये डाक्टर ?
ये घटना १९८० की थी ! अब जगदलपुर का महारानी अस्पताल मेडिकल कालेज बन गया है ...२९ - ३० वर्षों के बाद इतनी तरक्की सुनकर अच्छा लगता है ! पर आप विश्वास करेंगे ? वो प्रिस्क्रिप्शन आज भी मेरे पास सुरक्षित है और महारानी अस्पताल अब भी उतना ही बीमार है जितना २९- ३० बरस पहले था !
बस्तर.... आदिवासी ....तीन दशक ...महारानी अस्पताल ..भला जो ख़ुद बीमार हो वो दूसरों का इलाज क्या करेगा ?

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