रविवार, 24 जून 2018

किन्नर - 26

विश्व के अन्य देशों की तरह से भारत में भी लैंगिक दुविधा की धारणा अर्वाचीन है, हालांकि आदि देव ने इसका सम्मानजनक विकल्प अर्धनारीश्वर के रूप में दिया था । उल्लेखनीय है कि वैदिक साहित्य में किन्नर समुदाय के बारे में अनेकों ब्योरे दर्ज हैं परन्तु यहां हम उन विवरणों / सूत्रों की पड़ताल करने के बजाये भारतीय हिंदू किन्नरों की आराध्य देवी माता बहुचरा का ज़िक्र करना चाहेंगे । उनके सम्बन्ध में प्रचलित गल्प कहता है कि वो चारण बापल दान देथा की पुत्री थी, जिन्हें, उनकी बहन के साथ,बापैया नामक दस्यु ने, कारवां से लूट लिया था । पहले तो कारवाँ के लोग, दस्यु समूह से वीरता पूर्वक लड़े परन्तु संख्या बल की कमी के कारण दस्यु दल से परास्त हो गये । उन दिनों चारण समुदाय के पुरुषों और स्त्रियों में यह बात सामान्य रूप से प्रचलित थी कि शत्रु द्वारा मारे जाने / परास्त किये जाने से पूर्व ही आत्म घात कर लिया जाना उचित होता है । गौर तलब है कि उस कालखंड में चारणों का खून बहाना, घिनौना कृत्य माना जाता था ।
दस्युओं द्वारा बंदी बना ली गई बहनों ने तिरागु / आत्मबलिदान की घोषणा की । उन्होंने अपने वक्षों को काट डाला । इसके बाद बहुचरा ने बापैया को श्राप दिया कि वह आगत समय में, नपुंसक का जीवन जियेगा, स्त्रियों की तरह से कपड़े पहनेगा और श्रृंगार करेगा तथा तिरागु करने को बाध्य हुई बहुचरा की पूजा करेगा । अस्तु गल्प सन्देश स्पष्ट है कि लैंगिक उत्परिवर्तन बहुचरा माता की कथा से जुड़ा हुआ है । फिलहाल देवी बहुचरा का मंदिर मेहसाना जिले के बेचरा में स्थित है, जहां लाखों श्रृद्धालु संतान मांगने के लिये आते हैं । इस सम्बन्ध में प्रचलित एक गल्प यह भी है कि, किसी जन्मजात, नपुंसक राजा ने देवी बहुचरा से संतान की कामना की थी ।  एक अनुश्रुति ये भी कि राजकुमार जेठो ने स्वप्न में देखा, कि देवी बहुचरा ने उसे, अपना जननांग काट लेने और स्त्रियों के कपड़े धारण करने तथा देवी का सेवक हो जाने का आदेश दिया है ।
कहते हैं कि प्रत्येक किन्नर को देवी की उपासना का आदेश है अन्यथा उसकी सात पीढियां को नपुंसक हो जाने का श्राप है । दस्यु दल से मुठभेड़ के घटनाक्रम के बाद जैसे जैसे समय बीतता गया वैसे वैसे देवी के उपासकों की संख्या बढ़ती गई और इस तरह से किन्नर समुदाय वृहताकार होता गया । प्रचलित कथाओं में यह संकेत भी निहित हैं कि किन्नर समुदाय के आत्म विचारण  के मूल में शरीर और आत्मा के संघर्ष की धारणा है । एक अन्य गल्प में बहुचरा को राजकुमारी बताया गया है, जिसका पति बहुचरा से शारीरिक संसर्ग स्थापित करने के बजाये बचता फिरता था । वह रात को अक्सर घर से बाहर निकल जाता और सुबह घर वापस लौटता । चूंकि ये घटनाक्रम अत्यंत रहस्यमयी था सो राजकुमारी बहुचरा ने अपने पति के रात्रि कालीन पलायन के कारणों को जानने का निश्चय कर लिया, फिर एक रात्रि को उसने अपने पति का पीछा किया और देखा कि उसका पति जंगल में किसी अन्य पुरुष के साथ पत्निवत / स्त्रीवत व्यवहार कर रहा है ।
वो यह देख कर अत्यंत क्रोधित हो गई और उसने, पति का बंध्याकरण कर दिया तथा श्राप दिया कि उसके पति के जैसे सभी पुरुष, पुनर्जन्म के बाद नपुंसकता मुक्त किये जायें । इसलिए किन्नर समुदाय के लोग देवी के पुनर्जन्म वाले आश्वासन की पूर्ति के लिये वर्तमान जन्म में उसकी उपासना करते हैं । कुल मिलाकर कथनाशय ये है कि देवी बहुचरा किन्नरों को संरक्षण प्रदान करने वाली शक्ति है और उसके उपासक अहिंसा में विश्वास रखते हैं । 

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