परिदृश्य एक : समय पिछले ४०-१५ वर्ष :
तक़रीबन चालीस साल पुरानी बात है मेरे अंकल (पड़ोसी ) , किसी बात पर नाराज हुए और उनका गुस्सा घर के सामानों पर अज़ाब की तरह टूट पड़ा ! नतीज़तन सारा का सारा सामान दोबारा इस्तेमाल करने लायक नहीं रह गया ! गुस्सा ख़त्म होने के बाद मैंने अंकल को फूट फूट कर रोते देखा ! समझ में आया कि अंकल को अपने किये पर पछतावा है और ये नुकसान उन्हें भारी पड़ने वाला है ! आंटी पहले भी शांत थीं और बाद में भी शांत बनी रहीं ! आंटी हर हाल में सब्र करने वाली नेक दिल महिला थीं जो मुहल्ले के तमाम बच्चों में खासी लोकप्रिय हुआ करती थीं ! सारे बच्चे उनके पीछे पीछे घूमते, उनकी बात सुनते , उनकी बातें मानते थे ! वो हमेशा कहती बेटा सब्र करो , किसी पर नाराज़ भी हो जाओ तो खामोशी से अलग हट जाओ ,किसी का दिल दुखाना अच्छी बात नहीं है ! वो हमेशा कहतीं तुम्हारे अंकल बहुत अच्छे हैं मगर "लम्हों " का गुस्सा उनकी कमजोरी है ! हम बच्चे भी यही महसूस करते कि अंकल बाद में पछताते है लेकिन तब तक बहुत नुकसान हो चुकता है ! बस यही सब चलता रहा और मुझे भी अच्छे बुरे लोगों के दरम्यान रहते हुए आंटी के नेक ख्यालात की आदत पड़ गई ! अब सारे लोग कहते हैं कि तुम बहुत धीरज वाले हो , तुम बहुत हंसमुख हो , किसी को पता नहीं कि मेरे अन्दर एक निश्छल आंटी का वास है और दर हकीकत मैं कुछ भी नहीं हूँ ! मेरी शान्ति प्रियता आंटी की देन है उन्हें कोटि कोटि प्रणाम !
परिदृश्य दो : समय पिछले १५ वर्ष से आज तक :
समय बदल चुका है अब कोई पड़ोसी किसी पड़ोसी को नहीं पहचानता ! मेरे बच्चे अक्सर खाने की टेबिल पर मिल पाते हैं ! उनके लिए मैं और मेरी आंटी गुज़रे ज़माने की बातें और पिछडे ख्यालों के लोग हैं ! मेरे दोस्त मेरे सामने की तारीफों के पिछ्वाड़े से कई कई बार घात कर चुके हैं ! एक तरफ़ , मेरे इर्द गिर्द धूर्त और मक्कार किस्म के 'अपने' लोगों का जमावडा है जिनकी गिनती सैकडों / हजारों में है और दूसरी तरफ़ सच्चे शुभचिंतकों को मैं अँगुलियों पर गिन सकता हूँ ! लेकिन मैं आंटी का आदर्श भतीजा सब कुछ जानते हुए सबको पहचानते हुए मुस्कराता रहता हूँ ! क्योंकि सब्र , मेरा प्रशिक्षण है ! मेरा बचपन है ! मुझे मालूम है कि मेरे बच्चे मुझसे ज्यादा व्यवहार कुशल और समय परस्त हैं ! आज के दौर में शायद वो सही भी हैं ! पर मैं क्या करूं सब्र और मुस्कराहट मेरा व्यसन है मैं इसे छोड़ भी तो नहीं सकता !
लेकिन एक सच ये भी है कि अब जब भी मैं सब्र करता हूँ तो चेहरा दुखता है !
मैं चेहरा महसूस कर रहा हूँ दुखता हुआ .और तुम्हे भी .विचार -विश्लेषण प्रभावशाली है . बधाई .
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