रविवार, 11 नवंबर 2012

परिंदों के जागने से पहले के ख्वाब...!

पक्की खबर थी कि ज़िन्दगी हमेशा बंदे के इशारों पे नहीं चलने वाली, सो बंदा खुद उसके इशारों पर नाचता रहा ! पिछले कई दिन, बेहद मसरूफियात के, कोफ़्त भरे...खुद को लानत भेजते हुए, अपने ब्लॉग पर एक अदद अपडेट को तरसते हुए ! कभी कभार फेसबुक की पनाह ली भी तो इस तर्ज़...गोया भागते दौड़ते कोई ट्रेन पकड़नी हो ! काम काज अपनी जिस्मानी औकात से बड़े, बेहद उबाऊ, लकीरें पीटने जैसे पर फटेहाल वक़्त खाऊ ! ख्याल ये कि अगर वक़्त अपने हमख्याल ना गुज़रे तो समझ लीजिए कि आपकी ज़िन्दगी, इहलोक में ही ज़हन्नुम हो जाने वाली है ! दोस्तों से फोन पे बातें / अनहुई मुलाकातें,  दोस्तों की दुश्चिंताओं में बदल गईं, उनकी बदगुमानियों के कोई छोर नहीं...अपना हाल ये कि जा तन लागी सोई जाने !

आज दिन तमाम, खूब सोया, आलोक पर्व की चार रोजा छुट्टी का पहला दिन, कोई ख्वाब नहीं, एकदम बेसुध नींद ! परसों रात ही...खबर नहीं कि सोया था...अधसोया...कि बंद आँखों जागा जागा सा...पर ख्वाब ज़रूर अटक गये स्मृतियों की टहनियों पे ! सुबह सुबह आँखों पर पानी के छींटे मारने से पहले डायरी पर दर्ज़ किये किस्से ! अपनी भरी पूरी अयालों के साथ वनराज हमारे लोहे के पिंजड़े में क़ैद, अंजाने ही, दोस्तों ने पिंजडा खोल दिया, सो हमारी फ़िक्र ये कि वे किसी को नुकसान ना पहुंचा दें ! उन्हें दोबारा कैद करने की तमाम कोशिशें बेकार ! खबर नहीं कि वे किस जुबान में हमसे मुखातिब हुए पर हमने साफ़ साफ़ सुना और समझा कि उन्होंने कहा, अब बहुत हुआ, आप हमें फिर से बाँधने की फ़िराक में है ! आपको कैसा लगेगा अगर इसी पिंजड़े में हम आपको क़ैद कर दें तो ?

अंदाज़ ये कि कहीं किसी रोज गणराज भी उन्मुक्त होकर घूमने लगें और हुक्काम से कह बैठे, अब बहुत हुआ जनाब...! फिलहाल रात मुकम्मल गुज़री नहीं थी सो हम भी ख्वाब ख्वाब शुद् नींद में मुब्तिला खेत के दरम्यान खुद को मौजूद पाते हैं ,गेंहूँ की पकी हुई बालियाँ...फसल पककर लगभग काटने की उम्र सी ! उधर खेत के दूसरे छोर से खाये अघाये, सुपुष्ट सुफैद गाय बैल खेत को रौंदते हुए नमूदार हुए, हमारी हांक...चिल्ला चोट बेकार ! उन्होंने सुनी ही नहीं ! अपना ख्याल ये कि, खेत किसी और का था, मेहनत भी उसकी थी और फसल तो खैर उसकी थी ही...पर जानवर किसी और जानवर के थे / किसी दूसरे के ! बेख़ौफ़, बेदर्द, बेमुरव्वत...शायद उनका मालिक भी ऐसा ही...! इधर हम तीसरे पक्ष बतौर हालात को समझने वाले, चीखे चिल्लाये बहुत...पर रौंदने वालों ने सुनी ही नहीं ! 

यूं तो उस रात, ख्वाबों या ख्याल सा जो भी देखा, उसके मायने स्वप्न फल वाले कैलेंडर में फिट ही नहीं बैठते, लेकिन अपनी उम्मीद ये कि एक दिन फसलों को रौंदने वाले दूसरों के खिलाफ, तीसरे सचेत पक्ष के हमकांधा दबे कुचले पहलों के सुर भी बुलंद होंगे और तब जानवरों को पालने वाले जानवरों का जीवन नर्क हो जाएगा या शायद उससे भी बदतर ! बहरहाल अपने ख्वाब टूटने से पहले परिंदे जागे नहीं थे और सुना ये है कि भोर के / पहली पहर के ख्वाब हमेशा सच होते हैं ! मुमकिन है, किसी रोज बड़ी बड़ी अयालों वाले सिंह साहबान भी शाही पिंजड़ों के विरुद्ध बगावत कर दें, उस रोज...का इंतज़ार शिद्दत से है मुझे ! भले ही तीन बाद मेरी छुट्टियाँ खत्म हो जायेंगी और मैं फिर से मसरूफ हो जाऊँगा वाहियात से कामों में...लेकिन काम काज की व्यस्तता भरे दिनों के बाद आने वाली हर बेचैन रात के ख्वाब, मुझमें किसी बेहतर की आस / एक हौसला तो कायम रखते ही हैं !


 [ मित्रों एक बेचैन रात का बेतरतीब, ख्वाब या ख्याल सा था उसके मायने / प्रतीक अपने हिसाब से तय करने की कोशिश की है, ज़रुरी नहीं कि मायनों के मामले में आप मुझसे मुकम्मल सहमत ही हो जाएँ , सो मेहरबानी करके अपनी ज़रूर कहें ...आपका स्वागत है ]

18 टिप्‍पणियां:

  1. अपनी नींद , ख़्वाब और होश का गोया यही हाल है,
    फुरसत का कोई लम्हा जिस रोज़ मुहैया होगा, आपसे, सबसे मुख़ातिब हूँगा !
    .
    .एक उम्दा नज़्म है यह ।

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  2. .
    .
    .
    सोता तो मैं भी खूब हूँ... बिस्तर पर लेटने के बाद पाँच मिनट भी नहीं लगते कभी भी नींद के आगोश में जाने में... सोता भी इतना बेसुध होकर हूँ कि आप बगल में नगाड़े भी बजा सकते हैं, पर अपनी नींद कोटा पूरा होने पर ही टूटेगी... पर न जाने क्यों कोई सपना याद ही नहीं रहता... हो सकता है कि देखता ही नहीं हूँ... :(

    काम काज की व्यस्तता भरे दिनों के बाद आने वाली हर बेचैन रात के ख्वाब, आप में किसी बेहतर की आस / एक हौसला कायम रखते हैं...पर मुझे लगता है कि गर किसी रोज बड़ी बड़ी अयालों वाले सिंह साहबान अगर शाही पिंजड़ों के विरुद्ध बगावत कर भी देंगे तो मारे फिर भी हिरन और खरगोश ही जायेंगे उन आजाद वनराजों के हाथ...

    हाँ, एक दिन फसलों को रौंदने वाले दूसरों के खिलाफ, तीसरे सचेत पक्ष के हमकांधा दबे कुचले पहलों के सुर भी बुलंद होंगे और तब जानवरों को पालने वाले जानवरों का जीवन नर्क हो जाएगा या शायद उससे भी बदतर... भले ही यह खवाब हो पर जीने का हौसला देता ख्वाब है ...


    ...

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    1. (१) नींद अच्छी आये ये तो बढ़िया बात है !

      (२) सिंह साहबान की बगावत के बाद का आपका अंदेशा दुरुस्त है, उससे पूरी सहमति !...पर ख्वाब तो ख्वाब ही है, वो इसी शक्ल में आया ! मुमकिन है ख्वाब में बगावत की पहल करने वाले, पहले तबके की तस्वीर निकटस्थ राइवल की रही हो / बनी हो , जिसे अपेक्षाकृत ज्यादा आक्रामक होना ज़रुरी लगता हो ! शायद इसीलिए, इस ख्याल में हिरन और खरगोश की बगावत तक बात ही नहीं पहुँची !

      (३) तसल्ली ये कि अगला ख्वाब पहले ख्वाब में हुई चूक की भरपाई करता है !

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  3. @ मुमकिन है, किसी रोज बड़ी बड़ी अयालों वाले सिंह साहबान भी शाही पिंजड़ों के विरुद्ध बगावत कर दें, उस रोज...का इंतज़ार शिद्दत से है मुझे !..................na jane kitno ka khwav-e-intzar hai ye.........


    pranam.

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  4. देख लो ख्वाब मगर ख्वाब का चर्चा ना करो
    लोग जल जाएँगे सूरज की तमन्ना ना करो!
    ख्वाब बच्चों के खिलौनो की तरह होते हैं
    ख्वाब देखा ना करो ख्वाब दिखाया ना करो!
    कफील आज़र साहब की इस गज़ल को सुनने के बाद तो ख़्वाबों की नो एंट्री का बोर्ड लगाकर ही सोता हूँ.. वैसे भी एक बजे के बाद सोने जाना और आठ बजे जगना.. ख्वाब गेट-क्रैश करके एंट्री-मार भी लें तो हमें पता है कि ये लगते तवील हैं पर होते बड़े मुख़्तसर हैं..
    /
    आपका अंदेशा गलत था कि वो किसी को नुकसान पहुंचा सकते थे.. दरअसल पिंजड़े में एक अरसे तक बंद रहने के बाद वनराज खूंखार नहीं रहता.. वो तो उसे क़ैद करने वाले उसका डर दिखाकर अपना मतलब साधने में लगे होते हैं. वनराज नुकसान पहुंचा ही नहीं सकटे.. क्योंकि वो अयाल उन्होंने बांधकर रखी होती है, कभी इस्तेमाल करके देखते तो कुछ और बात होती!!
    /
    और दूसरे ख्वाब की ताबीर क्या कहें वो तो प्रिमोनिशन लग रहा मुझे!!
    /
    आलोक-पर्व की शुभकामनाएँ!!

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    1. टिप्पणी कमाल है ! प्रतिक्रिया क्या दूं , बहुत देर हो चुकी है ! फिलहाल शुक्रिया !

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  5. सही है सिंहावलोकन, ज्योतिपर्व की शुभकामनायें!

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  6. तीसरे पक्ष बतौर हालात को समझने वाले, चीखे चिल्लाये ,तकरीरें करें , खुली आँखों से या बंद आँखों से ख्वाब देखें...कोई फर्क नहीं पड़ने वाला।
    जबतक या तो वे मालिक नहीं बन जाते या फिर फसलों के बीच खड़े हो उन बेमुरव्वत जानवरों को सींग से पकड़ कर निकाल बाहर नहीं करते ।

    आप तो बड़े अर्थपूर्ण ख्वाब देख लेते हैं। ख्वाब तो हमें भी नहीं आते,न खुशनुमा न खौफनाक न अर्थपूर्ण :(

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  7. परिंदो के जागने से पहले के ख्वाब दिमाग की घिर्री तेज कर देते हैं शायद इसीलिए कुछ ऐसा हुआ होगा कि ख्वाब ने वनराज को देखा और दिमाग ने उसे कहते सुना।

    जानवर किसी और जानवर के थे..फिर उस जानवर का मालिक कौन?

    आपके ख्वाबों वाली पोस्ट पर कभी पढ़ा था कि आपके ख्वाब सच होते हैं। दुआ करता हूँ कि ख्वाबों से जगी आपकी उम्मीदें हकीकत में बदलें और अंधेरों के घर भी खुशियों से रौशन हों..आमीन।

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    1. आभार मित्र ! मिलकियत पता चलते ही खबर करूँगा :)
      मेरा मतलब , शायद अगले ख्वाब में ये मुमकिन हो :)

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  8. कभी सोचता हूं कि‍ अभी तो शनि‍वार इतवार की इंतज़ार में हफ़्ता गुज़र जाता है, रि‍टायरमेंट के बाद क्‍या होता होगा जब रोज़ ही इतवार होता होगा ...

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    1. रिटायर्ड मित्रों की दिनचर्या देखता हूं तो परेशान हो जाता हूं कि मुझे भी ये दिन देखना पड़ेंगे !

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