रविवार, 14 दिसंबर 2008

अव्यवस्थाओं के बीच ...........

पिछले दिनों छत्तीसगढ़ में चुनाव संपन्न हुए ! जय पराजय के विश्लेषणों का दौर भी लगभग थम चुका है ! इस पूरी प्रक्रिया के दौरान चुनाव आयोग की कार्य प्रणाली के अजीबोगरीब नमूने देखने को मिले ! किसे विश्वास होगा कि चुनाव लड़ने वाले प्रत्याशियों ने चुनाव में व्यय की गई राशि का जो ब्यौरा चुनाव आयोग को सौंपा है वह सत्य का १०% भी है ! इसलिए चुनाव की प्रक्रिया में धन के प्रवाह को रोक पाने में चुनाव आयोग की असफलता आयोग के आत्मालोचन का विषय है !
चुनाव में लगे हुए छोटे कर्मचारियों को प्राप्त सुविधाओं और आयोग के पर्यवेक्षकों को मिलने वाली राजसी सुविधाओं की तुलना राजशाही युग की विषमताओं का उदाहरण प्रस्तुत करती हैं ! इसी तरह माइक्रो आब्जर्वर्स की नियुक्ति अकुशल कर्मचारियों की भीड़ बढ़ाने और जनता के धन के दुरूपयोग के अतिरिक्त क्या है !
( आप माइक्रो आब्जर्वर्स की रिपोर्ट्स पढ़ें बात आईने की तरह साफ हो जायेगी )
कहने का आशय यह है कि चुनाव की प्रक्रिया में छोटे कर्मचारियों और बड़े अधिकारियों के मध्य सुविधाओं का विषमतापूर्ण बंटवारा उचित नहीं है !
सामान्यतः जिला प्रशासन के मुंह लगे चाटुकार अधिकारी और कर्मचारी सबसे पहले फ़ील्ड ड्यूटी से स्वयं की मुक्ति की व्यवस्था करते हैं !
(आप देखेंगे ,व्यवस्था और प्रशिक्षण में लगे हुए अधिकांश लोग दशकों से यही काम कर रहे हैं )
चुनाव ड्यूटी में मतदान केन्द्र में जाने वाले अधिकांश कर्मचारियों का कोई माई बाप नहीं होता है इसीलिए ऐसे कर्मचारी चुनाव की पावन प्रक्रिया को जोखिम, जिल्लत, और असुविधाओं के " नारकीय समय" के रूप में ही स्मरण करते हैं !
चुनाव आयोग को इस बात की परवाह ही नहीं होती कि ड्यूटी लगाते समय अधिकारी कर्मचारियों के प्रोटोकाल को ध्यान में रखा जाए ! पिछले चुनावों में कनिष्ठ सहायक प्राध्यापक अपने वरिष्ठ प्राध्यापकों को और शिक्षक अपने ही स्कूल के प्रिंसीपल को ट्रेनिंग देते देखे गए ! इसी प्रकार प्रथम श्रेणी अधिकारी 'पीठासीन अधिकारी 'और कनिष्ठ अभियंता 'सेक्टर अधिकारी 'बनाये गए ,शायद सेवाओ में प्रोटोकाल का खुल्लमखुल्ला उल्लंघन चुनाव आयोग की सहमति से ही किया जा रहा होगा ?
कुछ इसी प्रकार से चुनाव आयोग ड्यूटी लगाते समय लिंग भेद करते हुए महिलाओं को चुनाव कार्य से वंचित रखता है जबकि नौकरी करती हुई हर महिला 'नारी स्वतंत्रता आन्दोलन'और पुरूष से बराबरी के संघर्ष की प्रतीक है ! जब कार्य और वेतन में अन्तर नहीं है तो चुनाव ड्यूटी से प्रथकता कैसी ? आप पाएंगे कि केवल महिला राजस्व अधिकारियों को ही इस भेदभाव से छूट मिली हुई है ! क्या लिंग भेद संविधान का उल्लघन नहीं है ?
हमें उम्मीद है कि चुनाव आयोग इन प्रश्नों पर गंभीरता से विचार करेगा !