सागर विश्वविद्यालय के छात्र के रूप में भाई प्रभात चौबे और दीप चन्द्र जैन के साथ मेरी दोस्ती संभवतः सबसे टिकाऊ परन्तु बेमेल स्वभाव वाली थी ! मुझे सिखाया गया था, लड़कियों से बचकर रहना और दिप्पू यानि दीप को लड़कियों से टचकर (चिपककर) रहना बेहद पसंद था उधर चौबे जी परकोटे से आते थे सो उनकी मूंछों और भाव भंगिमाओं से लड़कियां वैसे ही भय खाती थीं ! यूँ तो दिप्पू जी लंबे कद गौर वर्ण और अपनी नीली आँखों की वज़ह से बेहद स्मार्ट दिखते थे परन्तु भंवरों की तरह के स्वभाव के चलते वे लड़कियों में बहुत कुख्यात हो चले थे और चौबे महाराज भी अगर अपनी भाव पूर्ण मुद्राओं पर नियंत्रण रखते तो लड़कियों से दोस्ती बिल्कुल भी दुश्वार नहीं थी !
...पता नहीं सागर के दाने पानी में ऐसी क्या खासियत है कि वहां पर सिगरेट भी कलफ लगी और कड़क दिखाई देती है ! सच पूछो तो हम तीनों में सिर्फ़ मैं ही साधारण शक्ल-ओ-सूरत वाला था जिसकी भरपाई मैं क्लास रूम की सिंसियारटी के मार्फ़त किया करता था ! संभवतः हम तीनों की दोस्ती की बुनियादी वज़ह भी यही थी कि 'दोस्ती' हमारी कमियों पर परदा डाल देती थी ! दिप्पू की खूबसूरती, प्रभात का रौब दाब और मेरी पढाकू छवि कुल मिला कर हमारे दोस्त होने, एक जुट होने, पर ज्यादा निखरती दिखाई देतीं थी ! इसीलिए हमारी दोस्ती प्रगाढ़ से प्रगाढ़तम होती चली गई थी !
...पता नहीं सागर के दाने पानी में ऐसी क्या खासियत है कि वहां पर सिगरेट भी कलफ लगी और कड़क दिखाई देती है ! सच पूछो तो हम तीनों में सिर्फ़ मैं ही साधारण शक्ल-ओ-सूरत वाला था जिसकी भरपाई मैं क्लास रूम की सिंसियारटी के मार्फ़त किया करता था ! संभवतः हम तीनों की दोस्ती की बुनियादी वज़ह भी यही थी कि 'दोस्ती' हमारी कमियों पर परदा डाल देती थी ! दिप्पू की खूबसूरती, प्रभात का रौब दाब और मेरी पढाकू छवि कुल मिला कर हमारे दोस्त होने, एक जुट होने, पर ज्यादा निखरती दिखाई देतीं थी ! इसीलिए हमारी दोस्ती प्रगाढ़ से प्रगाढ़तम होती चली गई थी !
परीक्षा के समय में चौबे जी मोम लगे कागज़ की पतली पतली कतरनों पर जितनी मेहनत करते और जितना बारीक़ से बारीक़ अक्षरों को उकेरते,अगर और कोई समय होता तो उन्हें इस कला के लिए कुछ अवार्ड भी मिल जाते और दिप्पू भी थ्योरी से ज्यादा प्रेक्टिकल्स पे ध्यान दिया करता था ! उसकी प्राथमिकता थ्योरी में पासिंग मार्क्स और प्रेक्टिकल्स में रिकार्ड मार्क्स पाकर मामला बराबर करना हुआ करती थी ! वैसे साल भर हम साथ रहते और अपना अपना शौक अपने अपने ढंग से पूरा किया करते !
सचमुच वो दिन बहुत शानदार और स्मरणीय हैं ! मैं तो अब भी सोचता हूँ कि अगर प्रभात को कोई सिद्धि प्राप्त होती तो उसकी निगाहों से ही कई कई संतानों की उत्पत्ति के फ़साने लिख दिए जाते मगर अफ़सोस कि ऐसा हो ना सका ! मुझे अफ़सोस तो इस बात का भी है कि प्रभात के व्यक्तित्व की "नारिकेलम समाकारा दृश्यन्ते भुवि सज्जना" जैसी खूबी मिस 'एम' को तब पता चली जब हम लोग पढ़कर, विश्वविद्यालय को अल्लाह हाफिज़ कह चुके थे !
पढ़ाई के आखिरी साल में विश्वविद्यालय के सारे के सारे लड़कों को साइंस फैकल्टी की तरफ़ ध्यान देना पड़ रहा था सो दिप्पू महाराज भी अपना काम छोड़ कर बी.एससी। फाइनल पर फोकस कर रहे थे ! वो लड़की प्रतिभा बहुत ही खूबसूरत थी और दिप्पू जी तो ये भी भूल चुके थे कि हम लोगों को अपनी सीनियारटी मेंटेन करना चाहिए थी ! उस साल दिप्पू महाराज के डिजर्टेशन में सारी की सारी मेहनत मेरे और प्रभात के कांधे पर थी और मित्रवर को केवल धन्यवाद ज्ञापित करते हुए उसकी बाइंडिंग मात्र कराना थी ! खैर डिजर्टेशन सबमिट होने के बाद मैंने पाया कि धन्यवाद ज्ञापन में, मैं और प्रभात कहीं भी नहीं थे और सारा श्रेय उस लड़की को दिया गया था ! ...दिप्पू उससे शादी करना चाहता था !
फ़िलहाल मैं यहाँ जगदलपुर में, प्रभात सागर में और दिप्पू जबलपुर में सुखी जीवन जी रहे हैं ! पर वो लड़की ?
फ़िर मैंने उसे कभी देखा नहीं !