सुबह सुबह औघड़ चाय* का वक़्त है ! दर-ओ- दीवार पे हर सिम्त जगजीत भाई की पुर- नूर आवाज़ अनहद से अनगढ़ रिश्ते का सबब बनी हुई है ~~ ज़ुल्मतकदे में ................ इक शम्मा है दलीले सहर सो ख़मोश है ~~
बीबी किचन में , बच्चे नींद की आगोश में और मैं ख़ुद चाय की उम्मीद के साथ ग़ालिब ,जगजीत और अनहद की सोहबत में हूं ! सामने टेबिल पर पड़ा अख़बार अपनी सुर्खियों के साथ अंगडाइयां लेते हुए मुझे दुनियाये फ़ानी की आगोश में ढकेलने की फिराक़ में है ! फ़िर क्या... हर दिन की तरह आज भी अख़बार आहिस्ता आहिस्ता अपनी गिरफ्त मज़बूत करता जा रहा है और फिजाओं में गूंज रहे अल्फाज़ अपने मानी खोने लगे हैं ~~
सत्र न्यायाधीश बस्तर नें , अल्फ्रेड महरा निवासी आवास प्लाट करकापाल ,जगदलपुर को अपने साले मंगलू के कत्ल के जुर्म में , उम्र कैद की सजा सुना दी है ! रिक्शा चलाकर गुज़ारा करने वाले अल्फ्रेड को अपने बेटे सुहेल के जन्मदिन के लिए सिर्फ़ १०० रुपये उधार की दरकार थी ! ताकि बच्चा नए कपड़े पहन सके ! साला मंगलू एक दिन पहले सीमेंट खरीद चुका था सो उधार दे ना सका ! अल्फ्रेड नें गुस्से में साले को पीटा और वह मर गया ! अब मेरे दिल -ओ -दिमाग में अल्फाज़ अपनी शिद्दत से गूंज रहे हैं ~~
अल्फ्रेड ... मंगलू ... सुहेल ... जन्मदिन ... मृत्यु ... बेटा ... साला ... सौ रूपये ... उधार ... सीमेंट... सजा ... रिक्शा ... उम्रकैद... नए कपड़े ... जेल... इक शम्मा ... सरकार ... समाज ... गरीबी ...दलीले सहर... आज़ादी ... विकास ...विश्वगुरु... विकसित देश... भारत... लोकतंत्र ... नेता ...अम्बानी ... मित्तल...फोर्ब्स... विधवा ... पितृहीन ... अनाथ... परिवार ...सो ख़मोश है !
सचमुच बेहतरीन
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चाँद, बादल और शाम
क्या कहूँ? बच्चा नए कपड़े न भी पहनता तो भी ठीक था। कृपया वर्ड वेरिफ़िकेशन हटा लीजिए।
जवाब देंहटाएंघुघूती बासूती
पहली बार आपके ब्लॉग पर आया हूं। अद्भुत शैली और गहरे तक बेधते शब्द। इस बेहतरीन पोस्ट के लिए बहुत बहुत बधाई।
जवाब देंहटाएंउड़ता हुआ कागज आजाद हुए शब्द और उनसे उनके अर्थ !
जवाब देंहटाएं"मिला तो हुआ हूँ मगर ढूढ़ता हूँ
दुआओं में अपनी असर ढूंढ़ता हूँ
उठाते समय नहीं साथ देते
हाथों में अपने क़सर ढूंढ़ता हूँ
रेती सा मैं अब बिखरने लगा हूँ
पत्थर का मैं इक शहर ढूंढ़ता हूँ "
अली साहब , आपके लेख पर मैं अपनी गजल के कुछ शेर बतौर बधाई लिख रहा हूँ