रविवार, 19 जुलाई 2009

...नक्सलवाद ... युद्धोन्माद और ...जानम समझा करो !

कल रात उसने टी.वी.पर समाचार देखा और सुबह...सुबह प्रिंट मीडिया की सुर्खियाँ भी, लिहाजा वो बहुत उत्साहित है कि सरकार और पुलिस ने मदनवाडा के अनुभव से सबक लिया है इसलिए रक्षा बलों की त्वरित तैनाती / मूवमेंट, की गरज से हेलीपैड की तात्कालिक व्यवस्था के साथ ही साथ रणनीतिक मोर्चे पर भी विचार मंथन का दौर चल रहा है ! इतना ही नहीं सरकार के नेक दिल मुखिया नें भी नक्सलियों के विरुद्ध आर पार युद्ध की घोषणा कर दी है ! उस पर खुशी ये भी कि हताहतों* के परिजनों को समकक्ष पदों पर अनुकम्पा नियुक्ति देने का फ़ैसला कर लिया गया है !

(*हताहत इसलिए लिख रहा हूँ कि इसमें आगे चल कर वो इंसान भी शामिल किए जा सकें जो पुलिस में नहीं थे परन्तु इस विभीषिका का शिकार हुए हैं ! )

मैं भी उसकी खुशियों के गुब्बारे को बेवक्त पंक्चर करने के मूड में नहीं हूँ, भला क्यों...?...जरा सोचिये...क्यों नहीं ? अरे भाई वो भी तो मेरी जिन्दगी की दुआएं मांगती है...जैसे कि उन हताहतों की पत्नियां मांगती रही होंगी ! अब कौन जाने कि अपना ईश्वर अधिक क्रूर है याकि नक्सली या फ़िर सरकार, जो जीवन माटी के मोल हो चला है ! पता नहीं कब कौन परिवार अनुकम्पा नियुक्तियों के लिए कतार में खड़ा होने को मजबूर हो जाए !... र अगर घर का मुखिया अपने अकाल स्वर्गारोहण से पूर्व सरकारी नौकरी में ना हों तो...?...तो ?

फिलहाल तो मेरी पत्नी नक्सलियों के विरुद्ध सरकारी युद्धघोष और हताहतों के परिजनों के प्रति उसकी करुणा से गदगद है ! मैं नहीं जानता कि रणक्षेत्र में तैनात अन्य सरकारी अधिकारी / कर्मचारियों में से अगली बारी किसकी होगी ? शायद मैं ? या फ़िर कोई और ?...या फ़िर कोई और...! क्या उस दिन भी मेरे परिजन / मेरी पत्नी समकक्ष पदेन करुणा के मुआवजे से संतुष्ट हो जायेंगे / जायेगी ? क्या मुझ जैसे किसी भी हतभागे के परिजन अपने प्रियजन के असामयिक विछोह के उपरांत सहज जीवन जी सकते हैं ! वो खुश है ! मैं सोच रहा हूं और मेरा सिर दर्द कर रहा है ! अख़बारों की सुर्खियाँ , शब्दों से ध्वनियों में बदलती हुई !...तेज दर तेज होती हुई, मेरे कानों में हथोडों सी बज रही हैं ! मुझे अहसास दिलाती हुई कि एक दिन तुम भी सुर्खियाँ बन सकते हो तुम्हारे परिजन भी तुम्हारे बिना...अमां...लाहौल बिला कुव्वत ! मैं भी...क्या अगड़म बगड़म सोचे चला जा रहा हूं !

आवाज देता हूं मुझे चाय चाहिए ! पत्नी खुश है, उसे इस क्षण, मेरी ब्लागिंग से कोई शिकायत नहीं ! वाव...आज चाय में अदरक भी... ?...और कोई वक़्त होता तो कहता बेहतरीन, मजा आ गया ! लेकिन अभी तो मुंह कसैला हो चला है ! अकाल मृत्यु की परिकल्पना के दरम्यान कौन सी चाय जायकेदार लगेगी भला ? कोशिश कर रहा हूं, कि दिमाग सोचना छोड़ दे, फिलहाल मुझे और मुझ जैसे शान्तिकामी लोगों को इसकी सख्त जरुरत है कि दिमाग सोचना बंद कर दे क्योंकि...?

मध्यप्रदेश के ज़माने में स्वर्गीय भास्कर दीवान के परिजनों को भी समकक्ष पदेन अनुकम्पा नियुक्ति दी गई थी ! अब स्वर्गीय चौबे के परिजनों को दी जायेगी बाद में शायद...कोई और...फ़िर से...नये हैलीपैड, नई रणनीतियां, नये युद्धघोष ?...नई मृत्यु...नई अनुकम्पा, नई सुर्खियाँ...सब कुछ नया और निरंतर ! तब शायद किसी और की नई नवेली पत्नी खुश हो रही होगी ? जैसा का तैसा ! मानव जीवन को अकारथ / व्यर्थ करता हुआ !

मेरा दिमाग, क्या करूं मैं इसका ! कमबख्त सोचना बंद क्यों नहीं करता...हैलीपैड, नये अस्त्रों की दौड़, रक्षा बलों का तीव्र मूवमेंट ! थाने पक्के बंकरों से सुरक्षित ! पुलिस चौकियां फोर्टीफ़ाइड़ फ़िर लाखों करोड़ों जनगण अपनी अपनी झोपड़ पट्टी के पास बने बंकरों /फोर्टीफ़ाइड़ थानों के, अहसास मात्र से सुरक्षित ! अब मैं बडबडा रहा हूं और पत्नी भौंचक मेरा मुंह ताक रही है ! उसे लगता है कि रात मेरी नींद पूरी नहीं हुई या फ़िर काम का तनाव है ! अरे नहीं ये शब्द मेरे नहीं हैं !

हैलीपैड...अनुकम्पा नियुक्तियां, युद्धघोष...बंकर, जंगल, गाँव, पुलिस, मंत्री, संतरी, आदिवासी, जनगण, झोपडे, जीवन, मृत्यु...अनाथ...विकलांग...शहीद...भूखे...नंगे...आह मैं मरा !
कौन सी शान्ति ?... काहे की शान्ति ?

यहाँ नक्सलवाद...युद्धोन्माद और...शान्ति की कब्रगाह है... जानम समझा करो ! फिलहाल , पत्नी मेरे माथे पर हाथ रख कर, हरारत को महसूस करने की कोशिश कर रही है ! वैसे मेरे लिए , उसके हाथ में सिर दर्द और नींद, दोनों की गोली है !

6 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी शैली ने पूरी पोस्‍ट पढ़ने को मजबूर कर दिया दोस्‍त।

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  2. हेलिकाप्टर से क्या कर लेंगे ये लोग्।पिछले चुनाव मे ही सेना के हेलिकाप्टर को उड़ते समय निशाना बना दिया था नक्स्लियों ने जिसमे एक जवान को गोली लगी थी और वो शहीद हो गया था।सच तो ये है कि नक्सल क्षेत्र मे काम कर रहे पुलिसवालो की सुबह ज़िंदगी की सलामती की दुआ के साथ और रात ज़िंदगी बच जाने का एहसान जताने के साथ गुज़र रही है।ये बात ज़रुर है अनुकम्पा नियुक्ति अच्छे से अच्छे पदो पर भी तो भी कोई उसके लिये नौकरी नही करेगा मगर सोचिये एक इंस्पेक्टर के शहीद होने पर उसके परिजन को सीधे सिपाही के पद पर बिठा कर जीने के लिये मज़बूर करने से तो थोड़ा ठीक है समकक्ष पद प नियुकति देना।एक बात ज़रूर है कि इस नक्सलवाद का अंत होना चाहिये,चाहे जैसे भी हो।वर्ना हम नाम से नही अंको से खबर पढा करेंगे,आज इतने,कल इतने,परसो इतने……………॥आपकी चिंता जायज है,आपको सलाम करता हूं।

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  3. नक्सलवाद का इलाज एनासिन की गोली नहीं है...कारणों का निदान है.

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  4. यही तो है घनीभूत पीडा ....


    हृदय से निकले शव्‍दों से उठाये गये सवालों के लिये आपका आभार.

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