एक समाचार लेखक की आप बीती :
होली से पहले :
उनकी उम्र ज्यादा नहीं लिहाज़ा ख्यालात भी रूमानी हैं और उन्हें ईश कृपा से एक अदद लैला भी दस्तेयाब है सो जनाब पिछले साल भर से राह तक रहे थे कि होली आएगी तो कौन कौन से रंग किस किस तरह से और कहाँ कहाँ लगायेंगे ! मगर सत्यानाश हो ऑफिस वालों का , फरमान ज़ारी कर दिया , इस साल तिलक होली से गुज़ारा करो , मानवता को विश्व युद्ध से बचाना है ! इसलिए तिलक होली को जन आन्दोलन बना डालो ! अब बेचारा खादिम भला अपने मालिक से कैसे कहे जनाबे आली ख़ुद की होलियाँ तो भले से गुज़ार लीं अब पैर कब्र में क्या लटके , हमारी होली का दहन करने पे उतारू हो गए ! खैर ........मालिक का हुक्म सिर माथे की तर्ज़ पर भाई साहब , पिछले कई दिनों से तिलक होली के तराने गाने पर मजबूर थे !
होली के दिन :
आज भाई साहब नें सारी फिक्रें छोड़ कर होली को होली की तरह से मना डाला है और अपनी तमाम हसरतें खुलकर पूरी कर डाली हैं ! लेकिन दोस्त , दुश्मनी पर उतारू हैं और धमका रहे है कि मालिक को बता देंगे कि तुमने नाफ़रमानी की है ! जन-आन्दोलन की पीठ पर छुरा भोंका है ! ..... अब भाई साहब को कल की फ़िक्र है !
कल क्या होगा :
भाई साहब ने तय कर लिया है कि कह देंगे ! हुजूर हमने इस आन्दोलन को मजबूती देने के ख्याल से ज़्यादा से ज़्यादा जगह पर ज़्यादा से ज़्यादा तिलक लगाये हैं !
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें