हमारे युवा मित्र हैं , १९९३ में उच्च शिक्षा विभाग में नियुक्त हुए ! लिहाज़ा अभिभावकों नें बहू ढूंढ़ना शुरू कर दी , मानदंड फिक्स थे , लड़की का परिवार संपन्न होना चाहिए और उसमें विवाह 'उत्तम' श्रेणी में कर सकने का सामर्थ्य भी होना चाहिए ! कई सालों तक कई 'घराने' देखने के बाद एक रिटायर्ड अभियंता के 'घराने' पर नज़र टिक गई ! वहां सिर्फ़ दो बहनें थीं ! नयन नक्श साधारण परन्तु , भाई कोई भी नहीं ! अतः रिश्ता तय हो गया !
आशा के अनुरूप विवाह 'अति-उत्तम ' ढंग से संपन्न हुआ ! तयशुदा शर्तों के अतिरिक्त, नवविवाहित जोड़ा सामान अपने ढंग से खरीद लेगा, की तर्ज़ पर घरेलू सामानों की कीमत तय करके नक़दी भी अलग से प्राप्त कर ली गई! इस तरह से .....वर वधु प्रसन्न , परिवार प्रसन्न और समाज ... वो भी प्रसन्न !
आगे चल कर लड़की के परिवार को दूसरा (छोटा ) दामाद भी इसी तर्ज़ पर प्राप्त हुआ !
दो दो 'उत्तम विवाहों' के बावजूद रिटायर्ड अभियंता ससुर के पास पर्याप्त धन संपत्ति शेष है अतः दोनों दामादों में सास ससुर की सेवा की होड़ लगी हुई है ! दामादों की आशा के केन्द्र बिन्दु , मृत्यु के देवता 'यमराज' हैं तथा दोनों की निगाहें फिलहाल 'महिष' के आगमन पर टिकी हुई हैं !
.......और हमारी नज़रें इन दोनों पर , देखें किसे क्या मिलता है !
वैसे ........ सारी की सारी कहानी और भागम भाग में लैला द्वय ? अप्रासंगिक होकर रह गई हैं !
दोनों दामाद स्वार्थवश ससुर की सेवा कर रहे है और ससुर के जल्दी यमराज के पहुँचने की आशा भी कर रहे है .
जवाब देंहटाएंहै तो सटीक बात . धन तो सगो में बैर करा देता है फिर वो तो ससुर है .