हाँ मैं प्रेम पर लिखना चाहता हूँ लेकिन महीने की ढलती उम्र मेरी ख्वाहिशों पर भारी पड़ रही है! मैं अक्सर सोचता हूँ कि जेहन में सिर्फ़ प्रेम का ख्याल रहे , चौबीसों घंटे, तीन सौ पैंसठ दिन अपनी पूरी निरंतरता के साथ ! मगर मेरे चाहने का क्या ?
ज़रूरतें , अजमल कसाब की तरह मेरी इच्छा के विरुद्ध बिन बुलाई आफत की तरह टूटती हैं और मैं बेचैन हो जाता हूँ जबकि प्रेम पर लिखने के लिए मुझे सुकून की दरकार है !
ज़रूरतें , अजमल कसाब की तरह मेरी इच्छा के विरुद्ध बिन बुलाई आफत की तरह टूटती हैं और मैं बेचैन हो जाता हूँ जबकि प्रेम पर लिखने के लिए मुझे सुकून की दरकार है !
वैसे मैं नहीं जानता कि मैं प्रेम पर कब लिख सकूंगा ?
पर मैं इतना तो समझ ही गया हूँ कि जो भी इन्सान बेचैन या असहज हों , वो प्रेम पर लिख ही नहीं सकते !
पर मैं एक दिन ......ज़रूर लिखूंगा !
गणतन्त्र दिवस की शुभकामनाएँ।
जवाब देंहटाएंप्रेम में बैचेनी भी होती है।
घुघूती बासूती