मंगलवार, 5 अगस्त 2008

लोकतंत्र के लिए .....

इन दिनों विश्वास मत और ऐसी ही राजनैतिक घटनाओं में नैतिकता और अनैतिकता पर बहस जारी है ! प्रत्येक राजनेता और राजनीतिक दल एक दूसरे को उपदेश देने में भिड़े हुए हैं ! परन्तु मुद्दा यह विचारणीय है कि स्वतंत्रता के पश्चात् हम जिस लोकतंत्र को ओढ़ना बिछावना बनाये हुए हैं क्या वह सच्चा लोकतंत्र है ? क्या वह देश के समस्त जनगण को सत्ता सौंपने वाला तंत्र है ? या कि वह धन ,बाहुबल ,जाति ,धर्म बल की चेरी होकर रह गया है !
मेरे विचार से सभी चिन्तनशील महानुभाव इस बात से सहमत होंगे कि हमारा लोकतंत्र समस्त जनगणों को समुचित प्रतिनिधित्व देने में नितांत असफल सिद्ध हुआ है ! अतः देश में सच्चे लोकतंत्र की स्थापना समय की मांग है अन्यथा देश ,पूंजीपतियों ,बिगडैल नौकरशाहों , माफिया ,बाहुबली नेताओं ,(केवल बहुसंख्य निर्धनों को छोड़ कर )यानि कि अल्पमतों के हाथों का खिलौना बन कर रह जाएगा ! इन्ही परिस्थितियों से निपटने के लिए कुछ सुझाव प्रस्तुत कर रहा हूँ ! यहाँ यह स्पष्ट कर देना आवश्यक है कि यह केवल सुझाव हैं , इन्हे सर्वस्वीकृत ,सर्वमान्य और चिरंतन सत्य की तरह प्रस्तुत नहीं किया जा रहा है ! अतः प्रत्येक चिंतन शील महानुभाव इसमे अपने अनुभव जोड़ कर सम्रद्ध कर सकते हैं ! जिसके लिए 'उम्मतें' का पेशगी आभार !


दरअसल लोकतंत्र में सुधार की शुरुआत राजनीतिक दलों से ही होनी चाहिए इसलिए मेरा सुझाव है कि राजनीतिक दलों का पंजीयन करने से पहले यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि वह दल निम्नानुसार शर्तें पूरी करता हो ......
(१)दल का एजेंडा व्यक्तिपरक ना हो ,और दल का संविधान क्षेत्र /अंचल विशेष के बजाये देश हित में हो !
(२) दल में आन्तरिक लोकतंत्र हो ,यदि पंजीयन के बाद दल आन्तरिक लोकतंत्र की स्थापना में विफल हो जाए तो यह उसकी मान्यता समाप्ति के लिए पर्याप्त हो !
(३)दल में देश की समस्त जनसँख्या के धार्मिक/ जातीय /लैंगिक और आर्थिक जनसमूहों को उनकी जनसँख्या के अनुपात में प्रतिनिधित्व दिया गया हो !
(४)दल में मनोनयन और पीढ़ी दर पीढ़ी सत्ता हस्तांतरण पर प्रतिबन्ध हो !
(५) दल में किसी भी धर्म /जाति विशेष की प्राथमिकता पर प्रतिबन्ध हो !
(६)दल के सदस्य /पदाधिकारी व्यक्तिगत स्तर पर किसी भी धर्म /जाति के अनुयाई हों और उसका अनुपालन करने को स्वतंत्र हों लेकिन उनपर ,धर्म /जाति /लिंग /भाषा या अन्य किसी भी आधार पर भेदभाव करना ,प्रतिबंधित हो !
(७) निर्दलीय व्यक्तियों का चुनाव लड़ना प्रतिबंधित हो क्योंकि यही व्यक्तिवाद का कारण है ! जोकि देशहित में नहीं है !
(८)संसद /विधानसभाओं के अन्दर या बाहर हिंसक और अशोभनीय प्रदर्शन करने वाले दलों का पंजीयन स्वयमेव समाप्त हो जाए !
(९) दलों को केवल शान्ति पूर्ण , बंद /हड़ताल का अधिकार हो इस दौरान हिंसा/ बल करने वाले दलों को कुछ वर्षों के वनवास की सजा दी जाए !



इसके अतिरिक्त चुनाव प्रक्रिया में भी बदलाव किए जायें ....


(१) पंजीकृत दल अपने आन्तरिक लोकतंत्र के आधार एक संभावित विजेता दल बनाये और चुनाव से पहले घोषित करें ! यह सूची संसद /विधानसभा के क्षेत्र वार और जाति /धर्म /भाषा को ध्यान में रख कर नहीं बने बल्कि देश /राज्य स्तरीय हो !
(२) चुनाव व्यक्ति के बजाये दल को लड़ना होगा ,चुनाव में मिले मत का प्रतिशत यह तय करेगा कि किस दल से कितने लोग विजेता होंगे ! जोकि पूर्व में जारी संभावित दल में से लिए जायेंगे !