मेरी डायरी से :
तारीख : १४.०८.१९९६ , दोपहर बाद : १.४५ बजे :
मैं अपने मित्र प्रोफेसर साहब के पास वक़्त गुज़ार रहा था ! दाखिले की आखिरी तारीख होने की वज़ह से , वो शाम तक यूंहीं बैठने वाले थे ताकि छात्रों की मदद कर सकें !वैसे उन्हें अपने छात्रों से भविष्य की कोई खास उम्मीदें नहीं थी और वो इसे लेकर बेहद दुखी थे ! तभी उनका होनहार छात्र 'समीर बेंजामिन ' हांफते / भागते उनकी शरण में आ पहुँचा ! सर ऑफिस में फार्म ख़त्म हो गए हैं और आज आखिरी तारीख है मैं क्या करूं ! समय के निकल जाने का भय समीर के चेहरे पर साफ झलक रहा था ! प्रोफेसर साहब नें कहा फ़िक्र मत करो ,मेरे पास एक फार्म बचा है ! तुम इसे भर दो ! मुझे लगा समीर सही काम से, सही वक़्त पर ,सही जगह पर पहुँचा है ! .......और समीर नें फार्म भर दिया ! मैंने भी प्रोफेसर साहब से इजाज़त ली !
शाम ५.३० बजे :
प्रोफेसर साहब नें अचानक फ़ोन करके बुलाया तो मैं आशंकित सा उन तक पहुँचा , उनकी टेबिल पर वही फार्म पड़ा हुआ था उन्होंने इशारे से कहा पढो और मैं सन्न ......!
फार्म पर लिखा था आवेदक : सुधा वर्मा , दस्तखत : सुधा वर्मा और ......समीर.......? ..........उसकी चिंताएँ अपने लिए नहीं लैला के लिए थीं !
तारीख : २०.०२.२००९ सुबह : ५.०० बजे :
सुधा अपने शौहर और प्यारे 'पपी' के साथ मार्निंग वाक पर है , ड्राइवर कार के पास खड़ा मार्निंग वाक के समापन के इन्तजार में है ! सुना है समीर किसी प्रायवेट फ़र्म में मुंशी हो गया है !
ये ससुरा नाम ही ऐसा है-बेचारा समीर. साहनभुति में हमारे दो बूँद आँसू!!
जवाब देंहटाएंअच्छा लिखा है आपने , यही आज का कड़वा सच है.
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