रविवार, 7 दिसंबर 2008

आतंकवाद

पिछले कई दशकों से हमारा देश आतंकवाद का शिकार है और इस मुद्दे पर जमीनी सोच के बजाये नारेबाजी और राजनीति ही ज्यादा हो रही है ! हमारे बुद्धिजीवियों का पूरा फोकस फिलहाल विदेशी /सीमापार और धार्मिक आतंकवाद तक सीमित होकर रह गया है ! और आश्चर्य की बात है कि हम सभी बहुत ही सतही तौर पर इसका एक ही हल देखते हैं और वह है हिंसात्मक प्रतिक्रिया !
हालाँकि हम सभी जानते है कि हमारा (१९७१ का )'आक्रामक बांग्लादेशी 'प्रयोग हम पर ही भारी पड़ रहा है और श्रीलंका में हमारी सैनिक विफलता ( लिट्टे के जन्म के कारणों पर प्रथक से बहस की जा सकती है ) के अलावा भिंडरावाले प्रकरण भी 'आतंकवाद ' पर हमारी सोच और विश्लेषण का हिस्सा होना चाहिए !

हम सब इस सत्य से भलीभांति परिचित हैं कि पाकिस्तान एक पिद्दी सा देश है और उसे कुचलना चंद दिनों याकि सिर्फ़ घंटों की बात है इसलिए इस विकल्प पर विचार और व्यवहार से पहले कुछ चिन्त्तन कुछ आत्मालोचन जरुरी है ! हम जब भी आई एस आई की बात करते हैं उसे सर्वशक्तिमान दानव की तरह से प्रस्तुत करते है उस वक़्त हम अपनी 'गुप्तचर संस्थाओं' की विफलता पर बात ही नहीं करते , आखिर पिद्दी से देश की पिद्दी सी गुप्तचर एजेंसी हमारे महान देश की गुप्तचर एजेंसियों पर किन कारणों भारी से पड़ रही है हमें इसकी खोज पड़ताल और निराकरण करना ही होगा वरना सारे उपाय सतही और लीपापोती ही साबित होंगे !
वैसे इस बात की क्या गारंटी है कि इस कार्यवाही के बाद आतंकवाद का समूलनाश हो जाएगा और नए 'बांग्लादेश' (सिंध ,पख्तून आदि आदि ) हमारा सिरदर्द नहीं बनेंगे ! बेहतर है कि हम आतंकवाद पर इस शुतुरमुर्गी सोच से बचें कि आतंकवाद सिर्फ़ विदेशी स्रोतों से आ रहा है ! हमें आन्तरिक आतंकवाद और उसके कारणों का निदान भी करना होगा , हमें जयचंदों और विभीषणों की पहचान भी करना होगी ! वरना आतंकवाद पर हमारी कार्यवाही खेत में घास काटने जैसी हो जायेगी जहाँ पर जड़ें यथावत रहती हैं और घास पुनः जीवित हो जाती है !
हमें सबसे पहले असमानता ,असंतोष की उस उर्वरता को समाप्त करना होगा जहाँ से आंतरिक आतंकवाद पनपता है और जोकि बाद में जयचंद /विभीषण पैदा करते जाता है !
हमें आंतरिक आतंकवाद के उदाहरण के तौर पर नक्सलवाद की ख़बर है परन्तु हमारे उपाय हिंसात्मक प्रतिक्रिया तक सीमित है परिणाम सभी को पता है कि नक्सलवाद निरंतर जीवित है ! आखिर हम उन कारणों का निदान क्यों नहीं करना चाहते जिनसे नक्सलवाद उपजता है !
इसी प्रकार हम एक विशिष्ट परिवार की राजनीति को हिंसा और क्षेत्रीयता की राजनीति मानकर काम चला लेते हैं जब कि इसे भी आतंकवाद का एक स्वरुप माना जाना चाहिए ! आखिर हम लोग हफ्ता वसूली करने के लिए चाकू और कट्टा लहराने वाले संगठित और असंगठित गिरोहों को आतंकवादी मानकर कार्यवाही क्यों नहीं करते क्या जनता और देश इसे 'सहज स्वीकार्य हिंसा ' मानकर बर्दाश्त करता रहेगा !
हमारे कहने का आशय यह है कि पाकिस्तान को कुचल डालो अगर इससे आतंकवाद के इलाज की गारंटी हो !
मगर श्रीमान जी आतंकवाद के हर रूप पर उसी शिद्दत से कार्यवाही करो और स्थाई इलाज ढूंढो !
कृपा कर ! आतंकवाद के हर रूप की पहचान करो ! सही निदान खोजो समतामूलक देश गढो !
जयचंदों को पैदा मत होने दो कोई गोरी आंख उठाकर नही देख सकेगा !