कीमाहनाह का ख्याल था कि वह एक अप्सरा से ब्याह करे सो उसने अप्सरा के पिता सूर्य देव को एक पत्र लिखा, इसके बाद वो खरगोश के पास गया और पूछा, क्या तुम पत्र को स्वर्ग ले जा सकते हो ? खरगोश ने कहा कि मैं स्वर्ग नहीं जा सकता, फिर वह मृग के पास गया किन्तु मृग ने भी स्वर्ग जाने में अपनी असमर्थता व्यक्त की ! इसके बाद वो बाज़ के पास गया तो बाज़ ने कहा वो केवल आधी दूरी तक ही जा सकेगा ! तभी एक मेढ़क कीमाहनाह, के पास पहुंचा और उसने पूछा ? तुम स्वयं क्यों नहीं ले जाते इस पत्र को ? कीमाहनाह ने कहा मैं यह नहीं कर पाऊंगा ! इसपर मेढ़क ने कहा , तब इसे , मैं ले जाऊंगा तुम्हारे वास्ते ! कीमाहनाह यह सुनकर हंसा ! क्या एक मेढ़क पत्र को स्वर्ग ले जा सकता है ? उसने कहा ! मेढ़क ने कहा जो भी हो , मैं यह कर सकता हूं , अगर मैं कोशिश करूं तो ! मेढ़क जिस कुवें में रहता था , वहां सूर्य देव की सेविकायें प्रतिदिन, मकड़ी के जाले की सहायता से नीचे उतर कर आतीं और जलपात्र भर कर स्वर्ग वापस लौट जातीं ! मेढ़क ने पत्र अपने मुंह में छुपा लिया, सेविकायें गाती हुई नीचे उतरीं...शुभ दिन तुम्हारे लिए, मेरी बहन शुभ दिन... उन्होंने जैसे ही जलपात्र नीचे किया मेढ़क चुपके से उसमें घुस गया ! वे जलपात्र भरकर पुनः मकड़ी के जाले की सहायता से स्वर्ग जा पहुंचीं तथा सूर्य देव के मकान के कमरे में जल पात्र रख दिया ! सूनापन देखकर मेढ़क जलपात्र से बाहर निकला और पत्र को बेंच पर रख कर कोने में छुप गया ! पानी पीने के लिए कमरे में पहुंचे सूर्य देव ने पत्र पढ़ा ‘ मैं धरती का व्यक्ति, कीमाहनाह आपकी पुत्री अप्सरा से ब्याह करना चाहता हूं ‘ सूर्य देव ने कहा यह कैसे हो सकता है ?
उन्होंने पानी लाने वाली लड़कियों से पूछा क्या यह पत्र तुम लाई हो ? उन्होंने इंकार किया, फिर उन्होंने अपनी पत्नी चंद्रमा से पूछा, क्या करें ? उसने कहा ये मुझसे मत पूछो, अपनी पुत्री से पूछो ! सूर्य देव ने पुत्री से पूछा तो अप्सरा ने कहा, देखें क्या वो विवाह उपहार ला सकता है ? इस पर सूर्य देव ने पत्र लिख कर बेंच पर रख दिया ! मौका देख कर मेढ़क ने अपने मुंह में पत्र को छुपाया और जलपात्र में घुस गया, अगले दिन सेविकायें जल भरने गईं, तो वह चुपचाप जलपात्र से निकल गया, सेविकायें रोज की तरह स्वर्ग वापस लौट गईं ! मेढ़क ने पत्र, कीमाहनाह को पढवाया...‘यदि तुम पैसे वाला बटुआ ला सको तो मेरी पुत्री से ब्याह कर सकते हो’...किमाहनाह ने कहा, लेकिन मैं ये नहीं कर पाऊंगा, इस पर मेढ़क ने कहा तब इसे, मैं ले जाऊंगा तुम्हारे वास्ते ! कीमाहनाह हंसा और उसने मेढ़क से कहा, तुम पत्र स्वर्ग ले गये तो क्या पैसे से भरा हुआ बटुआ भी स्वर्ग ले जा सकते हो ? मेढ़क ने कहा, जो भी हो, मैं यह कर सकता हूं , अगर मैं कोशिश करूं तो ! इस पर कीमाहनाह ने मेढ़क को पैसे भरा बटुआ दिया जिसे, अपने मुंह में दबाकर वो कुंवें में वापस आ गया और अगले दिन सूर्य देव की सेविकाओं के जलपात्र में, पिछली बार की तरह से, चुपके से घुस कर स्वर्ग जा पहुंचा और बटुए को बेंच में रखकर कक्ष के कोने में छुप गया ! सूर्य देव ने बटुआ देखकर सेविकाओं से पूछा क्या यह बटुआ तुम लाई हो ? उन्होंने इन्कार किया ! सूर्य देव ने पत्नी चंद्रमा से पूछा क्या करें ? उसने कहा ये मुझसे मत पूछो, अपनी पुत्री से पूछो ! सूर्य देव ने पुत्री से पूछा तो उसने कहा, देखें क्या वे मुझे लेने के लिए आ सकते हैं ? इसपर सूर्य देव ने पत्र लिख कर बेंच पर रख दिया ! मेढ़क पुनः छुपते छुपाते पत्र लेकर जलपात्र में, धरती तक आ पहुंचा !
मेढ़क ने कीमाहनाह को पत्र पढ़वाया...’यदि तुम मेरी पुत्री को ले जा सकते हो तो उससे ब्याह कर सकते हो '...कीमाहनाह ने कहा, लेकिन मैं ऐसा नहीं कर पाऊंगा, इस पर मेढ़क ने कहा तब उसे, मैं ले आऊँगा तुम्हारे वास्ते ! कीमाहनाह हंसा और उसने मेढ़क से कहा, तुम मेरे लिए पत्र स्वर्ग ले गये, बटुआ ले गये, तो क्या वधु को स्वर्ग से ला सकते हो ? मेढ़क ने कहा, जो भी हो, मैं यह कर सकता हूं, अगर मैं कोशिश करूं तो ! इसके बाद मेढ़क कुंवें में वापस चला गया और अगले दिन, फिर से सेविकाओं के जलपात्र में छुपकर स्वर्ग जा पहुंचा ! मेढ़क जलपात्र से निकला और उसने टर्र टर्र करतेहुए पूरे पानी में थूक दिया और एक खाली जलपात्र में छुप गया ! घर के लोगों ने पानी पिया तो बीमार हो गये ! सूर्य देव ने आध्यात्मिक चिकित्सक को बुलवाया तो उसने कहा, आपने धरती के आदमी से वादा किया था कि आप उससे अपनी पुत्री का ब्याह करंगे, किन्तु वो वहां गई ही नहीं, तो उसने मेढ़क के रूप में एक दुष्टात्मा को यहां सबको बीमार करने के लिए भेज दिया है ! सूर्य देव ने पुनः पत्नी चन्द्रमा से पूछा तो उसने कहा, अपनी पुत्री से पूछो, पुत्री ने कहा,’मैं जाऊंगी’ ! अगले दिन सेविकाओं के साथ वह धरती पर गई, पानी भरते समय मेढ़क जलपात्र से बाहर आ गया, सेविकायें अप्सरा को छोड़कर स्वर्ग वापस लौट गईं ! मेढ़क कुंवें से बाहर आया और उसने अप्सरा से कहा मै तुम्हें , तुम्हारे पति तक ले जाऊंगा ! अप्सरा हंसी, उसने कहा, क्या एक मेढ़क, एक स्त्री को मार्ग दिखा सकता है ? इसपर मेढ़क ने कहा, मैं स्वर्ग तक पत्र ले गया, बटुआ ले गया और एक वधु भी यहां तक ले आया ! जो भी हो, मैं कर सकता हूं, अगर मैं कोशिश करूं तो ! अप्सरा ने कहा तब तो वो तुम हो जिससे मैं ब्याह करूंगी ! वह मेढ़क को स्वर्ग वापस ले गई और उससे ब्याह कर लिया ! वे जिये और जीते रहे...कीमाहनाह को अब भी अपनी वधु का इंतज़ार है !
यह आख्यान उत्तर पश्चिमी अंगोला के म्बाका आदिवासियों में प्रचलित आख्यान है ! इसे बांचते हुए यह संज्ञान तो स्वतः ही हो जाता है कि, कथा से सम्बंधित समाज विवाह के लिए वधु मूल्य चुकाये जाने की परम्परा का पालन करता है ! वधु परिवार देव तुल्य परिवार है, जहां सूर्य और चंद्रमा को पति पत्नी तथा अप्सरा जैसी पुत्री का अभिभावक बताया गया है ! यह परिवार एक समृद्ध परिवार है, जहां पानी भरने के लिए सेविकायें मौजूद हैं ! आख्यान कहता है कि परिवार का मुखिया सूर्य, अपनी पुत्री के विवाह के प्रस्ताव की आकस्मिक उपलब्धता के स्रोत वाहक के रूप में सबसे पहले अपनी सेविकाओं से प्रश्न करता है, फिर प्रस्ताव पर अपनी पत्नी की सलाह मांगता है कि क्या किया जाये ? और उसकी पत्नी, विवाह के प्रस्ताव को पुत्री का निर्णयाधिकार क्षेत्र घोषित करती है ! ज़ाहिर यह कि पिता अपनी पुत्री के विवाह के विषय में पत्नी की सलाह और पुत्री के विवेक पर निर्भर है, जैसा भी निर्णय लेना है, जो भी निर्णय लेना है वह विवाह योग्य पुत्री को ही लेना है, चाहे वह वधु मूल्य के सम्बंध में हो या फिर भावी वर को आमंत्रित करने में...अथवा अन्ततोगत्वा स्वयं के लिए किसी भी वर को चुन लेने में ! प्रतीत यह होता है कि इस समुदाय / समाज में घर जमाई की परम्परा भी प्रचलित रही होगी, क्योंकि कथांत में सुन्दर नायिका अपने वर को अपने घर ले जाती है, जहां दंपत्ति जिये और जीते रहे ! यह स्वीकार करने में कोई एतराज नहीं होना चाहिये कि इस परिवार की समृद्धि, उसे वधु मूल्य स्वीकार करने से नहीं रोकती, यानि कि यह परिवार अपने समाज की परम्पराओं का सम्मान / परिपालन करने वाला परिवार है ! इस परिवार को प्रतीकात्मक रूप से सुन्दर परिवार माना जाना चाहिये, क्योंकि यहां सूर्य, चंद्रमा और अप्सरा जैसा सौंदर्य मौजूद है ! आख्यान स्पष्ट करता है कि, अपनी समृद्धि के बावजूद परिवार आध्यात्मिक/ रूहानी चिकित्सक पर विश्वास करता है, उसके परामर्श पर ध्यान देता है, उस पर अमल करता है, इसे आप अन्धविश्वास भी कह सकते हैं, भले ही पत्र लेखन के आलोक में परिवार को पढ़ा लिखा परिवार भी कहा जा सकता हो !
कीमाहनाह मनुष्य के रूप में एक प्रवृत्ति है जो दिवा स्वप्न तो देखती है पर उसे स्वयं के सामर्थ्य पर भरोसा नहीं है ! उसके अपने संसाधन, वह किसी और के हवाले कर देती है और अन्य कोई उसके स्वप्न को पूरा करेगा, की उम्मीद में अपना जीवन नष्ट करती है / व्यर्थ करती है ! जहां उसमें आत्मविश्वास की कमी है, वहीं वह प्रतीकात्मक रूप से तेज दिखने वाले सहायकों की खोज में है और उसे आत्म विश्वास से परिपूर्ण जीव / व्यक्ति की पहचान ही नहीं है ! इसमें कोई आश्चर्य नहीं कि, कीमाहनाह सांकेतिक खरगोश / व्यक्ति की त्वरा से प्रभावित है , किन्तु खरगोश को अपनी क्षमता की सीमा का ज्ञान भली भांति है, इसी प्रकार से प्रतीकात्मक रूप से मृग और बाज़ भी अपने सामर्थ्य से परिचित है और स्वयं को कीमाहनाह के स्वप्न को पूरा करने की कवायद से साफ बचा लेते हैं ! कथा का मेढ़क निश्चित रूप से ऐसा व्यक्ति है जोकि प्रत्यक्षतः खरगोश, मृग और बाज़ जैसे तेज तर्रार गुणों का स्वामी दिखाई नहीं देता किन्तु उसमें आत्म विश्वास की कमी नहीं है, वह दूसरों की मदद करने का ज़ज्बा रखता है, भले ही दूसरे उसके इस ज़ज्बे का परिहास भी करते रहें, कथा में कीमाहनाह ने मेढ़क का हर बार उपहास किया, किन्तु मेढ़क ने उसकी सहायता की पेशकश और अपना हौसला / कार्य करने / कोशिश करने का अपना ज़ज्बा बनाये रखा ! अप्सरा के रूप में भावी वधु भी मेढ़क की मार्ग दर्शन क्षमता का आकलन नहीं कर पाती और उसका उपहास करती है, किन्तु कीमाहनाह की तुलना में वह स्वयं विवेकवान युवती मानी जायेगी जोकि मेढ़क के एक ही जबाब से समझ गई कि, कीमाहनाह जैसे आत्मविश्वासहीन निठल्ले युवक की तुलना में मेढ़क एक कर्मयोगी है, आत्मविश्वास युक्त एक परोपकारी युवा है, इसलिये वह फ़ौरन ही निर्णय ले लेती है कि उसे कीमाहनाह से नहीं बल्कि मेढ़क से ब्याह करना है !
यहां यह ध्यान देना महत्वपूर्ण है कि, आदिम समाजों की कथायें अपनी पारिस्थितिकी और उसमें मौजूद तत्वों के बारीक अध्ययन पर आधारित होती है / उनके सहारे बुनी जाती हैं ! मसलन मकड़ी के जाले को स्वर्ग से धरती पर आने जाने वाली सीढ़ी के रूप में इस्तेमाल किये जाने का प्रतीक ! म्बाका समुदाय का अपना स्वागत और विदाई गीत स्वर्ग की सेविकाओं का गीत है, जिसे आख्यान में बार बार दोहराया गया है, जिसके सहारे एक विवाह योग्य लड़की के विवाह का स्वागत और उस लड़की की विदाई के संकेत दिये जाना बेहद रोचक है ! आख्यान का सांकेतिक मेढ़क उभयचर प्राणी के रूप में जल थल में जी सकता है, वह स्वयं को परिस्थितियों के अनुरूप ढाल सकता है, आवश्यकतानुसार गोपनीयता बनाये रख सकता है, उसमें समयानुसार कार्य को अंजाम देने का कौशल मौजूद है ! बहुत संभव है कि उसे अप्सरा से विवाह कर लेने के कारण अवसरवादी कहा जाये किन्तु अपने लिए पत्नी के चयन की पहल उसने स्वयं नहीं की है बल्कि पत्नी ने पति का चयन किया है, इसलिये एक निठल्ले कीमाहनाह के अधिकार का हनन मेढ़क द्वारा किया गया है, ऐसा मानना अनुचित होगा ! कथा का मेढ़क वस्तुतः मेढ़क नहीं है ! वह संसाधनहीन, साधारण सा दिखने वाला युवक हो सकता है, किन्तु परोपकारी और कार्यकुशल है ! उसे स्वयं पर भरोसा है, कि चाहे जो भी हो, मैं यह कर सकता हूं , अगर मैं कोशिश करूं तो ! वो कोशिश करता है ! उसे कर्म पर विश्वास है ! उसे कर्म से पूर्व अपनी असफलता का भय भी नहीं है ! वह अपने सामर्थ्य के प्रति आशंकित नहीं है ! वह मृग, खरगोश, बाज़ और कीमाहनाह, का उपहास नहीं करता बल्कि उन सबकी तुलना में स्वयं को श्रेष्ठ साबित करता है, संयम से, परोपकारी प्रवृत्ति से, हौसले से...सो सफलता उसकी है...और कीमाहनाह ? उसे वधु का इंतज़ार हमेशा बना रहेगा !
इस मे तो मेंढक महाराज का प्रमोशन हो गया। तंदूर से विवाह वेदी तक !
जवाब देंहटाएंआशीष जी ,
हटाएंदोनों अलग अलग क्षेत्र की कथायें हैं, पहली कथा का मेढ़क स्वार्थी था, दूसरों के भरोसे खुद का भला चाहने वाला, उसमें आत्मविश्वास की कमी थी जबकि दूसरी कथा का मेढ़क का परोपकारी है, दूसरों का भला करने वाला, आत्मविश्वासी !
जब आदमी आदमी में फर्क होता है तो मेढ़क मेढ़क में क्यों नहीं :)
आख्यान पढ़ते-पढ़ते ही यह आवाज़ अंदर से निकल रही थी कि जब सारा काम मेंढक ही कर रहा है तो विवाह भी यही करे...अंत में हुआ यही.यहाँ सूर्यदेव ने पिता की हैसियत से कम जिम्मेदारी निभाई.उन्हें ही सही वर की पहचान हो जानी चाहिए थी.बहरहाल ,अप्सरा ने सही निर्णय लिया.
जवाब देंहटाएं...कुछ लोग बिना कुछ किये,सब कुछ हासिल करना चाहते हैं,उनके लिए ज़रूर यह सबक है !
सूर्य देव एक लिबरल पिता हैं जिन्होंने पत्नी और पुत्री के निर्णयाधिकार का ख्याल रखा, पहचान उन्हें भी हुई होगी पर उन्होंने लड़की को अवसर दिया कि वह अपना वर स्वयं चुने ! आपकी सबक वाली बात सही है और आपके दिल की आवाज़ तो रंग ले ही आई :)
हटाएंसुन्दर और प्रेरणादायक. कहाँ कहाँ से ढून्ढ निकाल रहे
जवाब देंहटाएंआदरणीय सुब्रमनियन जी,
हटाएंकिताबों में हज़ारों / लाखों की तादाद में भरी पड़ी हैं ! फिलहाल तो इन्हें पढ़ ही रहा हूं ! आगे चलकर 'रेफरेंस' सहित, किंचित संशोधित करके आलेख, पुनर्प्रकाशन का इरादा है, तब आपकी खिदमत में ज़रूर हाज़िर होऊंगा !
कुछ भी हो यह मेढक तो गद्दार निकला ...
जवाब देंहटाएं:)
मेढक तो आख़िरी दम तक परोपकार पे उतारू था, आपको अप्सरा के इंकार और इसरार का मान रखना होगा :)
हटाएंali sab , sundar katha aur sundar vishleshan !
जवाब देंहटाएंमुकेश जी ,
हटाएंधन्यवाद !
Bahut hi rochak aur prernadayak kahani....
जवाब देंहटाएंKhastaur par aapka vishleshan zabardast hai...
शाहनवाज़ साहब ,
हटाएंशुक्रिया !
कहानी सीख देती है -वीर भोग्या वसुंधरा ही नहीं, अप्सरा भी :-)
जवाब देंहटाएंवीर वही जो कर्म करे :)
हटाएंprerak prastuti.aabhar
जवाब देंहटाएंआभार !
जवाब देंहटाएंउपहास करने या उपहास किये जाने के बावजूद अपने आप को साबित करने का आत्मविश्वास ही मेंढक को सफलता दिलाता है ...
जवाब देंहटाएंकर्महीन नर पावत नाही !
रोचक कथा !
सही है !
हटाएंडाकिए के साथ ही अप्सरा फ़रार हो गयी। इससे कीमाहनाह की अकर्मण्यता का पता चलता है।
जवाब देंहटाएंदो लाईन याद आ रही हैं।
राम राम रटते रहो छोड़ काम और काज
राम काम कर जाएगा देगा वही अनाज
वही रोटी खा लेगा।
उस मेढक की एक संसाधनहीन, कर्मठ, परोपकारी युवक के रूप में व्याख्या सटीक लगी..
जवाब देंहटाएंशुक्रिया रश्मि जी !
हटाएंअवाक कर देने वाली कथा। निःशब्द कर देने वाली व्याख्या।
जवाब देंहटाएं..."चाहे जो भी हो, मैं यह कर सकता हूं , अगर मैं कोशिश करूं तो !" कहीं यही वह सूत्र तो नहीं जिसके बल पर आप इस श्रृंखला को जारी रखे हुए हैं!:) मैने पकड़ लिया गुरूदेव। अमल भी कर सकता हूँ, अगर कोशिश करूँ तो!
कथा जैसी ना सही पर जिद तो है ही :)
हटाएंदेवेन्द्र जी, सही तथ्य पकडा!!यही वह सूत्र है
हटाएंकर्म करे फल पावे, भावना भरोसा धरा रह जावे।
कर्महीन पावे नहीं, वांछित वस्तु का योग।
आम पकते ही हुआ, काक कंठ में रोग॥
क्या उस मेंढ़क के संज्ञान में रहा होगा कि अतिशय परोपकार कीमाहनाह को प्रमादी बना देगा?
धन्यवाद सुज्ञ जी !
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