तकरीबन 1000 साल पहले की बात है उन दिनों ईरान
का शहंशाह बे-औलाद था और वह हमेशा अफसोस करता कि उसके बाद उसकी माल-ओ-दौलत और तख्त
का वारिस कौन होगा ? शहंशाह के अफसोस को ध्यान में रखते हुए एक बूढ़े दरवेश ने उसे
एक सेब देते हुए कहा कि, इसे अपनी पत्नी को खिला देना । इससे तुम पिता बन सकोगे । अगली सुबह जब शहंशाह की पत्नी उस सेब को खाने वाली थी कि उसकी सहेली
जोकि एक पुजारी की पत्नी थी वह शहंशाह की पत्नी से गिड़गिड़ाते हुए बोली कि, मैं
भी बे-औलाद हूं और मुझे भी सेब का एक छोटा सा टुकड़ा खाने दो ताकि मैं भी मां बन
सकूं । इसके बाद उन दोनों ने आपस में एक समझौता किया कि
उनकी जो भी संतान होंगी, वो बड़े होकर आपस में शादी करेंगे ।
कुछ समय बाद शहंशाह के घर पुत्र और पुजारी के घर पुत्री का जन्म हुआ पुत्र का
नाम करीम और पुत्री का नाम असली रखा गया । जैसे-जैसे दोनों बच्चे बड़े होते गए वे
एक दूसरे के प्रति आकर्षित होते गए, यूं कहें कि मोहपाश में बंधते गए । हालांकि विडंबना ये हुई पुजारी ऑर्थोडॉक्स ईसाई
था और शहंशाह मुस्लिम । तो पुजारी का परिवार यह नहीं चाहता था कि, उसकी पुत्री
किसी मुस्लिम परिवार में ब्याही जाए । इसलिए वह राजधानी को छोड़कर कहीं दूर जा बसा
। असली की गुमशुदगी के दौर में करीम ने अपने शहंशाह पिता की दौलत का परित्याग करते
हुए, एक साधारण जिन्दगी गुज़ारना शुरू कर दी । वो अपना ज्यादातर वक़्त असली के लिए
प्रेम गीत लिखने और गाने में बिताने लगा ।
पुजारी चाहता था कि, उसकी पुत्री का विवाह उसके किसी स्वधर्मी युवा के साथ हो
जाए । इस घटनाक्रम से चिंतित करीम और असली के सामने यह संकट खड़ा हो गया कि उन्हें
अपना ब्याह जल्द करना ज़रूरी लगा । कहते हैं कि, तुर्की के पाशा ने पुजारी को इस
प्रेम विवाह के लिए राजी हो जाने की हिदायत दी तो पुजारी ने अपनी पुत्री को ऐसी
मन्त्रपूरित पोशाक दी,जिसे खोला नहीं जा
सकता था और करीम को एक अभिशप्त कमीज दी, फिर कहा कि ये ब्याह का तोहफा है । करीम
ने वो कमीज पहन ली लेकिन एक रोज वह कमीज के बटन खोलने में हड़बड़ी कर बैठा और उस अभिशापित
कमीज के कारण से जलने लगा । अपने प्रेमी को धू धू कर जलते देखकर असली भी आर्तनाद
करती हुई प्रेमी के साथ लिपटकर जल मरी ।
तुर्की में प्रचलित और बहुश्रुत ये प्रेम कथा बे-औलादों की ईश्वरीय मदद स्वरुप प्राप्त, एक ही सेब को
खाकर, संतानवान हो जाने को, लेकर कही गयी है किन्तु एक आशीष,एक ही सूत्र से
प्राप्त संततियों में धार्मिक भेदभाव/वैमनस्य और पत्नियों के मध्य हुई वचन-बद्धता
को पुरुषों के धार्मिक मिथ्याभिमान के कारण भंग हो जाने की स्थिति को भी दर्शाता
है ।प्रेमी अपनी प्रेमिका के लिए राजपाट और पैतृक संपत्तियों का परित्याग कर देता
है और प्रेमिका के लिए अनुराग / प्रेम और आसक्ति भरे गीत लिख कर अपने समर्पण का
अहसास कराता है । प्रेम गीत जिनके कारण उसे तुर्की के पाशा का नैतिक समर्थन
प्राप्त होता है ।
ये कथा जन्म की तरह से मृत्यु के आशीष सह अभिशाप के विश्वास पर आधारित है,
जहां प्रेम मर कर अमर हो जाता है और यह उसका पुनर्जीवन है, अशरीरी किन्तु जग
व्यापित । समय से परे । अगर हम चाहें तो प्रातीतिक रूप से यह भी कह सकते हैं कि,
यह आख्यान, हृदय की दग्धता / ज्वलनशीलता का आख्यान है । प्रेम में दग्धता करीम और असली
की तरह । प्रेम में सांसारिक विरह, किन्तु पारलौकिक मिलन के स्थायी संकेतों के साथ
। अंधकार जो मनुष्यों के दरम्यान मौजूद घृणा है,छद्म अभिमान हैं ,भेद भाव है।
कहना ये कि,अगर मैं नहीं जलूंगा,अगर तुम नहीं जलोगे,अगर हम नहीं जलेंगे,तो
अंधियारा आलोकित कैसे होगा ?