काफी समय पूर्व घटित ग्राम्य जीवन की एक घटना स्मरण में है जिसे आपके साथ शेयर करना चाहूंगा ! हुआ ये कि एक छोटे से गांव में दो पड़ोसियों में से दबंग पड़ोसी नें अपने घर का गन्दा पानी अपने सीधे साधे पड़ोसी के घर के सामने से बहाना शुरू कर दिया ! खुन्नस की वज़ह जो भी रही हो नाली पड़ोसी के घर के सामने से निकाल कर दबंग नें झगडे के बीज गांव की फिजा में बिखेर ही दिये थे सो बात तू तू मैं मैं से पंचायत तक जा पहुंची ! पंच परमेश्वरों नें मामले में दोनों पक्षों को सुना और पाया कि गलती दबंग पड़ोसी की है ! अब पंचों के फैसले पर सहमति व्यक्त करते हुए दबंग नें अपनी प्रतिक्रिया कुछ इस प्रकार से दी ............ "पंचन को कहो सही पै नरदहा वहीं से बही " यानि कि पंचों का कहना सही है किंतु नाली वहीं से बहेगी !
भले ही यह घटना एक गांव के स्तर के लोकतान्त्रिक ढांचे और मूल्यों का उपहास उडाती हुई दिखाई दे किंतु देश की हालत भी कमोबेश ऐसी ही है ! आज़ादी के बाद हम सभी नें ऐसे कई उदाहरण देखे हैं जबकि दोयम दर्जा और प्रतिभाहीन नेता 'विवादों' को हवा देकर कुख्यात से प्रख्यात हो गए ! कोई धनबल तो कोई बाहुबल और कोई अपनी न्यूसेंस वैल्यू के दम पर लोकतंत्र की रेस का विजेता घोड़ा बन बैठा है और आश्चर्य की बात है कि लोकतंत्र की असली ताकत जनता जनार्दन या तो राजनैतिक समझ बूझ के अभाव या फ़िर अन्यान्य तात्कालिक कारणों से इस घुड़दौड़ को अपनी मूक सहमति प्रदान कर चुकी है ! देश की लोकतान्त्रिक मर्यादाओं ,संवैधानिक मूल्यों और संविधान का जितना अनादर आज के छुटभैये नेता करते हैं उसे देख कर क्या आपको ये नहीं लगता कि जैसे नेता जी कह रहे हों ........"संविधान को कहो सही पै.................."
"देखन में छोटे लगें,घाव करें गंभीर्" बिकुल इसी प्रकार का आपका ये लेख है.....आभार
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