शनिवार, 18 अगस्त 2012

श्वान और मृत्यु...!

शुरुवाती दिनों में लोग , मृत्यु के भय के बिना खुशी खुशी रहते थे ! हुआ ये कि एक सुबह ईश्वर इमाना , मृत्यु का पीछा कर रहे थे ताकि वे  उसे , मनुष्यों की भूमि से बाहर निष्कासित कर दे ! ईश्वर , मृत्यु को लगभग पकड़ने ही वाले थे कि मृत्यु ने एक श्वान पर आधिपत्य जमा लिया और फिर श्वान भागते हुए एक छोटी सी झोपड़ी में जा घुसा , जहां एक वृद्ध स्त्री अलाव के निकट बैठ कर स्वयं को गर्म रखने का यत्न कर रही थी ! मृत्यु ने वृद्धा से कहा कि मुझे छुपा लो , यदि ईश्वर मुझे खोजते हुए यहां आये और मेरे बारे में पूछे तो कह देना कि मृत्यु यहां नहीं है ! एक श्वान को बोलते देखकर वृद्धा आश्चर्य चकित हुई तथा उसने , उसे अपने बिस्तर के नीचे छुपा दिया और स्वयं झोपड़ी के द्वार पर आकर बैठ गयी ! 

इधर मृत्यु का पीछा करते हुए ,  अचानक ईश्वर तीव्र गति से प्रकट हुए और वृद्ध स्त्री को देखकर ठिठके , उन्होंने स्त्री से पूछा , क्या आपने मृत्यु को देखा है ?  स्त्री ने कहा नहीं ,  श्रीमान ,  मुझे कम दिखाई देता है , मृत्यु यहां नहीं है ,  हो सकता है कि , वह यहां से भागते हुए निकल गयी हो !  लेकिन ईश्वर सर्वज्ञानी थे , सो उन्होंने कहा , चूंकि , आपने मृत्यु को छुपाया है  , इसलिये आज से वह आप पर आरोपित हुई !  आख्यान से स्पष्ट तथ्य यह कि वृद्ध स्त्री , एक श्वान की प्राण रक्षा के यत्न में मनुष्य जाति का अमरत्व गवां बैठी , यदि उसने ईश्वर से झूठ नहीं बोला होता तो मनुष्य की नियति में मृत्यु सम्मिलित ही नहीं थी ! 

इस अफ्रीकी आख्यान के बरअक्स तंजानिया में ही प्रचलित आख्यान कहता है कि ,  बहुत पहले एक निर्धन व्यक्ति के पास ना तो रहने की कोई जगह थी और ना ही करने के लिए कोई उद्यम !  अतः वह अपने कुत्ते के साथ गांव के मुखिया के पास जा पहुंचा , मुखिया ने गर्मजोशी से उसका स्वागत किया और उसे अपने परिवार के सदस्य की तरह से रहने की जगह दी तथा उन दोनों के लिए भोजन की व्यवस्था की !  कालांतर में मुखिया का शत्रु रात्रि के समय मुखिया को जान से मारने के लिए आया , किन्तु कुत्ते के भौंकने से सब जाग गये और मुखिया की जान बच गयी ! 

इसमें कोई आश्चर्य नहीं कि , अपनी मृत्यु के लिए पशुओं को दोषी ठहराने की कथायें गढ़ना , मनुष्य का प्रिय शगल रहा है , जहां पहली कथा मृत्यु के आधिपत्य / वश में फंस गये श्वान के बहाने मनुष्य की अनश्वरता को आख्यायित करती है , वहीं दूसरी कथा का श्वान सारे विश्व का सर्वप्रिय / भरोसेमंद पालतू जीव है और मनुष्य के समाज में उसकी विश्वसनीयता की गाथायें प्रचुरता से कही / सुनी जाती हैं ! इस नज़रिये से वृद्धा द्वारा श्वान को आश्रय दिया अत्यंत सहज और स्वाभाविक बात है , किन्तु उल्लेखनीय बात यह कि , शरणदाता का सहज व्यवहार शरणदाता पर भावी आपदा का कारण भी हो सकता है ! 

कथा में मानव समाज के भरोसेमंद पालतू के शरणागत होने का सम्मान करने वाली वृद्ध स्त्री ने आगंतुक ईश्वर से केवल एक झूठ बोला कि मृत्यु , संभवतः वहां से गुज़र गयी हो, उसने मृत्यु की आवाजाही को नहीं देखा, क्योंकि उसे कम दिखाई देता है !  ईश्वर को झूठ अप्रिय है , अतः उन्होंने मानव जाति पर मृत्यु को आरोपित करने में क्षण मात्र की भी देरी नहीं की, हालांकि वे मृत्यु को मानव जाति से दूर रखने की कवायद के अधीन मृत्यु का पीछा कर रहे थे ! संभव है , ईश्वर का यही भाव कि वो जिस मानव जाति का कल्याण करने जा रहे हैं , वो ईश्वर की सदाशयता के लिए सर्वथा अपात्र है , ईश्वर , उसके हित में जिस मृत्यु का निषेध चाहते थे मनुष्य उसी का हितरक्षक बन अमरत्व का निषेध कर बैठा !

इस आख्यान से प्रथम दृष्टया 'श्वान की मृत्यु' के कथन वाला हास्य बोध भले ही उपजता हो , पर स्पष्ट सन्देश यह है कि ईश्वर , मनुष्य की अवज्ञाओं से कुपित होकर ही उसे दण्डित करते हैं  , अन्यथा वे तो उसे अमरत्व प्रदान करने के लिए भी संकल्पित थे ! यहां ईश्वर मनुष्य के  हितचिन्तक हैं ,  किन्तु मनुष्य अपनी अयोग्यता / विफलता के चलते उनकी अनुकम्पा से विरत बना रहता है ! अतः प्रतीत यह होता है कि यह कथा सांकेतिक रूप से सम्यक / उचित निर्णय लेने में मनुष्य की निर्योग्यता को रेखांकित करती है !

40 टिप्‍पणियां:

  1. हम यहाँ यह सवाल नहीं उठा रहे हैं कि ईश्वर सर्वज्ञानी होते हुए भी मनुष्य से वह पूछते हैं ,जिसका उत्तर उन्हें आता है.ज़ाहिर है,इसका उत्तर यही होगा कि वे तो बस मनुष्यों का सचाई का इम्तहान ले रहे थे.

    ...अमरता के बारे में मनुष्य की लालसा अनंतकाल से रही है पर सृष्टि के हित में प्रकृति(ईश्वर)भी ऐसा नहीं चाहता.इसलिए ईश्वर के खास भक्तों ने ही इस कमी को कालांतर में अपने मत्थे ही मढ़ लिया |
    ...कई बार यह सिद्ध हो चुका है कि पशु(श्वान) मनुष्य के लिए कहीं बेहतर और ईमानदार साथी हैं.

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    1. संतोष जी,
      ईश्वर के सर्वज्ञानी होने के बावजूद प्रश्नोत्सुक बने रहने बाबत आपका ये आशय उचित प्रतीत होता है कि वे इम्तहान ले रहे होते हैं :)

      लालसाओं की पूर्ति और वंचना से जुड़े हुए मनुष्य के निज अनुभव ही उससे इस तरह के आख्यान कहलवाते हैं !

      आपकी प्रतिक्रिया पसंद आई !

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  2. मृत्यु और अमरता मनुष्य के चेतन अवचेतन का एक बड़ा द्वंद्व रहा है ....इनसे अनेक लोककथाओं ने जन्म लिया है .. श्वान का मतलब कुत्ता ही होता है न ? :-)

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    1. अरविन्द जी,
      ये संतोष किया जाये कि,कम से कम मृत्यु और अमरत्व को लेकर मनुष्य का वैचारिक उहापोह तो अमर है ही!

      श्वान को लेकर मेरी शाइस्तगी पर सवाल क्यों :)

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  3. मुझे लगता है की हर संस्कृति में मौत के देवता की परिकल्पना है जैसे हिन्दू धर्म में यमराज की और यूनानी सभ्यता में भी ज्यूस के भाई ( नाम याद नहीं आ रहा है ) को भी मौत का देवता कहा गया है , नर्क, जहन्नुम आदि बातो को देखे तो मनुष्य के किसी भी समय अमर होने की कहानी झूठी लगती है , आप की व्याख्या सही है की अमरता की बात महज व्यक्ति के व्यवहार को नियंत्रित करने के लिए समाज में अराजकता फैलने से बचाने के लिए ही किया गया है , ताकि अमर रहने के लालच में मनुष्य सभ्य बना रहे | वैसे ये भी कहानी का विरोधाभास है की कहानी में मौत का ना होना तो बताया जा रहा है किन्तु साथ में बुढ़ापा और उससे जुडी परेशानियों को कायम रखा गया है संभवतः ये मौत आने से पहले होने वाले कष्टों को दिखाने के लिए ये कहा गया हो , वैसे कुत्तो के रात्रि में रोने को आज भी मौत की आहट कहा जाता है |

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    1. सबसे पहले ये कि आपकी प्रतिक्रिया बहुत अच्छी है ! उसके बाद ये कि ...
      मृत्यु के औचित्य को स्थापित करने तथा उसे मनुष्य के लिए सहज स्वीकार्य बनाने के लिए बुढ़ापे का कष्ट / परेशानियों / व्याधियों वगैरह की उपस्थिति अपरिहार्य मानी जाए , ताकि देह की सीमाओं और अमरत्व की तुलनात्मक स्थिति का उसे भान हो सके !

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  4. मृत्यु के भय और अमर होने की लालसा ने ...सदियों से मनुष्य के मन पर आधिपत्य कर रखा है. और इसी भय और लालसा ने सैकड़ों कहानियों को जन्म दिया है. अमरता ना प्राप्त कर पाने की अवस्था के लिए मनुष्य खुद को ही दोषी ठहराता है या फिर शायद आत्म संतोष के लिए ऐसा सोचता है..ये वजह रही होगी वरना अमरता तो मिलनी ही थी.

    दूसरी कहानी बहुत भली सी है...मुखिया का एक गरीब की सहायता करना...और उस गरीब का अपने ऊपर इस अहसान का बदला मुखिया की जान बचा कर देना...मानवता के अस्तित्व में विश्वास जगाता है. श्वान तो हमेशा से ही अपने पालक की मदद करने वाले माने गए हैं.

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  5. कथा चाहे कुछ भी कहती हो, पर जीव मात्र का मृत्‍यु के साथ जो रिश्‍ता है, वह कभी नहीं बदल सकता।

    ईद के मुबारकबाद एडवांस में कुबूल फरमाएं।

    लगे हाथ आपको बता दूं कि ब्‍लॉगर्स के नाम महामहिम राज्‍यपाल जी का संदेश आया है। क्‍या पढ़ा आपने?

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    1. @ रिश्ता बदल नहीं सकता ,
      हमें बदलने से बड़ी उम्मीदें थीं पर आपने झटके से दिल तोड़ दिया :)

      @ ईद ,
      आपको भी बहुत बहुत मुबारकबाद !

      @ महामहिम का सन्देश ,
      बधाई हो ,वैसे इस बाबत अपनी फीलिंग्स आपके यहां धर आये हैं :)

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  6. ईश्वर द्वारा अमरता के दिए वरदान को स्वयम मनुष्य ने गँवा दिया . सर्वज्ञानी ईश्वर से झूठ बोलने का नतीजा था , ईश्वर जब सर्वज्ञानी थे तो पूछते क्यों थे , मानव के उचित निर्णय ना ले पाने की योग्यता को मापना ही कारण रहा हो .
    रोचक !

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    1. @ सर्वज्ञानी ईश्वर के सवाल,
      ज्ञानीजन इसे प्रभु की लीला कहते हैं :)

      योग्यता /पात्रता मापने का ख्याल ही बेहतर लगता है !

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  7. इन दोनों आख्यानों से, मृत्यु से अलग एक बात समझ में आयी.. हमारे पूर्वज कहा करते थे कि घर पर नौकर भी "पाँव देखकर" रखो.. हमारे घर पर एक सेवक ने जब वेतन वृद्धि की मांग की तो आस-पास के सभी गृहस्वामियों ने उसे काम से हटा दिया, किन्तु हमारे पितामहश्री का यह कहना था कि उसे रहने दो.. उसके पैर बड़े शुभ हैं. और जब तक उसने हमारे घर काम किया, समृद्धि में आशातीत वृद्धि होती रही.
    /
    यहाँ भी एक श्वान को आश्रय देने के दो पहलुओं पर दृष्टिपात करें, तो यह स्पष्ट होता है कि एक ओर वह मृत्यु का कारण बना और दूसरी ओर मृत्यु को टालने वाला. आज भी समाज में व्यक्ति के आचरण इन्हीं कारणों से निर्धारित होते देखे गए हैं. कोई कारण किसी के लिए शुभ होता है - कोई अशुभ. (विश्वास-अंधविश्वास से दीगर स्टेटमेंट)
    /
    अब तक के आख्यानों से जो मैंने जो बातें समझी हैं -
    १. मृत्यु अवश्यम्भावी है.
    २. अमरत्व एक मरीचिका है, एक स्वर्ण-मृग.
    ३. ईश्वर मनुष्यों को अमरत्व प्रदान करने दिखावा मात्र करता है (इस आख्यान में भी जब उसे पता था कि मृत्यु कहाँ छिपी है तो जान-बूझकर उस वृद्धा को क्यों माध्यम बनाया).
    ४. चूँकि ये सारे आख्यान मनुष्यों ने रचे हैं, इसलिए तब भी उन्हें आशा रही होगी कि ईश्वर सम्पूर्ण है और वह "सच में" उन्हें अमरत्व प्रदान करना चाहता है, अतः उन्होंने तमाम रचित आख्यानों में स्वयं (मनुष्य जाति) को दोषी ठहराया है.
    /
    "श्वान की मृत्यु" वाला मुहावरा वो असर नहीं पैदा कर सका जो हिन्दी फिल्मों ने "कुत्ते की मौत" से पैदा किया है. :)
    /
    हमारे यहाँ आज ही ईद है. इसलिए हमारे पूरे परिवार की जानिब से आप को सपरिवार मीठी ईद की मीठी शुभकामनाएं!! ईद मुबारक!!

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    1. आपके यहाँ आज ईद है तो आपको आज ईद मुबारक।

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    2. सलिल जी ,
      पितामहश्री का अनुभवजनित निर्णय सही था !

      हां , यही कि मनुष्य के जीवन में , एक ही बात / तथ्य दो तरह के परिणाम दे सकती है तब शायद परिस्थिति अधिक महत्वपूर्ण होती हों !

      आख्यान पर आपकी समझ (४ बिंदु ) से पूर्ण सहमति ! ईश्वर मनुष्य को भलीभांति जानता है ! वह उसके बेहतरीन होने के भ्रम को बनाये रखता है किन्तु परिणाम यथार्थवादी देकर ! आप ईश्वर को मनुष्य के मयार से पोलिटिशियन / छलिया भी कह सकते हैं , पर मैं कहूँगा वो बड़ा यथार्थवादी है , मनुष्य को उसकी औकात का नाप कर देता है , कहे भले ही कुछ भी !

      शाइस्तगी के चक्कर में उसे कुत्ते की मौत नहीं लिखा सो असर जाता रहा आप कहें तो असर पैदा करूं :)

      हमारे यहां ईद मंगल को होने वाली है सो आपकी शुभकामनायें अग्रिम बतौर दर्ज की गईं :)

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    3. देवेन्द्र जी ,
      आपको भी मंगलवार के दिन वाली ईद के लिए बहुत बहुत मुबारकबाद !

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    4. आपको भी अग्रिम मुबारकबाद।

      चाँद गुजरात से छत्तिसगड़ तक का सफर बड़े धीरे-धीरे तय कर रहा है! हमारे यहाँ सोमवार को ईद है।

      वैसे..

      जा दिन छुट्टी वा दिन ईद।
      जा दिन मीठी सेंवई वा दिन ईद।
      जा दिन नये कपड़े वा दिन ईद।
      जा दिन दान-धरम वा दिन ईद।
      जा दिन नेकी वा दिन ईद।
      जा दिन ईदी वा दिन ईद।
      :)

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  8. वही हुआ जिसका डर था.. आपकी टिप्पणी मेरे यहाँ स्पैम में चली जाती थीं, तो आपने भी हिसाब बराबर कर दिया!!

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    1. तो इस तरह से गूगल बदला भंजाने वाले बन्दों में हमारा भी शुमार करा गया :)

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  9. ईश्वर कुपित होकर दंड और चापलूसी भरी प्रार्थना करने पर प्रस्सन होकर पुरस्कृत भी करते है यह जानकारी सत्यनारायण कथा से तो मिलती है आप के पोस्ट से भी मिली .दिलचस्प

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    1. @ सत्यनारायण कथा,
      ज़ाहिर ये कि पता तो आपको भी था ही , पोस्ट ने तो केवल उस जानकारी को रिपीट किया है :)

      ( सिंह साहब अगर ईश्वर सच में होता हो तो उसे बेहद चापलूसीपसंद माना जाये )

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  10. पहली कथा कहती है कि शरणार्थी के प्रति सहिष्णुता इतना भी नहीं होना चाहिए कि मृत्यु आरोपित हो जाय।

    दूसरी कथा कहती है कि शरणार्थी जीवन दाता भी हो सकता है अतः सहिष्णु बनो।

    दोनो से सम्मिल संकेत यह कि शरण देने के मामले में बुद्धि-विवेक का इस्तेमाल करो, पूर्वाग्रही मत बनो। मृत्यु अटल है उसे ईश्वर भी नहीं टाल सकते।

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    1. आपके सम्मिलित निष्कर्ष से सहमति !

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    2. मौत का एक दि‍न मुअय्यन है, फि‍र नींद क्‍यों रात भर आती नहीं...


      कैसी कैसी कहानि‍यां गढ़ लेता है इन्‍सान, एक सच को झुठलाने के लि‍ए

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    3. जी काजल भाई दुरुस्त फ़रमाया आपने !

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  11. श्वान केवल संदेश वाहक था मृत्यु का
    आज भी माना जाता हैं की अगर रात को कुत्ते { श्वान को कुत्ते कह दिया हैं !!} के रोने की आवाज सुनाई देती हैं तो मृत्यु का सन्देश हैं .
    अमरता का जीवन या मृत्यु से क्या लेना देना , अमरता तो आत्मा से जुड़ा होता हैं . शरीर नश्वर हैं अब नश्वर में वर हैं ये ध्यान देने वाली बात हैं शायद इन आख्यानो में स्त्री शरीर की क़ोई गति मानी नहीं जाती होगी इस लिये उसका नाश संभव ही नहीं होता होगा { नाश केवल वर का हुआ } . कभी कभी बड़ी इच्छा होती हैं की आख्यानो को कौन लिख गया ये पता चले .
    अमरता पा कर क्या होता ???? कहां समाते शायाद पृथ्वी का वर्ग फल ना झेल पाता आपस में लड़ते/सड़ते क्युकी अमरता में चिर यौवन की बात नहीं हैं

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    1. माना ये जाता है कि श्वान रुदन का कारण वे आत्मायें हैं जो उसे दिखती हैं या फिर निकट के किसी इंसान की मुक्ति का सन्देश है ! अगर इस बिंदु से हट कर सोचें तो भी श्वान रुदन के समय की आवाज़ भली नहीं लगती !

      आपकी ये बात सही है कि अमरता का वास्ता आत्मा से है पर इंसान यह जानकर भी सशरीर अमरता चाहता है उसकी चाहना उसके सत्य से भिन्न होती है जिसे वह जानकर भी स्वीकार नहीं करना चाहता ! यदि मातृसत्तात्मक समाजों को पुरुष सत्ता की ओर से प्रतिस्थापित नहीं किया गया होता तो शायद आख्यानों में पुरुष शरीर के बारे में भी वही कथन देखने को मिलते जो पुरुष प्रभुत्व वाले समाज के आख्यान में मिलते हैं !

      आख्यानों को कहने वालों की पहचान की आपकी ख्वाहिश पे , टाइम मशीन का ख्याल आया जो मोटे तौर पर अमरता / नित्यता का एक कामचलाऊ विकल्प हो सकती है , जहां अपने जीवनकाल से हटकर बीते क्षणों को फिर से जिया सकता हो या उनमें आगे के लिए सुधार किया जा सकता हो !

      आपकी इस बात से सहमति कि हमारी शारीरिक अमरता से पृथ्वी की शारीरिक अधोगति हो गयी होती ! अमरता देवताओं के पास भी है पर वहाँ यौवन के क्षीण होने का भय नहीं है अतः मुझे लगता है कि इंसान जिस अमरता का तलबगार है वह सशरीर और चिरयौवन की कामना वाली है यानि कि देवताओं जैसी !

      समय पर प्रतिक्रिया नहीं दे सका ! आपकी टिप्पणी पोस्ट को नई दिशा देती है और सोच का नया आयाम भी !

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    2. @ अमरता देवताओं के पास भी है पर वहाँ यौवन के क्षीण होने का भय नहीं


      क्या सच में देवता को "अमरता देवताओं के पास भी है पर वहाँ यौवन के क्षीण होने का भय नहीं"
      मुझे पता नहीं क्यूँ लगता हैं की अमरता / चिर यौवन , देवता जैसा, केवल और केवल उस मायावी शक्ति को प्राप्त करने का पर्याय लगता हैं जिस की वजह से कथित रूप से देव और दानव दोनों जब जैसा चाह वैसा रूप धर लिया

      अगर देवता चिर युवा रहते तो फिर ये सब चित्र क्यूँ बने
      लिंक देखिये
      http://www.ravi-joshi.com/htmls/Photo_Gallery.html#7
      also
      https://www.google.co.in/search?um=1&hl=en&client=firefox-a&hs=am&rls=org.mozilla:en-US%3Aofficial&tbm=isch&sa=1&q=lord+brahma&oq=lord+brahma&gs_l=img.12..0l10.296.296.2.5751.1.1.0.0.0.0.532.532.5-1.1.0...0.0...1c.NY5yEL5SUfQ&pbx=1&bav=on.2,or.r_gc.r_pw.r_cp.r_qf.&biw=1261&bih=627&ech=1&psi=aGs4UJ3fO8SIrAeulYCYBA.1345874842483.7&emsg=NCSR&noj=1&ei=vWs4ULKxDcqHrAfAxYDIAQ

      ब्रह्मा आप को कहीं भी युवा नहीं दिखते

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    3. मनुष्य शक्ति का अभिलाषी हैं अमरता का नहीं , वो एक ऐसी शक्ति चाहता हैं जो उसको अपने शरीर को अपने हिसाब से { माया } बना / बड़ा / घटा सके . अमरता महज एक छलावा प्रतीत होती हैं जब शरीर की बात होती हैं

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    4. सामान्यतः ब्रह्मा निराकार कोटि के देवता हैं फिर भी उन्हें चित्रकार (मनुष्य) ने जिस रूप में अनुभव किया वैसा बनाया ! ये छवि दशकों से जस की तस है ना घट ना बढ़ ! यहां मसला 'विजन' का है जो हम चित्र में देवताओं को प्रौढ़ देखते है पर यौवन में चिर नवीन समझते है ! यौवन की हमारी समझ खुद के लिए , देवताओं के शरीर / छवि बनाम उनके यौवन से बिल्कुल अलग तरह की है क्योंकि हम उन्हें अविनाशी और स्वयं को विनाशी की तरह से देखते हैं सो चित्र में स्थिर और स्थायी भाव वाले ब्रह्मा हमारी समझ के अनुसार क्षीण यौवन नहीं हो सकते जबकि हम स्वयं के लिए इसके ठीक उलट विचार रखते हैं !

      चित्र में ब्रह्मा को प्रौढ़ दिखाए जाने की पृष्ठभूमि में यह विश्वास / दर्शन भी निहित हो सकता है कि हर सृष्टि के पृथक ब्रह्मा होते हैं इस हिसाब से एक सृष्टि के ब्रह्मा की अमरता वस्तुतः उस सृष्टि के लिए निर्धारित काल पर आधारित है जोकि हमारे काल की तुलना में सुदीर्घतम है सो हम उन्हें इस नज़रिए से अमर समझते हैं और हमारी सृष्टि के व्यतीत काल क्रम को देखकर उनका प्रौढ़ चित्र बनाते हैं !

      अगर आप अमरता और शक्ति (ट्रांसफार्मेशन सहित) को अलग अलग से देखें तो मैं कहूँगा कि यह संयुक्त रूप से 'देवत्व' है और मनुष्य देवत्व के पीछे भागता है उसे दोनों में से केवल एक नहीं चाहिए !



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    5. शक्ति दानव के पास भी होती हैं पर अमरता के लिये वो तप करता हैं पर फिर भी कभी अमर नहीं हो पता हैं , हर कथा में दानव को अमरता के वरदान के साथ कहीं ना कहीं किसी देव को उसके विनाश का वरदान भी दिया जाता हैं यानी शक्ति अगर देव के पास हैं तो अमर हैं और अगर दानव के पास हैं तो अमर होते हुए भी नश्वर हैं .
      देवत्व में शक्ति , अमरता और "देने की ताकत { the power to give , give and give } " तीन का समागम होता हैं जबकि मानव को अमरता , शक्ति और "पाने की चाह { the desire to get , get and get } " की चाह की कामना होती हैं .
      अक्सर जब क़ोई किसी की बुरे समय में सहयता करता तो दूसरा हाथ जोड़ कर कहता हैं हमारे लिये तो साक्षात भगवान् आप ही हो ,
      कभी भगवान् साक्षात हुआ हैं , देखा हैं किसी ने साक्षात इश्वर ? नहीं केवल भाव मात्र हैं

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    6. उदाहरण के लिए आप सत्ता को देखें , जिसके शिखर पे बैठा बन्दा , ज्यादातर किस्सों में , शिखर के लिए संघर्षरत बंदे को सफल होते देखना नहीं चाहता ! यहां एक बार देवताओं का अपर हैंड हो गया है, सो दानवों की सफलता दूभर , कैसे नहीं होगी / क्यों नहीं होगी ?

      आप गांव / देहात के हर परिवार की कई सगी / रक्त-संबंधी पीढ़ियों को लहुलुहान / मुकदमेबाज़ी में उलझा हुआ पाइयेगा , ये सिलसिला अमर है कभी खत्म नहीं होता , कारण स्पष्ट मानव स्वभाव ! आपको नहीं लगता कि देवताओं और दानवों के आपसी संबंधों में यही मानवीय लक्षण साफ़ दिखाई देते हैं ! सतत संघर्ष के, पारस्परिक वैमनष्य के, दूसरे को लगातार कुचलते रहने की अभिलाषा के और तद्जनित व्यवहार के !

      देवताओं के देने का सामर्थ्य और दानवों के निरंतर पराजित होते रहने का विचार तथा ईश्वर को साक्षात् देखने का भाव मूलतः मानवीय लक्षण हैं जो उसके अपने देवता में प्रकट होते हैं , कमोबेश यही बात मनुष्य की कामनाओं और चाहना की अतृप्ति के सम्बन्ध में भी लागू होती है !

      मेरे ख्याल से देवता और दानव मनुष्य का आभासी जगत हैं , इस जगत का सृजनकर्ता वास्तव में मनुष्य ही है जो अपने आभासी जगत और व्यवहारिक जगत में जबरदस्त घालमेल कर बैठा है और स्वयं उसकी भूल भुलैयों / मारीचिका / कशमकश /सम्मोहन में फंस कर रह गया है !

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  12. अली सा,
    हमारे पूरे परिवार की ओर से आपको सपरिवार ईद की ढेरों शुभकामनाएँ!!

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