बुधवार, 13 मई 2009

संगतराश परिंदे और मैं दुखी हो जाते हैं !

पिछले कई महीनो से संगतराश , परिंदे और मुझ जैसे तमाम लोग दुखी हैं ! कारण ये कि चुनाव आचार संहिता लगते ही राजनेताओं के बुतों और उदघाटन के पत्थरों की मांग शून्य हो जाती है सो इस धंधे से रोज़ी रोटी कमा रहे संगतराश (पाषाण कला निष्णात लोग) अपने परिजनों के भूखों मरने की आशंका से पीड़ित हो जाते हैं और परिंदे इसलिए दुखी हो जाते हैं कि पुराने बुतों पर विष्ठा विसर्जन की भी कोई हद तो होती ही है ना !
अब मीडिया चाहे जितना भी चिल्ला चोट कर ले , सोलह मई के बाद भी त्रिशंकु लोकसभा तय है सो सरकार बनाने बिगाड़ने में जो नग्न नृत्य ( परदे के पीछे के समझौते ) संभावित है मै उसकी आशंका से दुखी हूं !
आखिर मुझ जैसे नाचीज़ करदाताओं के खून पसीने की कमाई का ऐसा लोकतंत्रीय दुष्परिणाम क्यों है ?
नहीं पता ?
लेकिन ये सुनिश्चित है कि चुनाव के हर एक मौसम में संगतराश परिंदे और मैं दुखी हो जाते हैं !

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