रविवार, 1 फ़रवरी 2009

भगवान किसके ...

अभी कल ही तमाम दोस्त बसंत की अगवानी में जुटे हुए ,कुछ मस्ती कुछ हास परिहास के मूड में ! शुभकामनाओं , आशीषों , दुवाओं और दोस्ताना छेड़छाड़ का माहौल , भगवान पर कब्जेदारी की बहस में कैसे बदल गया कि पता ही नहीं चला ! हुआ यूं कि मण्डली में से उत्तर प्रदेश और बिहार मूल के दो मित्रों में सहज बात चीत होते होते , 'तेरा ' 'मेरा ' प्रदेश की भावना उफान मारने लगी और दोनों अपने प्रदेश की प्रशंसा और दूसरे की निंदा में लिप्त हो गए !
वैसे देखा जाए तो ये इंसानी फितरत है कि वह ख़ुद 'गिरकर' हमदम को 'ऊँचा' उठाने की कोशिश नहीं करता बल्कि हमदम को 'गिराकर' ख़ुद ऊँचा 'उठने' की कोशिश करता है ! सो यही कुछ हुआ :
बहस चलते चलते यहाँ तक पहुँची कि बिहारी मित्र , मगध , नालंदा , पाटलिपुत्र ,मिथिला कुमारी , जनक नंदिनी के नाम के सहारे बिहार का यशोगान करने लगे ! फ़िर क्या था यू.पी. नरेश भी भड़क गये और कहने लगे तुम बिहारी ..ये .. तुम बिहारी ..वो ..और तुम लोगों नें तो भगवान को भी नहीं छोड़ा , भगवान राम और भगवान कृष्ण दोनों हमारी यू.पी .के हैं और तुम लोग उन्हें बिहारी बनाना चाहते हो !
कहते हो - अवध बिहारी ? कुंज बिहारी ? बांके बिहारी ?
बाद में बसंत उत्सव की इस तर्कहीन बहस का अंत भले ही दोस्ताना तरीके से करवा दिया गया हो !
लेकिन प्रश्न ये तो है ही कि जन्म और नाम से भगवान किसके हैं ?
आखिर हम अपने झगडों में भगवान को घसीटना कब बंद करेंगे ?
और ये कि हम लोग कब सुधरेंगे ?

1 टिप्पणी:

  1. जब तक भगवान् के नाम पर पोंगे पंडितों और अल्लाह के नाम पर कठ मुल्लाओं कि चलती रहेगी

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