सोमवार, 24 जुलाई 2017

असुर को पाताल लिखो !

उन दिनों दुनियां का सृजन एक द्वीप के रूप में किया गया था जो कि आकाश में तैरती रहती थी, तब उसमें आकाश मानुष सुख और शांति से रहा करते, उन्हें दुःख का बोध ही नहीं था ! वे ना तो जन्म लेते और ना ही उनकी मृत्यु हुआ करती ! बहरहाल एक दिन एक स्त्री को यह अनुभूति हुई कि वह जुड़वां बच्चों को जन्म देने वाली है, उसने ये बात अपने पति को बतलाई, जिसे सुनकर पति रोष से भर गया और उड़ते हुए द्वीप के मध्य स्थित उस पेड़ तक जा पहुंचा, जो सारे द्वीप को रौशन करता था, क्योंकि तब तक सूर्य का सृजन नहीं किया गया था ! पति ने पेड़ को बीच से फाड़ डाला और द्वीप के बीच-ओ-बीच एक बड़ा सा छेद कर दिया, जिज्ञासावश स्त्री ने उस छेद से नीचे झांका, तो उसे चारों ओर पानी ही पानी दिखाई दिया, इसी क्षण पति ने उसे पीछे से धक्का दिया तो वो नीचे पानी की ओर गिरने लगी !  

आकाश में तैरते उस द्वीप के बहुत नीचे मौजूद पानी में अनेकों जल जीव रहा करते थे ! जिसमें से दो परिंदों ने द्वीप से नीचे गिरती हुई स्त्री को देख लिया था, सो पानी में गिरने से पहले ही उन्होंने उसे लपक कर अपनी पीठ में रख लिया और अन्य जल जीवों तक पहुंचाया ! सारे जल जीव स्त्री की मदद करना चाहते थे, इसलिए उन्होंने, पानी में गहरी डुबकी लगा कर तल से कीचड़ / मिट्टी निकालने का यत्न किया पर एक के बाद दूसरा, फिर तीसरा और फिर...फिर...फिर...वे सभी असफल रहे, अंततः एक मेढ़क ने गहरे तल की ओर डुबकी लगाई और जब वह वापस लौटा तो उसके मुंह में कीचड़ भरा हुआ था, जिसे जल जीवों द्वारा विशाल कछुवे की पीठ पर फैला दिया गया, इसके बाद कीचड़ खुद ब खुद बढ़ने लगा और उसने एक महाद्वीप जितना विस्तार पा लिया, फिर वो स्त्री इस नवनिर्मित भूमि पर चढ़ी और उसने हवा में धूलि कण बिखेर कर तारों की रचना की, यहां तक कि सूर्य और चंद्रमा की भी ! कुछ समय के बाद स्त्री ने जुड़वां पुत्रों को जन्म दिया !

उसने एक पुत्र का नाम अंकुर रखा जो कि सहृदय और सौम्य था जबकि दूसरे शिशु का नाम चकमक रखा जो कि पाषाण हृदय और ठन्डे स्वभाव वाला था ! दोनों बच्चे शीघ्र ही युवा हो गये और धरती को अपने सृजनशीलता / विनाश लीला से आबाद-ओ-बर्बाद करने लगे ! अंकुर अच्छे स्वभाव का था, सो उसने मनुष्यों के लिये उपयोगी पशु बनाये ! उसने दो दिशाओं में बहने वाली नदियां बनाईं और उनमें बिना कांटों वाली मछलियां डालीं और ऐसे पौधे / वनस्पतियां बनाईं जिन्हें मनुष्य आसानी से खा सकें ! अंकुर ने यह कार्य स्वयं किया बिना थके बिना कष्ट ! दूसरी तरफ चकमक ने अंकुर के सारे सृजन को तहस नहस कर दिया और मनुष्यों को दुःख देने वाली निर्मितियां कीं ! उसने नदियों को एक ही दिशा में बहने वाला बना दिया ! उसने मछलियों में कटीली हड्डियां डाल दीं और बेरियों / झाड़ियों में कांटे लगा डाले !

चकमक ने सर्दियां बनाई तो अंकुर ने सर्दियों में जान डाल दी ताकि वे आगे बढ़ें और वसंत ऋतु उनका स्थान ले सके ! चकमक ने राक्षस बनाये तो अंकुर ने उन्हें धरती के नीचे पाताल में धकेल दिया ! अंततः अंकुर और चकमक ने किसी एक के विजयी होने तक युद्ध करने का निर्णय लिया, दोनों ने लंबे समय तक भयंकर रण किया ! कोई किसी से कम नहीं था लेकिन विजय अंकुर की हुई, चूंकि चकमक भी देवता था सो उसे मारा जाना संभव नहीं था, इसलिए उसे भूमि के नीचे विशाल कछुवे की पीठ में जाकर रहने के लिये विवश किया गया ! कहते हैं कि उसका क्रोध अक्सर ज्वालामुखी के रूप में फूटता रहता है ! इरोक्योइज लोग जीव जंतुओं को अत्यंत आदर की दृष्टि से देखते हैं, क्योंकि वे मानते हैं कि अगर जीव जंतुओं ने स्त्री को गहरे पानी में डूबने से नहीं बचाया होता तो धरती का...और फिर धरती पर किसी भी तरह का, सृजन ही नहीं होता ! 
  
आख्यान में उल्लिखित, आकाश में तैरते द्वीप, जहां ना कोई जन्मता है और ना ही मृत्यु होती है, केवल सुख ही सुख मौजूद, दुःख की लेश मात्र भी अनुभूति नहीं !  सोचें तो इस आकाशीय दुनिया से, धरती की अग्रणी सभ्यताओं में मौजूद स्वर्ग की अवधारणा की प्रतीति होती है, जहां सब लोग अमर यानि कि देव तुल्य हैं ! बहरहाल स्वर्गलोक जैसे इस स्थान पर किसी देवी तुल्य स्त्री का गर्भवती हो जाना और उसके पति द्वारा रुष्ट होकर, पत्नि को अगाध जल में धकेल देने के दो प्रातीतिक अर्थ हो सकते हैं, एक यह कि उक्त युवती का गर्भवती हो जाना, देवताओं के अयोनिज होने की धारणा खंडन करता है और दूसरा सर्वाधिक महत्वपूर्ण यह कि धरती सृजन की पूर्व निर्धारित योजना / लीला के अंतर्गत पत्नि को जानबूझ कर उस जलीय संरचना की ओर भेज दिया गया, जिसकी कोख से धरती का सृजन संभव था !

यह जानना रुचिकर है कि आकाश द्वीप में एक वृक्ष, रौशनी का स्रोत है जबकि सूरज और चांद, धरती की निर्मिति के उपरान्त, उसकी आवश्यकता के अनुसार सृजित किये जाना हैं ! कथा गहरे पानी में, अन्य जल जीवों की तुलना में मेढक के अधि-सामर्थ्य का बयान करती है और देवलोक से निष्कासित गर्भवती की प्राण रक्षा करने के आशय से, जल जीवों के दयावंत होने का कथन करती है और यह सन्देश भी देती है कि मनुष्यों को, जल जीवों की इस कृपा के लिये सदैव कृतज्ञ बने रहना चाहिए ! अतल जल से मेढ़क के मुंह भर कीचड़ का प्राप्य और फिर सभी जल जीवों द्वारा विशाल कछुवे की पीठ पर उस कीचड़ को बिखेर देने का कथन सांकेतिक है, अगर हम स्मरण करें, तो पाते है कि अन्य बड़ी और महान सभ्यताओं में भी धरती के, विशाल कछुवे की पीठ पर टिके होने के वृत्तान्त सहज उपलब्ध हैं !

यही नहीं देवताओं और असुरों के एक ही पिता की संतान होने के कथन भी सर्व सुलभ हैं, यदि इसे भारतीय सन्दर्भ में देखा जाये तो देवताओं और असुरों की मातायें परस्पर बहने थीं लेकिन पिता एक ही, ऋषि...देवतुल्य ! धरती, तारों और ब्रह्माण्ड की निर्मिति में पदार्थों की समरूपता के विवरण विज्ञान देता है , अगर इस अनुश्रुति को ध्यान से पढ़ा जाए तो हम पाते हैं कि गर्भवती स्त्री ने धूलि कणों को बिखेर कर चांद, तारों और सूरज की रचना की, प्रतीकात्मक रूप से धूल को ब्रह्मांडीय पिंडों के निर्मायक तत्व / पदार्थ के रूप में स्वीकार करना कठिन नहीं है, खासकर तब जब कि निरक्षर आदिवासी यह कथन कर रहे हों ! बहरहाल गर्भवती स्त्री के दो पुत्रों का देव और दानव के रूप में जन्म लेना सर्वथा सांकेतिक कथन है, जो मनुष्यों के अच्छे और बुरे होने, फिर सृजन और विनाश में लग जाने की प्रवृत्तियों का विवरण देते हैं !

अच्छी और बुरी / दैव और आसुरी शक्तियों के मध्य सतत संघर्ष धरती की सर्वकालिक गाथाओं में मौजूद अनिवार्य, आधार तत्व है, इन सभी गाथाओं का अंत, देव-तुल्य के धरती और देवलोक में बने रहने तथा पराजित आसुरी शक्तियों को पाताल लोक में धकेल दिये जाने, पर होता है, ठीक वैसे ही जैसे कि इस कथा के नायक अंकुर और खलनायक चकमक के युद्ध के बाद हुआ...