परिद्रश्य १ :
पर्स रिक्शे या बस स्टेंड में छूटने के कनफ़्यूजन के बीच श्रीमती और श्री शैलेन्द्र कुमार जी के उजले चेहरे धूसर धूसर दिखाई दे रहे हैं ! पर्स में कीमती हार की मौजूदगी उनके दुःख और चिंता का मुख्य कारण हैं !...... लेकिन कुमार साहब की किस्मत बुलंद निकली और रिक्शे वाला उनका पर्स वापस लौटाने पहुँच गया हैं ! उसे भी चिंता थी कि पर्स में साहब का कीमती सामान हो सकता हैं ! साहब से उसने दस रूपये का इनाम भी नहीं लिया ! अमानत लौटा कर वह अपनी जिम्मेदारी से मुक्त और बेफिक्र हो गया है !
परिद्रश्य २ :
वो रिक्शे को बमुश्किल चला पा रहा है या शायद ? रिक्शा उसपर दया करके खुदबखुद सरक रहा है ! अब दोपहर काफी गर्म होने लगी हैं इसलिए उसके शरीर से पसीने की धार फूट पड़ी है ! फटे कपडों से झांकती निर्धनता उसे दूसरे इंसानों से अलग करती हैं तभी तो सूर्य देवता के कोप के सामने भी वह रोजी रोटी कमाने की जुगत में डटा हुआ हैं ! मेहनतकश लखमू के स्याह चेहरे की हड्डियां और गर्दन पर फूली हुई नसें उसकी बढती उम्र की गवाही दे रही हैं ! उधर रिक्शे के छायादार हिस्से में बैठे हुए जोड़े की सेहत काफी अच्छी हैं जिसकी वज़ह से रिक्शे वाले की मुश्किलें दोगुनी हो गई हैं ! मुसाफ़िर जोड़ा हो रही देरी के लिए रिक्शे वाले से बहुत नाराज़ हैं और उनका ख्याल हैं कि इस चटखती धूप में उनकी उजली काया स्याह हो सकती है ! बहरहाल मंजिल पर उतर कर उन्होंने , तयशुदा पारिश्रमिक में कटौती करके रिक्शे वाले को उसकी सुस्त रफ्तारी की सज़ा दे दी है !
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