कल मैंने अपने संस्मरण में यह बताने की कोशिश की थी कि आंख मूंद कर किसी को बेवकूफ़ या अक्लमंद नहीं माना जा सकता ! अब मैं आपको यह बताने की कोशिश करूंगा कि किस तरह से लोगों को अक्लमंद या बेवकूफ़ ठहराने के नुस्खे(पैमाने ) हम लोगों ने ईजाद कर रखे हैं और क्या वाकई में ये पैमाने इतने फूल प्रूफ़ हैं कि जिनसे बिना भूल चूक ये पक्का तय हो जाए कि कौन कितना अक्लमंद है !
हमारे स्कूलों और विश्वविद्यालयों में अक्लमंदी के ग्रेडेशन - थर्ड , सेकंड और फर्स्ट डिवीजन की शक्ल में निर्धारित हैं और यहां पर अक्ल को नापने के पैमाने (स्केल )पांच या दस उत्तरों वाले प्रश्नपत्र हुआ करते हैं ! परिस्थितियां जो भी हों , जैसी भी हों ,छात्र जिसे तीन घंटे में लिखे उसे परीक्षक कुछ मिनटों में जांच कर सब कुछ निर्धारित कर डाले , वाले इस पैटर्न में छात्र को स्थायी रूप से थर्ड , सेकंड या फर्स्ट लेवल अक्लमंद होने का ग्रेडेशन दे दिया जाता है !
इसी तरह से नौकरियों के लिए जो भी बुद्धिमत्ता परीक्षण किए जाते हैं उनमे से अधिकांश वस्तुनिष्ठ तरह के प्रश्नों वाले पैमाने हुआ करते हैं जो तय करते हैं कि अभ्यार्थी कितना बुद्धिमान है ! चलिये इनमे से एक नमूने को आगे की चर्चा के लिए चुनते हैं :-
प्रश्न : 'अमुक ' कम्पनी के शेयरों के मूल्य पता करने के लिए आप किसी एजेंसी में जाते हैं किंतु एजेंसी उक्त दिवस बंद है तो आप क्या करेंगे ?
उत्तर विकल्प :
अ : एजेंसी बंद है तो वापस लौट आयेंगे !
ब : दूसरी एजेंसी में पता करेंगे !
स : कुछ भी नहीं करेंगे !
मोटे तौर पर देखा जाए तो इस प्रश्न का 'ब ' उत्तर देने वाले अभ्यार्थी तर्कवान / बुद्धिमान और 'अ' तथा 'स' उत्तर देने वाले तर्कहीन तथा बेवकूफ़ श्रेणी के अभ्यार्थी माने जायेंगे और सामान्यतः प्रतियोगी परीक्षाओं में सब कुछ इसी तर्ज़ पर होता भी है ! लेकिन ...
क्या यह सही है ?
कल्पना कीजिये कि अभ्यार्थी तीन अलग अलग क्षेत्रों के निवासी हैं ( हमारे देश में यही विविधता सही है ) एक शहरी क्षेत्र ,दूसरा कस्बाई क्षेत्र और तीसरा ग्रामीण क्षेत्र का निवासी है तो यह निश्चित जानिए कि तीनो अभ्यार्थी अलग अलग उत्तर देंगे ! चूँकि शहरी पृष्ठभूमि में ,कई एजेंसियां उपलब्ध हैं इसलिए उत्तर मिलेगा 'ब' ! कस्बे में शायद दूसरी एजेंसी न हो तो उत्तर मिलेगा 'अ' और गांव में कोई एजेंसी होती ही नहीं इसलिए उत्तर 'स' मिलना सही है ! सच पूछिए तो अभ्यर्थियों की पृष्ठभूमियों के हिसाब से तीनों ही उत्तर जायज़ हैं !
फ़िर प्रतियोगी परीक्षा में ' ब' उत्तर का बुद्धिमान होना सही कैसे हुआ ?
चूंकि हमारा देश भिन्न पृष्ठभूमियों वाला देश है तो क्या प्रश्नों और उत्तरों के , एकाकी पृष्ठभूमि वाले ,फिक्स फार्मेट , सभी अभ्यार्थियों के साथ न्याय कर सकते हैं ? क्या ऐसे वस्तुनिष्ठ प्रश्न और उनके उत्तरों वाले स्केल किसी की अक्लमंदी और मूर्खता के पैमाने बन सकते है ?
मेरे विचार से बिल्कुल भी नहीं ?
इसीलिए किसी परीक्षा में किसी की सफलता ,उसकी बुद्धिमत्ता है , बधाई हो ? किंतु दूसरे की असफलता उसकी बेवकूफी है ? यह मानना भी बेवकूफी है !
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