सोमवार, 14 जुलाई 2008

जनसंचार माध्यम और उनकी सामाजिक ग्राह्यता ..1

कल हमने लिखा था कि माध्यमों की सामाजिक ग्राह्यता के परीक्षण हेतु सबसे प्रथम कड़ी के रूप में प्रिंट मिडिया को चुना है अतः प्रस्तुत है अध्ययन से प्राप्त जानकारी !
यहाँ यह बताना उचित होगा कि अध्ययन के लिए हमने हिन्दी के एक मूर्धन्य समाचार पत्र को रैंडम आधार पर चुना और उसके फ्रंट पेज को उसके व्यक्तित्व का सबसे महत्वपूर्ण अंग मानकर लगातार दस दिनों तक की खबरें देखी है ! तथा उसके नियमित पाठकों को उसकी सामाजिक ग्राह्यता का आधार मानकर सूचनाएँ प्राप्त की हैं !

मुख्य पृष्ठ  में स्थान : ख़बरों की वरीयता क्रम में :

राजनीति..२७ % , विज्ञापन ..१८ % , हेड लाइंस ..१३% ,खेल जगत ..८.५३% , रिक्त स्थान ..७.७७% , म्रत्यु ..५ % ,शिक्षा ..४% ,नक्सल हमले ..३.४६ % , समाज ..३% ,
व्यापार ..२.६७% , त्यौहार ..२.६५ % , फिल्मी ..१.८४ % , अन्य देश ..१.२५% , इन्साफ .. १.१०% , जबकि पुरस्कार ,स्वास्थ्य , रोजगार ,प्रदूषण ,को प्रथम प्रष्ठ में स्थान ही नही मिला !

पाठक गण :
आयु ..३० वर्ष से कम .६६% ....३० वर्ष से अधिक ..३४ %
लिंग :पुरूष ..६०% , औरतें ..४०%
शिक्षा : अधिक शिक्षित ..६२% , अल्प शिक्षित ... ३८ %
परिवार : छोटे परिवार ...६६% ,बड़े परिवार ..३४ %
पैसा : महीने में ...१५००० / तक.. ४३% ,महीने में १५००० /से अधिक ..१२% ,कुछ नहीं ...४५ % !


समाचार पत्र पढने के निरंतर वर्ष : ५ साल से ३५ % ,१० साल से ५८ % ,१५ साल से ७ %
समाचार को सच मान लेना : सच...६२% , सच नहीं ....३८%
समाचार की भाषा को प्रभावी मान लेना : हाँ ...८४ % , नहीं ... १६ %

प्राप्त सूचना से पता चलता है समाचार पत्र के नियमित पाठक भी भाषा और समाचार के सच को लेकर पूरी तरह से संतुष्ट नहीं है !
अब इस पर आप की राय क्या है यह आप कहें !