शुक्रवार, 26 जून 2009

कितना भी सजा दो मेरे चेहरे को : मेकअप से ....?

पिछली प्रविष्टि में 'भाईजान ' का जिक्र किया था ! घटना के बाद हमारा दोस्ताना प्रगाढ़ हुआ , हम हर शाम महफिलें ज़माने लगे ! कई बार अचानक ख़बर भेजते चिंतन /अक्षयवट के लिए आपकी रिकार्डिंग करना है अभी पहुँचिये , मैं झुंझलाता मगर उनके मित्रवत आग्रह को टाल नहीं पाता ! बाद में हर शाम को घटना की शल्य क्रिया की जाती ! कई वर्षों तक यूँहीं चलता रहा और वे रिटायर हो गये ! इस दरम्यान जगदलपुर में दूरदर्शन आ चुका था सो रिटायर्मेंट के बाद वो वहां ठंस लिये ! ......एक तरह से ये अच्छा ही हुआ ! टी.वी .स्क्रीन पर दिखना उनकी दिली ख्वाहिश थी ये ना होता तो ........शायद म्रत्यु के बाद भी इहलोक ना छूटता !
पिछले हफ्ते मैं किसी मीटिंग में व्यस्त रहने वाला था , वो घर आ धमके और कहा छत्तीसगढ़ में विकास और नक्सलवादं पर चर्चा करना है , कल रिकार्डिंग होगी आप आ जायें ! मैंने कहा भाईजान मैं सरकारी नौकरी में हूँ और इस मुद्दे पर अपने ख्यालात रखना मुझे रिस्की लगता है ! आप जानते हैं सच कड़वा होता है और मैं .....! इसके अलावा कल मैं दिन भर बिजी हूँ ! ये मुमकिन नहीं है ! आप फलां को बुला लीजिये ! उन्होंने कहा बस २० मिनट के लिये आइये , हमारा स्टूडियो तैयार रहेगा हम फोन करेंगे ! शार्प २० मिनट में फ्री कर देंगे ! मीटिंग में से समय निकालिये ! मेरा कोई बहाना उन्हें मंजूर नहीं था ! कार्यक्रम के प्रोड्यूसर का ख्याल था एक पत्रकार ,एक समाज सेवी और एक मैं यानि कि शासन का कारिन्दा , चर्चा के लिये बढ़िया टीम है ! ....तय शुदा समय से पहले उन्होंने मुझे फोन किया और मैं बमुश्किल पॉँच मिनट में उनके दरबार में हाज़िर हो गया ! कैमरे के सामने पहुँचते ही वो लोग बारी बारी हमारे चेहरों को फोटोजेनिक बनाने की कोशिशों में लग गये ! काहे के बीस मिनट पूरा एक घंटा लग गया ! मुझे बहुत असहज लग रहा था , मैंने कहा भैय्या मेरा चेहरा दिखाना चाहते हो या कि विषय पर मेरे ख्यालात रिकार्ड करोगे ! क्या फर्क पड़ेगा कि मैं सुंदर ना भी दिखूं ! ..... वो माने ही नहीं ! उनके तामझाम से मेरी बौखलाहट बढती ही जा रही थी !
सोच कर आया था , रिस्क नहीं लूँगा , डिप्लोमेसी से काम लेते हुए , संवेदनशील मुद्दे पर हाथ डाले बगैर विकास की बात करूंगा ! पत्रकार मित्र नक्सलवादं पर चर्चा कर लेंगे ! वगैरह वगैरह ! रिकार्डिंग तक सब कुछ बदल गया ! मेरे ख्यालात , पहले से तयशुदा डिप्लोमेसी के नियंत्रण से बाहर थे , उबल रहे थे ! और मैं वो कह रहा था , जो दिल में था , जो सच था ! प्रोग्राम प्रोड्यूसर / भाईजान / पत्रकार मित्र / समाज सेवी सारे के सारे अवाक ,मुझे देख रहे थे और मैं कह रहा था कितना भी 'सजा दो मेरे चेहरे को : मेकअप से मेरे ख्यालात तो नहीं बदल जायेंगे ' मैं वो कहूँगा जो मेरे दिल में है ! जो मैं सोचता हूँ !
सच ये है कि आप रंगरोगन से मेरे चेहरे का जुगराफिया कृत्रिम और मनमोहक बना सकते हैं / दिखा सकते हैं ! लेकिन विचार अपनी मौलिकता / नैसर्गिकता के लिये कभी भी ,किसी भी मेकअप और पैचवर्क के मोहताज नहीं हुआ करते !

3 टिप्‍पणियां:

  1. अपने आप में तो सभी स्‍वाभाविक होते हैं, लेकिन सार्वजनिक होने पर लोग सारा हिसाब-किताब चाहे-अनचाहे छवि का करने लगते हैं. आईना देखते हुए, आइने पर लगा दी गई बिंदी का श्रृंगार तब तक साथ देता है, जब तक आप आईने के सामने हैं.

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