रविवार, 29 मार्च 2009

फ़िर कभी मेरे दोस्त ने उसे छुआ तक नहीं !

मेरे बचपन का काफी बड़ा हिस्सा , बुआ के साथ गुज़रा ! वो स्कूल टीचर थीं और मैं अक्सर उनके पास रहने के लिए चला जाया करता था ! अहमद , क़दीर और भगवती से मेरी दोस्ती ऐसे ही हुई क्योंकि ये तीनों मेरी बुआ के छात्र थे ! उन दिनों मेरा कस्बा तहसील मुख्यालय हुआ करता था और बुआ की पोस्टिंग उसी तहसील के छोटे से गांव में थी ! मेरी तरह ये तीनों भी पांचवीं क्लास में पढ़ते थे इसलिए हमउम्र होने के साथ ही साथ बैचमेट भी हुए ! यूं तो गांव बहुत छोटा था और बुआ वहां बमुश्किल एक साल ही रही और मैं शायद कुछ महीने ? लेकिन बेरियों में पत्थर मारने और तालाब में मस्ती करने की समान आदत और बैचमेट होनें की फीलिंग्स नें हम चारों को पक्का दोस्त बना दिया था ! भगवती का पूरा नाम भगवती प्रसाद दीक्षित था लेकिन गांव में सभी उसे भगौती कहा करते थे ! उसके पिता की छोटी सी किराना दुकान और पंडिताई का व्यवसाय था और अहमद तथा क़दीर किसान पुत्र हुआ करते थे ! बुआ के ट्रांसफर की वज़ह से हम लोग जल्द ही बिछड़ गए और दोबारा लगभग सात वर्षों के बाद मिले जब बारहवीं के बाद की पढ़ाई के लिए हम सब बांदा पहुंचे ! हमारे लिए ये सुखद संयोग था कि प्रोफेसर साहब क्लास में परिचय पूछ रहे थे और इसी वज़ह से हम एक दूसरे को पहचान पाए वर्ना हमारे चेहरे काफी बदल चुके थे ! मैं हैरान था ये जानकर कि इतनी छोटी सी उम्र में क़दीर , अहमद का बहनोई बन चुका था और अहमद की भी शादी हो चुकी थी ! लिहाज़ा हमारी दोस्ती का इक्वेशन अब यूं हुआ ' जीजा, साला , भगवती और मैं ' याकि 'शादीशुदा और दो छडे '!
बांदा उन दिनों बहुत छोटा सा शहर था लेकिन नवाब द्वारा बनवाई गई मस्जिद की मीनार जो मेरे दोस्तों के गांव से दिखाई देती थी जबकि उनका गांव वहां से लगभग सत्रह किलोमीटर दूर था ! एक बहुत विशाल तालाब और माहेश्वरी देवी का सात मंजिला मन्दिर वहां की मानव निर्मित विशिष्टतायें थे ! जबकि ईश्वर नें एक पहाड़ और नदी की सौगात बांदा को दी थी ! हम लोग माहेश्वरी देवी के मन्दिर में रात नौ बजे और सुबह चार बजे नियमित रूप से बजनें वाली शहनाई की धुन पर अपनी घुमक्कडी बंद करने और जाग कर पढने का टाइम टेबिल बनाये हुए थे ! जिसकी वज़ह से अनजाने में ही सही शास्त्रीय संगीत नें हम लोगों की जिन्दगी में दस्तक दे डाली थी !
बांदा में चावल उत्पादन और हरियाली के लिए उत्तरदाई नदी केन में रेलवे पुल तो था लेकिन बसों की आवाजाही के लिए पुल निर्माणाधीन था और पास ही बड़े बड़े पीपों पर टिकी लकडियों के पुल के सहारे बसों का आवागमन हुआ करता था यात्री पैसे फेंकते और छोटे बच्चे उन्हें पीपों पर से कूद कर लपक लेते !
गर्मियों में हम चारों भी इस पुल के पीपों से नदी में डाइव करते और बसों की खिड़कियों में से झांकते परिचित अपरिचित चेहरों से हेलो हाय किया करते ! उस दिन अहमद , कदीर और मैं डाइव करके घाट की तरफ वापस आ चुके थे और फिर से पीपों में चढ़ने के लिए तत्पर थे और भगवती डाइव करने ही वाला था ! अचानक पीपों के नीचे से बहती हुई लाश निकली तब तक भगवती डाइव कर चुका था ! लाश कई दिन पुरानी थी एकदम सडी हुई फूल कर कुप्पा हो चुकी इस लाश पर कूद चूका भगवती पानी में काफी नीचे तक गया था और हम सभी सन्न थे ! फिर भगवती डरा सहमा , घृणा और क्षोभ से भरा हुआ जैसे तैसे पानी से बाहर निकला ! इसके बाद हममें से कोई भी पानी में नहीं उतरा सीधे कमरे की तरफ भागे ! हमारा खाना मुहाल हो चुका था ! खाना देखते उल्टियाँ आतीं ! भगवती को नोर्मल होने में हमसे ज्यादा वक़्त लगा !
जीवनदायिनी केन ...? बांदा में खाद्यान्न उत्पादन ,हरीतिमा , पेय जलापूर्ति के लिए वरदानस्वरूपा नदी केन ...?
पता नहीं केन जैसी किसी भी नदी में अस्थि विसर्जन , शहर की नालियों से आती गंदगी और मृत देहों का विसर्जन ठीक है कि नहीं ! याकि इसमें उचित अनुचित की कोई सीमा रेखा है भी कि नहीं !पर उसके बाद .....फिर कभी मेरे दोस्त ने उसे छुआ तक नहीं !

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