भल्ला साहब मेरे दोस्त , इन्श्योरेन्स के बड़े अधिकारी , लिहाज़ा घर भी आलीशान बनवाया , मेरे सरकारी मकान के बिल्कुल पास ! बड़े अधिकारी , बड़ा मकान , सो उदघाटन भी जोरदार होना तय था ! वैसे हमारा मुल्क है गज़ब का , मकान आँग्ल परम्परा से बने या किसी और विदेशी स्थापत्य का नमूना हो , घर की नज़र उतराई टिपिकल देसी ही होना चाहिए वरना लोग क्या कहेंगे ? अब भल्ला साहब की क्या मजाल जो परम्परा से मुंह मोड़ते ! इसलिए बड़ी पार्टी से पहले एक छोटा सा धार्मिक अनुष्ठान करना जरुरी माना गया !
जगदलपुर में मेरे सारे पंजाबी मित्र , चाहे सनातन धर्मी हों या सिख ,पार्टियाँ देने और लेने के बहाने गढ़ते हैं ! कारण जो भी हो ,खाना कुछ भी बने , पर 'पीना' पार्टी का परम लक्ष्य , चरम जरुरत ! मुझे कई बार लगता है कि पंजाब से बाहर होने का ग़म ग़लत करते करते ये समुदाय अल्कोहलिक होता जा रहा है ! खैर ..... मित्रों नें मकान के उदघाटन को सुअवसर मान कर हर तरह की तैय्यारिया कर डालीं ! लेकिन पहले पूजा बाद में काम दूजा की परिपाटी के तहत माता की 'चौकी' का आयोजन सुनिश्चित किया गया !
सामान्यतः अत्यन्त ईश्वर परस्त और धार्मिक व्यक्ति हूँ लेकिन कर्मकांड से भय खाता हूँ , वैसे भी अरदास के समय संगीत बद्ध तरीके से रुपये का चढावा देख /सुन कर मेरा सिर घूम जाता है ! भल्ला नें लाख मिन्नतें की मगर मैंने कहा , भैय्या मैं नहीं आऊंगा ! तुम पुण्य कमाओ लेकिन मुझे चैन से सोने दो ! उसने कहा सो तो नहीं सकोगे !अब जिसका भल्ला जैसा मित्र हो वो भला चैन से सो सकता है क्या ! कमबख्त नें लाउडस्पीकर का मुंह मेरे घर की तरफ़ कर दिया और मैं रात भर पुण्य कमाता रहा ! वो कथा अब मुझे शब्दशः तो याद नही लेकिन उसका लब्बो लुआब ये था कि घोडे का कटा सिर जुड़ जाने का चमत्कार देख कर शहंशाह अकबर अपने घमंड को भूलकर माता के दरबार में सवा मन सोने का छत्र लेकर हाजिर हुआ !
उस कथा की टूटी फूटी ही सही , पद्यानुभूति कुछ इस तरह से थी : भक्तजनों , माता का चमत्कार देखिये !..... कट्टे घोडे दा सर जुड़ गया ..........नंगे पावों जी अकबर आया ....सवा मन दा छत्र चढाया ....... सुबह मेरे कान बज रहे थे !..... पंज रुपैय्यों दी अरदास हरिओम भल्ले दी अरदास ... ...रुपैय्यों दी अरदास चमन लाल दी अरदास , इक्क रुपैय्ये दी अरदास परमजीत माहना दी अरदास ........लखनपाल दी अरदास !
सुबह भल्ला मुझे देख कर हंस रहा था ......मैंने कहा तूने मुझे सोने नहीं दिया ठीक .....चौकी में सब लोग आए ठीक .....सब कुछ ठीक ठाक रहा ठीक ! पर तुम्हारा पंडित तो पंजाबी नहीं था ? अब चौंकने की बारी उसकी थी , उसने कहा कैसे जाना ?
मैंने कहा भाई साहब तुम ही कहो : कट्टे घोडे दा सर जुड़ गया कि घोडे दा कट्टा सर जुड़ गया ! उसने कहा सच है कोई पंजाबी पंडित है नहीं सो राजस्थानी पंडित से निपटवा दिया उसे पंजाबी कम आती है इसलिए घोडे दा कट्टा सर जुड़ने के बजाये कट्टे घोडे दा सर जुड़ गया !
अब मैं सोच में हूँ कि , क्या भूल चूक लेनी देनी की तर्ज़ पर परम्पराओं को निपटाया जाना जरुरी है ?
अब चाहे कटे घोडे का सिर हो या कि घोडे का सिर कटा हो, पंडित जी को उससे क्या लेना देना. उन्हे तो अपनी दक्षिणा और चढावे से मतलब!!!
जवाब देंहटाएंबहुत ही बढिया और रोचक संस्मरण.....