शनिवार, 16 अगस्त 2008

झोपडे के हुमायूँ ........

देश विभाजन के उपरांत देश की आबादी के बीचो बीच नफरत की दीवारें खड़ी की जा रही हैं ,विशेषकर मुस्लिम आबादी के सामने अपनी विश्वस्नीयता को स्थापित करने के लिए चौतरफा दबाब है !
आश्चर्य यह है कि देश के मुस्लिम , उन हिंदू भाइयों की त्रासदी / पीड़ा के लिए जबाबदेह बताये जा रहे हैं , जोकि शरणार्थी बन कर आए हैं और जिन की माली (आर्थिक )हालत फिलहाल , मुसलमानों से बेहतर है !
आप गौर करेंगे कि कांग्रेस "शाषित तुष्टिकरण की अर्ध शताब्दी में"मुसलमानों को अपने ही हिंदू भाइयों से डरना सिखाया गया है ! और उन्हें इस दौरान अलीगढ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के नामकरण की राजनीति में ही महदूद रखा गया है ! उनके विकास की योजनायें केवल कुछ सूत्रों (१५/२०)वाले नारों और खास तौर पर कब्रिस्तानों की बाउन्ड्रीवाल बनवाने तक ही सीमित रही हैं ! यानि कि शासन मुसलमानों के मोक्ष के लिए कृतसंकल्पित रहा है !
जहाँ कांग्रेस ने मुसलमानों का भयादोहन कर वोट बटोरने का रास्ता तलाशा वहीं गैर कांग्रेसवादी दलों ने "तुष्टिकरण का राग दीपक" छेड़ा हुआ है !
कुलमिलाकर मुसलमान भयग्रस्त /आशंकाग्रस्त और नफरत तथा प्रतिरोध की आग में झुलसती हुई पीढ़ी की तरह से पले बढे हैं ! राजनेताओं के अलावा मुसलमान धार्मिक कट्टरता और हिंसा तथा उन्माद के सौदागरों के कर्जदार बनते हुए भी दिखाई देने लगे हैं !
हैरानी की बात यह है कि वे काल्पनिक तौर यह स्वीकार कर चुके हैं कि " सर्व शक्तिमान ,अनादि और अनन्त खुदा " का इस्लाम खतरे में है और " सारी कायनात के मालिक " को उनके (अदने से )बाहु बल की हिफाज़त की दरकार है ! इस्लाम के लिए इससे बड़ा कलंक और क्या हो सकता है !
खैर ....यह चर्चा अकारण ही लम्बी होती जा रही हैजबकि मैंने बहुत ही संक्षेप में यह कहने के लिए लिखना शुरू किया था कि हर मजहब और हर पंथ के लोग "खुदा की मखलूक" हैं
तो आपस में आशंका और नफरत कैसी ? यह मुल्क हम सबका है ,हमें इसकी हिफाजत के लिए ही मर्दानगी का मुजाहिरा करना चाहिए !


आज हमारे अपने भाइयों का बहुत ही खूबसूरत और मानीखेज (अर्थपूर्ण )त्यौहार "रक्षा बंधन" है इसलिए इसमे दिल से शामिल हों और गुरबत (निर्धनता )में ही सही "झोपड़े के हुमायूँ .....बन कर अपनी कर्मवती बहनों " के सच्चे भाई बनने का संकल्प लें !

और घटिया राजनीति को शिकस्त दें !