सोमवार, 9 फ़रवरी 2009

बेवकूफ..

उन दिनों मैं तकरीबन हर दिन , डाक्टर शिरीन लाखे की यायावरी से लुत्फंदोज़ हुआ करता था ! उसे घूमने का बेहद शौक था इसलिए ऑफिस से छूटते ही वो मुझे अपनी लक्ष्मी सुवेगा मापेड में बैठाता और हम लोग गांव , जंगल की खाक छानने निकल जाया करते , फ़िर पहाड़ , झरनों , नदी नालों के चक्कर लगाकर अक्सर देर रात ही घर लौट पाया करते थे ! तब उसे पीएच.डी.अवार्ड हुए ज्यादा दिन नहीं हुए थे ! भाषा विज्ञान के शोधार्थी के रूप में उसने मुझे काफी प्रभावित किया था ! यही वज़ह थी कि उसके साथ घूमना मुझे फिजूल तो क़तई भी नहीं लगता था !
एक बड़ी सी लाइब्रेरी के लाइब्रेरियन के तौर पर वो दिन तमाम किताबों के ढेर पर बैठा दिखाई दिया करता और कुल मिलकर मेरे लिए एक बुद्धिमान युवा दोस्त था ! उसे सिगरेट पीने का बेहद शौक था ! शायद उन दिनों लोग बौद्धिक दिखावे के तौर पर , चुरट /सिगार / सिगरेट जैसे प्रतीकों का इस्तेमाल बहुतायत से किया करते थे !
हुआ यूं कि एक दिन हम लोग इन्द्रावती के घाट पर खड़े गपशप कर रहे थे और गांव के आदिवासी डोंगी के सहारे नदी पार कर रहे थे ! वहां एक छोटी सी झोपड़ी , एक छतरी और एक मोटा सा दरख्त भी था ! शिरीन काफी देर से सिगरेट जलाने की नाकाम कोशिश कर रहा था , तेज हवा के झोंकों से माचिस की तीलियाँ लगातार दम तोड़ती जा रही थीं ! वो बेहद परेशान हो चला था क्योंकि माचिस लगभग ख़त्म होने को थी और सिगरेट जलने का नाम ही नहीं ले रही थी अचानक उसके चेहरे पर शरारत की झलक दिखाई दी और उसने नाव से उतरते हुए ग्रामीण का लगभग उपहास उड़ाते हुए पूछा कि क्या तुम सिगरेट पियोगे ? उसे यकीन था कि अनपढ़ ग्रामीण , उसकी ही तरह से सिगरेट जलाने में नाकाम हो जाएगा !
मगर आश्चर्य , ग्रामीण नें एक झटके में जमीन पर पड़ी छतरी उठाई उसे खोला और हवा के रुख के खिलाफ तानते हुए सिगरेट जला डाली !
शिरीन हतप्रभ ! मैं अवाक ! छतरी वहां पर पहले से थी और हम दोनों पढ़े लिखे बुद्धिमान लोग ?
उस दिन से मेरी जिन्दगी बदल गई , अब मैं किसी को भी बेवकूफ नहीं समझता ! किसी को धोखे से भी बेवकूफ नहीं कहता हूं क्योंकि मै जान गया हूं कि बुद्धि अक्षर ज्ञान की दासी नहीं है ! बुद्धि को अभिव्यक्त होने के लिए केवल और केवल परिस्थतियों की दरकार होती है !

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