शनिवार, 11 जुलाई 2009

............उसका नाम सौम्या है !

निवेदन :
संस्मरण के पात्रों की निजता का सम्मान करते हुए उनके नाम बदल दिए गए हैं अतः निवेदन है कि नाम के आधार पर कयास आराई करने के बजाये घटना का मजा लें !

घटना :
उन दिनों हम सब की नौकरिया शुरू ही हुई थीं इसलिए ज्यादातर साथी या तो वाकई में अविवाहित थे या जबरिया अविवाहितों जैसा जीवन जीने के लिए मजबूर थे ! ....कोशिश करते कि शाम को किसी परिवार वाले ( शादीशुदा ) का निमंत्रण हासिल करलें ताकि कुछ नहीं तो कम से कम घर जैसा नाश्ता ही दस्तेयाब हो जाए ! हालाँकि जो लोग शादीशुदा थे उन्हें हमारी मेजबानी का शौक तो बिल्कुल भी नहीं था , भला छडों को अपने घर बुलाकर आफत कौन मोल लेता ! डर ये कि कहीं जुबान फिसल जाए और भाभियों के सामने ही अतीत के चिट्ठे खोलने बैठ जायें तो ? इज्जत का फालूदा होने में देर कितनी लगेगी ! ....उस पर तुर्रा ये कि भाई नें भाभी को जो अखंड / अकूत प्रेम का भरोसा दिलाया हुआ है उसका जनाजा निकलने में देर कितनी ....? .......तौबा तौबा सोचना भी गुनाह है ! खैर ये सब लिखने का मतलब ये है कि शादीशुदा दोस्तों के घर हम अविवाहित मित्रों का वार्म वेलकम तो बिल्कुल भी नहीं था !
चंद्रशेखर मेरे घर से दो घर छोड़ कर रहता था , साथ में उसकी पत्नी तथा दो साल की बेटी ! एक छोटा सा परिवार ! सुखी परिवार ! आम शौहरों की तरह से चंद्रशेखर जी भी शादी से पहले के , लेकिन अब तक अशादीशुदा दोस्तों से कामयाब दूरी बनाये रख रहे थे कि , उस दिन अचानक परम मित्र अग्रवाल जी , वर्षों बाद रायपुर से जगदलपुर आए हुए थे , उन्होंने ख्वाहिश जाहिर की , कि चलो चंद्रशेखर से मिल लिया जाए ! मरता क्या ना करता की तर्ज पर चल दिए , बिन बुलाये मेहमान की तरह ये जानते हुए भी कि चंद्रशेखर मन ही मन में गालियाँ देगा , मगर बाहर से आए दोस्त के साथ जाना मजबूरी थी ! सो चेहरे पर बनावटी मुस्कान टाँके हुए पहुँच गए उसके घर पर ! वो भी नकली मुस्कान के साथ लपक कर मिला ! अरे आओ भाई , आप तो ईद के चाँद हो गए , पड़ोसी हो , पर दीखते ही नही , मैंने सोचा कहावत तो सही कह दे दोस्त ! ईद का चाँद या गधे के सर से सींग या बिन बुलाया मेहमान ! बेचारा अग्रवाल , उसे क्या पता कि शादी के बाद चंद्रशेखर संभ्रांत नागरिक हो गया है !.... और हम सब अभी भी उचक्कों की श्रेणी में शुमार किए जाते हैं ! भाभी और बिटिया अन्दर कमरे में थीं , चन्द्रशेखर नें आवाज दी अरे शुभांगी देखो अग्रवाल जी आए हैं .....पड़ोसी भी ! भाभी आई और नमस्ते करके किचन की तरफ़ चल दीं ! अग्रवाल नें कहा भाभी फार्मेलिटी मत करना मुझे जल्दी वापस जाना है ! उन्होंने अनसुना कर दिया और अतिथि सत्कार का आयोजन करने में जुट गईं ! अब अग्रवाल जी चंद्रशेखर की गौरव गाथा शुरू करने के मूड में दिखाई दिए , मैंने कुहनी मारकर विषयांतर करवाया ...... लिहाजा माहौल असहज होने लगा ! बदलाव की गरज से अग्रवाल जी कहने लगे ' शुभांगी ' देखो मैं क्या लाया हूँ तुम्हारे लिए ! अरे भाई हमारे पास आओ , देखो हम कित्ती दूर से आए हैं ! आओ हम तुम्हें अपनी गोदी में बिठाएंगे , गाड़ी में घुमाएंगे ! चाकलेट दिलाएंगे ......वगैरह वगैरह ! मैंने फ़िर से कोहनी मारी ! दोबारा कोहनी की मार से आशंकित , अग्रवाल नें कहा ......बेटी .....? ....... चंद्रशेखर नें धीरे से कहा उसका नाम सौम्या है !
टीप : अग्रवाल जी का ख्याल था कि शुभांगी बिटिया का नाम है इसलिए बहुत कुछ कह गए पर बिटिया का नाम सौम्या है और भाभी का नाम शुभांगी ! ये जानने के बाद........अग्रवाल जी और ड्राइंग रूम के हालात की कल्पना आप ख़ुद कर लें !

4 टिप्‍पणियां:

  1. पात्रों पर ध्यान दिये बिना घटना का आनन्द लिया.

    जवाब देंहटाएं
  2. अब अगर अग्गरवाल की जुबान गज भर की होगी तो लपेट कर मुंह में रखेगा कैसे (!)

    जवाब देंहटाएं
  3. ये तो बहुत ही हास्यास्पद स्तिथि हो गयी मगर सिर्फ हमारे लिए अग्रवाल जी और ड्राइंग रूम में मौजूद सज्जनों की हालत तो आप सोच ही सकते हैं..... होता है होता है अनजाने में कई बार.....ज़िन्दगी इसी का तो नाम है...

    साभार
    प्रशान्त कुमार (काव्यांश)
    हमसफ़र यादों का.......

    जवाब देंहटाएं