बुधवार, 21 अक्तूबर 2009

ये कथा सुकुल जी से शुरू जरुर होती है पर इसका अन्त ...

कथा से पूर्व :
इस संस्मरणात्मक कथा के पात्रों की निजता का सम्मान करते हुए , उनके वास्तविक नामों में किंचित फेर बदल कर दिया गया है , इसके बावजूद भी यदि कोई मित्र दिल पे ले ले तो उसकी मर्जी !.... और हाँ ये कथा सुकुल जी से शुरू जरुर होती है पर इसका अन्त ......?
बसंत १९७७ :
ग्रेजुएशन का आखिरी साल भी लगभग तमाम हुआ और चंद रोज़ बाद ही सारे दोस्त बिखर जायेंगे , मैं , समीर और सुकुल जी सबके रास्ते अलग अलग , फ़िर कौन कहां जाएगा अभी तक तय नहीं हुआ , सुकुल जी बेचैन हैं , बेइंतहा बेचैन , इसलिए नहीं कि उनके यार उनसे बिछड़ रहे हैं बल्कि इसलिए कि आभा ,रोजी , हुस्नेआरा और दीप्ति के बिना जिन्दगी कैसे गुजरेगी ! सुकुल जी से अपने याराने की मियाद भले ही दशाब्दियों में गिनी जाती हो पर वो ख़ुद पिछले तीन बरसों से इन सखियों के अनन्यतम शैदाई हैं ! उनके एक इशारे पर जमीन पर बिछ जाने को बेताब सुकुल जी बेहतरीन स्कालर ,शानदार स्पोर्ट्समेन ,सलीकेमंद नौजवान होने या दिखने का कोई मौका नहीं छोड़ते ! सखियां इस सबसे बेपरवाह , बेखबर कि सुकुल जी शादी -ओ- खाना आबादी के जश्न के ख्याली पुलाव पकाते / खाके खींचते , मेरा और समीर का जीना दूभर किए हुए हैं ! कान पक गए हम दोनों के ...तेरी भाभी आभा , तेरी भाभी रोजी ...तेरी भाभी ......नख शिख वर्णन , साथ में ये हिदायत भी कि खबरदार तुम लोग भाभियों को 'उस' नजर से मत देखना वगैरह वगैरह ! ऐसा लगता कि ईश्वर नें चारों परियां खास सुकुल जी के लिए पैदा की हों !
इस सबसे अलग हटकर अनीता , सुकुल जी को पसंद करती थी और शादी की गरज से पंडित से कुंडली मिलान भी करवा चुकी थी ! सुकुल जी उसके लिए आदर्श हुआ करते , भले ही वो ख़ुद , सुकुल जी की नज़रों में सो सो थी !
जून १७ ,१९७७ :
आख़िर कार नियति के लेखे अनुसार हम सब, शोकसंतप्त सुकुल जी को छोड़ कर निकल लिए !
दिसम्बर १२ ,१९९५ :
भूतपूर्व छात्रों के लिए आयोजित समारोह में फ़िर से मिलने का मौका मिला है सुकुल जी ...फ़िर से बेचैन हैं ,परियों को देखने के लिए वो चारों ....(पांचवीं भी ) अभी तक पहुँची नहीं हैं ! पितृ कृपा से प्राप्त सुकलाइन (भाभी ) देखने सुनने में अच्छी लगी पर सुकुल जी के मन में परियों से बिछोह की कसक शायद अब भी शेष है ! वो अतृप्त से..... बाहर द्वार की ओर लगातार देखे जा रहे हैं !
आहिस्ता आहिस्ता सारे लोग आ चुके हैं मगर वक़्त के थपेडे खाए दोस्तों में से अब कोई भी किसी को नहीं पहचान पा रहा है , लिहाजा तय ये हुआ कि बारी बारी से स्टेज से गुज़र कर परिचय दिया जाए ! देखते ही देखते परियां भी स्टेज से गुज़र गईं ...... बहरहाल अब सुकुल जी के चेहरे पर तसल्ली के भाव हैं ! वो बुदबुदा रहे है ....ईश्वर जो करता है ठीक करता है और ...मुस्कराते हुए भाभी की बांह ...शिद्दत के साथ थाम लेते हैं ! ...और भाभी ?.....वो अपने पति की इस हरकत से हतप्रभ हैं !
समापन :
उधर सुकुल जी स्टेज से गुज़र रहे हैं और ....इधर अनीता के चेहरे पर तसल्ली के भाव हैं , वो भी बुदबुदा रही है ....ईश्वर जो भी करता है ठीक करता है !

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