कोभम कस्बे के एडम की पुत्री का नाम एफिओंग था , उसकी सुंदरता पर मुग्ध होकर सभी युवक उससे विवाह करना चाहते थे ! विवाह प्रस्ताव अक्सर आते और युवती के माता पिता उनके लिए सहमत भी होते किन्तु युवती सदैव इंकार कर देती ! उसका कहना था कि वह सबसे सुन्दर , सबसे शक्तिशाली , सबसे धन संपन्न युवक से ही विवाह करेगी किन्तु ये सारे गुण किसी एक युवक में मिलना संभव नहीं था ! यदि कोई धन संपन्न होता तो असुंदर या बूढ़ा निकलता और यदि सुन्दर होता तो धनहीन या निर्बल , इसलिये युवती विवाह के सम्बंध में लगातार अपने माता पिता की अवज्ञा करती रही ! आत्माओं के संसार में रहने वाले एक ‘मुंड’ ने युवती की सुंदरता के किस्से सुन रखे थे और वह उस लड़की पर अपना अधिकार जमाना चाहता था ! उसने अपने मित्रों से उनके सुन्दर अंग उधार मांगे , किसी से हाथ , किसी से पैर , किसी से मुख और किसी से धड़ ! इस तरह से उधार के सुन्दर अंगों को लेकर वह एक सुंदर युवक बन गया !
इसके बाद वह आत्माओं के संसार से निकल कर कोभम के बाजार में जा पहुंचा ! वहां उसे एफिओंग मिली तो उसने उसके सौंदर्य की भूरि भूरि प्रशंसा की ! बाजार में मुंड को , एक सुदर्शन युवक के रूप में देखकर , एफिओंग उसके प्रेम पाश में बंध गई ! उसे पता नहीं था कि यह युवक वास्तव में आत्माओं की दुनिया का मुंड है और उसने उधार की सुंदरता ओढ़ रखी है ! युवती के आमंत्रण पर प्रसन्न मुंड उसके साथ , उसके घर जा पहुंचा और उसके माता पिता से भेंट कर , एफिओंग से विवाह की इच्छा प्रकट की ! युवती के माता पिता एक अजनबी से अपनी पुत्री का विवाह करने के लिए सहमत नहीं थे , किन्तु बाद में मान गये ! मुंड , विवाह के बाद दो दिनों तक एफिओंग के घर में रहा और फिर उसने कहा कि वह अपनी पत्नी को लेकर अपने घर जाना चाहता है ! युवती के माता पिता ऐसा नहीं चाहते थे , किन्तु जिद्दी युवती , मुंड के साथ जाने के लिए तैयार थी ! उसने तैयारी कर ली और अपने पति के साथ चली गई !
कुछ दिन बाद चिंतित अभिभावकों ने अपने ओझा से परामर्श किया , जिसने अपने ज्ञान से बताया कि उनकी पुत्री वास्तव में मुंड के कब्जे में है ! वह उसे आत्माओं की दुनिया में ले गया है , जहां से लौटना असंभव है ! अभिभावकों ने पुत्री की मृत्यु निश्चित जानकर विलाप किया ! इधर कई दिनों तक चलने के बाद मुंड इंसानों की बस्ती से दूर आत्माओं की दुनिया में प्रवेश कर गया ! वहां पहुंचते ही उसके सभी मित्रों ने अपने अपने अंग वापस मांगना प्रारंभ कर दिया , जिसके बाद वह केवल एक ‘कुरूप मुंड’ शेष रह गया , युवती यह देखकर डर गई ! वह वापस लौटना चाहती थी , किन्तु मुंड ने उसे आगे चलने का आदेश दिया , उसके घर में एक अशक्त , वृद्ध मां थी जो घिसट घिसट कर चलती थी ! मुसीबत में फंस गई एफिओंग ने उसकी सेवा करने का निश्चय किया , वह खाना बनाती , पानी भरती और चलने फिरने में वृद्धा की सहायता करती !
वृद्ध स्त्री एफिओंग की सेवा से प्रसन्न हो गई ! वह एफिओंग के साथ घटी घटना लिए दुखी थी ! उसकी दुनिया के लोग नरभक्षी थे , इसलिये वो एफिओंग को छुपा कर रखती ! उसने एफिओंग को उसकी दुनिया में वापस भेजने का निश्चय किया , बशर्ते एफिओंग , भविष्य में अपने अभिभावकों का कहना मानने का वचन दे ! वृद्ध स्त्री ने अपनी नाई , जोकि एक मकड़ी थी , को बुला कर एफिओंग की केश सज्जा करवाई , एफिओंग को पायल और अन्य दूसरे उपहार दिये ! फिर उसने हवाओं को आहूत किया कि वह एफिओंग को उसके घर पहुंचा दें किन्तु उसके पहले आह्वान पर हिंसक तूफ़ान , कड़कती बिजली और तेज बारिश , साथ लेकर आया ! वृद्ध स्त्री को यह असुविधाजनक लगा तो उसने दोबारा हवा का आह्वान किया , इस बार मंद समीर पहुंची , वृद्धा ने उससे कहा कि एफिओंग को उसके घर के दरवाजे तक छोड़ आये और एफिओंग को अलविदा कहा !
अपनी पुत्री को कई माह पहले खो चुके अभिभावक उसे जीवित देख कर प्रसन्न हो गये , पिता एडम ने घर के बाहर जहां तक एफिओंग पहुंची थी , वहां से अपने घर तक , पशुओं की नर्म रोयेंदार खाल बिछा दी ताकि एफिओंग के पैर गंदे ना हों ! अगले आठ दिन तक नृत्य , गायन और भोज का दौर चला , इसके बाद उन्होंने कस्बे के मुखिया को पूरा किस्सा कह सुनाया , जिस पर मुखिया ने नया नियम पारित किया कि आगे चलकर कोई भी व्यक्ति अपनी पुत्रियों का विवाह किसी अजनबी के साथ नहीं करेगा ! इधर एफिओंग , अपने अभिभावकों की मर्जी से उनके मित्र के पुत्र के साथ विवाह करने के लिए राजी हो गई ! उन्होंने वर्षों तक प्रसन्नतापूर्वक वैवाहिक जीवन जिया ! अब उनकी संतानों की वंशबेल फल फूल रही है !
इस नाइजीरियाई आख्यान में दो अलग अलग संसारों की कल्पना की गई है , एक इंसानों के लिए और दूसरा आत्माओं के लिए ! दूसरे संसार की भयावहता के प्रतीक के रूप में खोपड़ी / मुंड का इस्तेमाल किया गया है ! लगता यह है कि खोपड़ियों का संसार अपनी मृत्यु के पूर्व के जीवन के संसार के प्रति अपनी लालसायें शेष पाता है , यह कहना कि मुंड उस सुन्दर युवती को अपने आधिपत्य में लेना चाहता है और इस हेतु वह अपने मित्रों से उनके सुंदर अंग उधार में लेकर एक सर्वांग सुंदर युवा का रूप धारण करता है ! अपूरित लालसा के लिए कृत्रिम / उधार के सौंदर्य की व्यवस्था किये जाने की यह कल्पना तीन तरह के सन्देश छोड़ती है , एक तो यह कि अपूर्ण इच्छायें आपसे कुछ भी करवा सकती हैं और दूसरा यह कि इंसानों को आंख मूंद कर अजनबियों पर भरोसा नहीं करना चाहिये तथा तीसरा यह कि सौंदर्य छल कर सकता है अथवा वास्तविक सौंदर्य दैहिकता से इतर है !
कथा स्पष्ट करती है कि आत्माओं के संसार के सभी निवासी धोखेबाज़ और नरभक्षी नहीं होते ! ‘मुंड’ अपनी अतृप्त लालसा के चलते धोखेबाज़ था और अन्य आत्मायें नरभक्षी किन्तु इसके समानांतर ही मुंड के कुछ मित्र सहयोगी प्रवृत्ति के तथा उसकी असहाय मां निष्पक्ष सोच वाली कृपालु और दयालु ! कथा में अदभुत कहन ये है कि मुंड की मां , अपनी नाई मकड़ी से युवती की केश सज्जा करवाती है ! मकड़ी के जाले की ख़ूबसूरती , उसकी डिजाइन तथा अफ्रीकी मानुष के अति घुंघराले केशों का शानदार प्रतीकात्मक तालमेल ! वो युवती को उसके घर वापस भेजने के लिए हवा का आह्वान करती है , पर नाज़ुक युवती के लिए तूफानी हवा , तेज बारिश और बिजली को असहज पाती है ! उल्लेखनीय है , वृद्धा का , सुन्दर युवती के लिए मंद समीर को वाहक बनाना , पायल और अन्य उपहार देना तथा अपने पुत्र मुंड की परवाह किये बगैर युवती को सुरक्षित उसके घर तक पहुंचाने के लिए सदाशय हो जाना !
मुंड की मां युवती से आश्वासन लेती है कि वह घर वापस लौट कर वह अपने से बड़ों की आज्ञा का पालन किया करेगी ! सन्देश स्पष्टतः अधिक अनुभवी के अनुशरणकर्ता बने रहने का है ! यह सारा घटनाक्रम आत्माओं के संसार में सभी के बुरे होने की धारणा के पक्ष में नहीं है ! अपनी जिद के चलते विपत्ति में फंस गई युवती भयावह हालात में निपट अकेली है ! उसे अपने माता पिता के प्रति अपनी अवज्ञा का भान हुआ होगा तभी उसने वृद्ध आत्मा की सेवा का निश्चय किया और वो अपने बदले हुए व्यवहार से वृद्धा का हृदय जीत सकी और संकट से बच निकली ! युवती के अभिभावक , एक अजनबी युवक से अपनी पुत्री के विवाह के लिए तैयार हो जाते हैं तो इसे युवती के प्रेम को , परिजनों की स्वीकृति के रूप में देखा जाये ! अपने भावी पति के लिए युवती के कल्पित मानदंड नितांत अव्यवहारिक थे , उन्हें छल / उधार द्वारा तो पूरा किया जा सकता था किन्तु यथार्थ में कोई व्यक्ति सर्वांग सम्पूर्ण नहीं हो सकता !
उपलब्ध उचित विकल्प के साथ बेहतर ज़िन्दगी गुज़ारने का निर्णय सही है , जैसा कि कथा के अंत में युवती के विवाह और सुखमय पारिवारिक जीवन से सिद्ध हुआ ! आख्यान संतान के प्रति परिजनों की फ़िक्र / चिंता को उजागर करता है ! वे अपनी अवज्ञाकारी और भटकी हुई पुत्री को नर्म रोयेंदार खाल के ऊपर चलाकर / राजसी तौर तरीके से घर वापस लाते हैं ! वे नहीं चाहते कि उनकी संतान में अपराध बोध घर कर ले ! आठ दिन और आठ रात तक उत्सव का आयोजन, पुत्री के प्रति अभिभावकों के स्नेह / प्रेम की अभिव्यक्ति करता है ! कथा में ओझा का उल्लेख प्रतीकात्मक ही माना जाये जो कि संतान के संकट में होने की घोषणा तथा एक गलत फैसले के भयानक परिणाम होने का संकेत देता है ! यहां यह उल्लेख समीचीन होगा कि पिता के नाम एडम से यह संकेत मिलता है कि वे लोग संभवतः धर्मान्तरित इसाई हो गये होंगे और रुचिकर यह कि उन्हें इसके बावजूद अपनी पुरानी सामुदायिक मान्यताओं / विश्वासों / अंधविश्वासों से मुक्ति नहीं मिली है !
सुन्दर कथा. वेटिकन तो समझौता कर लिया है. धर्मान्तरण के बावजूद अपनी पुरानी परम्पराओं से लोग जुड़े रह सकते हैं.
जवाब देंहटाएंसमझौते , उन्हें धर्मान्तरण करने में मददगार होते हैं !
हटाएंइस कथा का आधुनिक युग में बहुत महत्त्व है . तीनों बातें याद रखने योग्य हैं , विशेषकर बाहरी सुन्दरता पर मोहित होना . अभिभावकों के लिए भी संतान के प्रति रविये के बारे अच्छा सन्देश है .
जवाब देंहटाएंसार्थक कथा .
डाक्टर साहब ,
हटाएंशुक्रिया ! ये पहला मौक़ा है जब कथा आपसे पिटी नहीं है :)
अली सा , कथा के पात्रों में तो अभी भी विश्वास नहीं है . लेकिन कथा का सार अच्छा है , तर्कसंगत है .
हटाएंसार और तर्क संगति के लिए धन्यवाद !
हटाएंडाक्टर साहब विश्वास तो , हम लोग कई जीते जागते बन्दों पे भी नहीं करते तो फिर कथा के पात्रों की क्या बिसात है :)
ऐसी घटनाएं समाज में यदा कदा अब भी दिख जाती है.... जहाँ युवती प्रेमपाश में फंस कर विधर्मी से प्रेम विवाह तो कर लेती है पर उस युवक के घर जा कर पछताती है...
जवाब देंहटाएंइस कहानी की नायिका तो राजसी-ठाठबाट में वापिस घर आ जाती है पर आज के पिता इतने रहम दिल नहीं कि लड़की को पुन: घर में जगह दे दें, और दुबारा उस का विवाह अपने ही धर्म/जाति में कर दे. न तो ऐसा ही कोई युवक मिलेगा..
दूसरे, कितने भी किस्से कहानियां/मान्यताएं समझा/सुना दें, ये सब बेअसर हैं... आज की युवा पीडी अनुभवी पिता की नहीं सुनती, खुद चोट खाकर ही उसे समझ/अनुभव मिलता है.
दीपक जी ,
हटाएंसमय ने हमारे रहन सहन और चिंतन की जटिलताओं का विस्तार कर दिया है ! हम पुरानी चीज़ों और पुराने लोगों को अपने से कमतर आंकने लगे हैं ,बस यही वज़ह है कि खुद ठोकर खाने पे ही होश आता है !
कहानी जोरदार है -एक अलग दुनिया की फंतासी ,सौन्दर्य अंगों की उधारी की आदिम चाहत ,नीग्रो केश विन्यास के लिए बिलकुल उचित ही मकडी हेयर ड्रेसर की सूझ ....क्या बात है :)
जवाब देंहटाएंअपने मिथकों में भी ययाति बेटे का यौवन ही भोगेच्छा के शमन के लिए मांग लेते हैं ..नारद स्वयं विष्णु का सौन्दर्य ही मांगते हैं -साबित हुआ मानव मन में, उसके अवचेतन में ये आदिम भाव कबसे संचित हैं और अब तो इन पर विज्ञान फंतासियाँ बन रही है -मातब ये विचार मनुष्यता की पहचान हैं :-)
बढ़िया प्रतिक्रिया अरविन्द जी !
हटाएंBade chavse padhtee hun aapka lekhan...
जवाब देंहटाएंजी बहुत बहुत शुक्रिया !
हटाएंशुरुआत में तो ये कथा भय उत्पन्न करती है..पर बाद में सब सही हो गया...राहत मिली...
जवाब देंहटाएंशुक्रिया !
हटाएंभयावह कहानी,
जवाब देंहटाएंमुझे लगता है आज भी मुंड जीवित हैं जो ऊपर से बहुत सुंदर दिखते हैं हकीकत जब तक पता चलती है, बहुत देर हो जाती है !
विपरीत परिस्थितियों में एफिओंग का आचरण प्रसंशनीय रहा !
आभार आपका !
यह भी अच्छा है कि उचित समय पर मुंडों की पहचान हमें हो जाए !
हटाएंसतीश भाई ,
हटाएंबड़ी गहरी बात कह गये आप ! साधुवाद !
जहाँ यह कथा हमारे संसार की उस सोच को उजागर करती है जहाँ हम नकली सुंदरता के फेर में अच्छाई को भूल जाते हैं.लड़की को इसी बात का खामियाजा आखिर भुगतना पड़ा.
जवाब देंहटाएंदूसरी ओर दूसरी दुनिया जो खराब मानी गई है,वहाँ बुराई के बीच में भी अच्छाई की चमक है और उस वृद्धा ने लड़की की हरसंभव मदद की .
...मतलब अच्छाई अपनी चमक निपट अँधेरे में भी दिखा ही देती है !
आपके वक्तव्य से सहमति !
हटाएंआख्यान में भले ही दृष्टिगत सुन्दरता की बात है मगर निष्कर्ष रूप में अपनी झूठी प्रशंसा करवा कर रिश्ते बना लेने और असलियत सामने आने पर उनके बिगड़ने जैसी ही कथा है . नकली सुन्दरता उपरी हो या आंतरिक , ज्यादा साथ नहीं निभा सकती . अच्छे- बुरे लोंग हर जगह मिलते हैं , बस हमें पहचान हो सके जैसे मुंड और उसकी माँ !
जवाब देंहटाएंरोचक कथा !
धन्यवाद !
हटाएंप्रेरक कथा।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद :)
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उम्दा प्रस्तुति के लिए आभार
प्रवरसेन की नगरी प्रवरपुर की कथा
♥ आपके ब्लॉग़ की चर्चा ब्लॉग4वार्ता पर ! ♥
♥ पहली फ़ूहार और रुकी हुई जिंदगी" ♥
♥शुभकामनाएं♥
ब्लॉ.ललित शर्मा
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ललित जी बड़ा ही 'डिजायनर कमेन्ट फार्मेट' है आपका :)
हटाएंरोचक.
जवाब देंहटाएंघुघूतीबासूती