रविवार, 28 जून 2009

मैं क्यों सोच रहा हूं उनके बारे में ...??? ... हुश्त !

मैं घर लौट रहा हूं ! इधर मानसून रूठा है सो चिलचिलाती धूप में सड़क पर तारकोल बिछाया जा रहा है, गरमा गरम पिघलता हुआ, स्याह झुलसा देने वाला तरल, गांव की लड़कियां, लड़कों के साथ मजदूरी कमाने की कोशिश में हैं ! हाड़ तोड़ मेहनत ! मैं सोच रहा हूं, देर शाम को जब हिसाब होगा तब लड़कों के हाथ 70/= और लड़कियों के हाथ 60/= रुपये रोजाना की दर से दी गई करेंसी होगी ! क्लांत शरीर मगर चेहरों पर मुस्कान लिए वो लौट रहे होंगे गांव की ओर झुंड बना कर गाते हुए, मन में अगली सुबह फ़िर से खटने के लिए लौटने का इरादा लिए हुए ! शायद यही जीवन है ! मेहनत , छुट्टी , गायन , उल्लास , थकान , थोड़ा आराम और फ़िर से मेहनत !

कुछ ही लम्हों के बाद, मैं अपने घर के द्वार पर हूं और सुनता हूं, थोड़ा शोर उठ रहा है ड्राइंग रूम से, देखा बच्चे, हंगामा टी.वी.चैनल में 'डोरेमोन' देख रहे हैं ! सामान्यतः बच्चों के साथ बच्चा होने का कोई भी मौका मुझे मिले तो छोड़ता ही नहीं हूं ! किसी दोपहर में अगर बच्चों की छुट्टी हो तो समझो बीबी और उनकी सहयोगी कामवाली, लाख सिर धुनते रह जायें, मगर एकता कपूर घर से बाहर ही इन्तजार करती है ! चिरौरी करो या धमकी दो सब व्यर्थ ! घर में बच्चे हों, तो हुकूमत भी उनकी ही चलती है ! पालकों की वत्सलता से अनुमोदित इस हुकूमत में प्रजा होने का मजा ही अद्भुत है ! बच्चों को उम्मीद है कि मैं उनके पास बैठ कर नोविता और जियान की हरकतों के मजे लूंगा पर थोडी देर बाद, मुझे आफिस भी जाना है, मैं कहता हूं बेटू टी.वी.का वोल्यूम कम करो, बीबी कहती है बच्चों से कहो चैनल बदलें, कामवाली बाई भी कहती है भैया, बहुत अच्छा सीरियल आने वाला है, इन्हें समझा दो ना ! मैं हँसता हूं , क्योंकि इस सल्तनत में प्रजा तो मैं भी हूं ना !

सामने टी.वी.स्क्रीन पर,डर कर भागता हुआ नोविता, उसके ठीक पीछे जियान और इस सबके फ़ौरन बाद केवल 35/=रुपये में...पित्ज्जा ! अब इन सब के पीछे मैं हूं और सोच रहा हूं, उन लड़कियों और लड़कों के बारे में एक बार फ़िर से ! दिन भर तन गला कर 60/70 रुपये कमाने वाले गांव के लोग...?...कितना सस्ता है ना पित्ज्जा..?... मेरा आफिस इंडिया में है, पित्जा वहीं बिकता है और वो सड़क...वो लड़के लड़कियां...? वो तो इंडिया में नहीं रहते हैं !... क्या बकवास है, मैं क्यों सोच रहा हूं उनके बारे में...??? ... हुश्त !

5 टिप्‍पणियां:

  1. कितना सस्ता है ना पित्ज्जा ...? .... मेरा आफिस इंडिया में है पित्जा वहीं बिकता है ! और वो सड़क ...वो लड़के लड़कियां ....? वो तो इंडिया में नहीं रहते हैं !.... क्या बकवास है , मैं क्यों सोच रहा हूं उनके बारे में ......??? ............. हुश्त !
    bahut sunder likha hai

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  2. एक नया अंदाज़ पाया इस आलेख में. हमें फिर याद आ गयी उन ग्रामीण लड़के लड़कियों की टोलियाँ जो गाँव से मस्ती में झूमते गाते आते जाते रहते थे

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  3. ओह्ह!!!..क्या बात है!!! बहुत गहरी लेखनी..बधाई.

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  4. आपकी सोच काबिले दाद है।

    और हॉं, आपके ब्‍लॉग का सादा डिजाइन यूनीक है।

    -Zakir Ali ‘Rajnish’
    { Secretary-TSALIIM & SBAI }

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