ये कथा तुर्की के सुल्तान और वजीर की
है, जिनके घर कोई औलाद ना थी और बे-औलाद रहने का दर्द उन्हें खाए जा रहा था ।एक रोज वे दोनों वेश
बदलकर बाज़ार से गुज़रे जहां पर उन्होंने एक दरवेश को देखा, सुल्तान ने सोचा कि
दरवेश का इम्तहान लिया जाए तो उसने कहा कि आप यह बताएं कि हम दोनों की ख्वाहिश
क्या है ? दरवेश ने कहा कि आप दोनों बे-औलाद हैं और आप दोनों को औलाद की ख्वाहिश
है । ये सुनकर सुल्तान समझ गया कि दरवेश सच में ज्ञानी
संत है । उसने दरवेश से
प्रार्थना की कि, दरवेश उन दोनों की मदद करें और उन्हें संतानवान होने का आशीर्वाद
दे । यह सुनते ही दरवेश
ने अपने थैले में से एक सेव निकाला और उसके दो टुकड़े करके एक टुकड़ा सुल्तान को
दिया और दूसरा टुकड़ा वजीर को देते हुए कहा कि आप दोनों इसे आज रात में ही खा लें ।
जल्दी ही आपके घर किलकारी
गूंजेगी । सुल्तान के
घर एक सुकन्या जन्म लेगी जिसका नाम ज़ुहरा रखा जाए और वजीर के घर एक पुत्र का जन्म
होगा जिसे ताहिर नाम दिया जाए ।
इसके बाद जब दोनों बच्चे बालिग़ हो
जाएं तो उन दोनों की शादी कर दी जाए अगर उन दोनों की शादी नहीं की गई तो आप दोनों
उनसे हाथ धो बैठेंगे, लेकिन ताहिर और ज़ुहरा का नाम युगों युगों तक लिया जाएगा, ऐसा
कहते हुए दरवेश वहां से चला गया । सुल्तान
और वजीर ने वही किया जैसा कि, उनसे दरवेश ने कहा था । कुछ महीनों के बाद उनके घर पुत्री और पुत्र का जन्म हुआ जिनका नाम दरवेश
से किये गए वादे के अनुसार ज़ुहरा और ताहिर रखा गया । ताहिर और ज़ुहरा जवान हो चले थे और
शिद्दत से एक दूसरे की मोहब्बत में गिरफ्तार हो गए थे । वह दोनों चाहते थे कि, जल्द से जल्द
उन दोनों की शादी करा दी जाए, लेकिन इस दरम्यान सुल्तान की बेगम को यह एहसास हुआ
कि, उसकी सल्तनत में वजीर का ओहदा छोटा है इसलिए उसका बेटा, सुल्तान की पुत्री के साथ शादी करने लायक नहीं माना
जाना चाहिए ।
उसने यही तर्क अपने पति को दिया और
उसे यह समझाया कि पद क्रम में सुलतान, वजीर से श्रेष्ठ है अतः अपनी लड़की, किसी
छोटी हैसियत वाले व्यक्ति के घर में नहीं देना चाहिए । हालाँकि ताहिर ने ज़ुहरा से अपनी मुहब्बत और शादी
की जिद को छोड़ने से इंकार कर दिया । इसलिए ताहिर को बंदी बनाकर तहखाने में डाल दिया गया लेकिन ताहिर
किसी तरह से वहां से बच निकला । दूसरी तरफ ज़ुहरा को महल के एक कमरे में बंद कर दिया गया ताकि समान श्रेणी
के परिवार में उसका रिश्ता किया जा सके।जब ताहिर ने ये खबर सुनी तो वो परेशान हो गया और वेश बदलकर
ज़ुहरा का हाल चल जानने वापस आया ।लेकिन उसे पहचान कर फिर से गिरफ्तार कर लिया गया और सुल्तान ने यह तय
किया कि उसे फांसी दे दी जाएगी । ताहिर ने सुल्तान से गुज़ारिश की, कि मुझे फांसी पर टांगने से पहले खुदा से
दुआ मांगने दी जाए ।
दुआ में ताहिर ने अपनी मृत्यु मांगी । उसकी दुआ कुबूल हुई और ताहिर
फांसी पर चढ़ाए जाने से पहले सजदे में ही गिर कर मर गया । अपने प्रेमी की मृत्यु से ज़ुहरा इतनी
विचलित हुई कि उसने शोक संतप्त होकर अपना नकाब उतार कर ताहिर के शव पर रखते हुए वहीं
अपने प्राण त्याग दिए। कालांतर में उनकी कब्रें एक दूसरे के बगलगीर होने
की तर्ज पर बनाई गईं ।
तुर्की का यह आख्यान कहने सुनने में
असली और करीम की प्रेम कथा जैसा लगता है, लेकिन यहां पर एक ही आशीषित सेब के खाने
से पैदा होने वाले बच्चे एक ही धर्म के अनुयाई थे ।
किन्तु सुलतान और उसके वजीर का रिश्ता लगभग मालिक और नौकर जैसा
माना गया । असली और
करीम की कथा में असली का पिता प्रेम और
ब्याह के विरुद्ध था । लेकिन
ताहिर और ज़ुहरा की कथा में लड़की की माता यानि सुल्तान की, पत्नी अपनी सामाजिक,
राजनीतिक श्रेष्ठता के दंभ में अपनी पुत्री का ब्याह ,अपने वजीर के पुत्र ताहिर से
नहीं करना चाहती थी । अतः
उसने अपने पति को भी यही नसीहत दी कि वजीर का बेटा उनसे सामाजिक, राजनीतिक रूप से हीन
है । इसलिए हम अपनी
पुत्री का ब्याह किसी छोटे सामाजिक राजनीतिक स्तर के व्यक्ति के साथ नहीं कर सकते,
सुल्तान को उसका यह तर्क भा गया और वह
दरवेश की नसीहत को भूल गया कि बालिग़ होने पर ताहिर और ज़ुहरा का ब्याह नहीं किया
गया तो वजीर और सुल्तान अपनी संतानों को
खो बैठेंगे ।
हालांकि इस स्थिति में उनकी संतानों
की यशगान युगों युगों तक बखाना जाएगा । बहरहाल लगता यही है कि, ताहिर और ज़ुहरा की जोड़ी असमता का
शिकार हुई और उन्हें असमय ही अपने प्राण गवाना पड़े । हम ये कह सकते हैं कि,
इस आख्यान में प्रेमी युगल के एक नहीं हो पाने का कारण धार्मिक विषमता नहीं थी ।
बल्कि आर्थिक, सामाजिक और
राजनीतिक असमानता थी ।
अगर हम ध्यान दें, तो आशीषित फल से संतान होने के अनेकों उद्धरण भारत में भी सुनाई
देंगे, पढ़े जाएंगे, कहे जाते हैं । मोटे तौर पर यह कथा आशीष की सांसारिक विफलता की कथा है ।
जहां पर असमानता, ईश्वरीय आशीष
को धता बता देती है और आशीष को मृत्यु के अतिरिक्त अन्य कोई विकल्प दिखाई नहीं
देता, लेकिन कथा के नायक और नायिका की युगों युगों तक प्रसिद्धि का आश्वासन यह
कहता है कि, दैहिक रूप से ना मिल सके जोड़े , परलोक या भू-लोक में अनंत काल तक अपने
प्रेम के लिए चीन्हे जाएंगे । कहते
हैं कि ताहिर और ज़ुहरा की कब्रें कोन्या में है , जहां फिलहाल एक म्यूजियम भी है जो इन
दोनों के दु:खद अंत की अनंत कथा कहता है ।