शनिवार, 30 जून 2012

उसके आंसू ...!

काजियादो जिले में मशुरु के पास इसेलेंकेई नाम की एक जगह है , जहां नदी तट पर अकेशिया के दरख्तों का बहुत बड़ा झुरमुट और उस झुरमुट में एक विशाल दरख्त के नीचे एक चिकना पत्थर है , जो नदी की ओर झुका हुआ , पहली ही नज़र में किसी इंसान के होने की प्रतीति कराता है ! ऐसा लगता है कि जैसे वह तेज धूप से बचकर दरख़्त की छायादार पनाह में नदी को ताक रहा हो ! इसेलेंकेई नदी का पाट कई जगह १०० मीटर से भी ज्यादा चौड़ा होगा , उसका तल रेतीला है ! मसाई आख्यान कहते हैं कि , वर्षों पहले की बात है ,जब एक बूढ़ा अपनी इकलौती पुत्री के साथ इस एकांत जगह पर रहता था ! धन संपत्ति के तौर पर उसके पास भेड़ , बकरियों , गाय , बैलों का एक झुण्ड था , जिसे पालना / चराना और फिर पशु उत्पादों से अपनी जीविका अर्जित करना / जीवन यापन करना , उस मसाई पिता पुत्री की जीवनचर्या थी ! एक दिन जब पुत्री अपने पशु झुण्ड को चरा रही थी , तो वहां पास ही की झाड़ियों से मसाई युवकों का एक समूह गुज़रा ! वो , उस समूह के सबसे सुन्दर युवा के साथ बातें करने लग गई ! 

उसे ध्यान ही नहीं रहा कि उसके पालतू पशु चरते हुए कहीं दूर निकल गये हैं , जंगल में गुम हो गये हैं ! किसी और काम पर गये पिता ने वापस लौटकर देखा कि लड़की युवक से बातों में तल्लीन है , जबकि पशुओं का झुण्ड वहां पर है ही नहीं ! वो पशुओं को खोजता रहा , जो उसे मिले भी नहीं ! वे सब शायद दूर कहीं जा चुके थे ! अपने पशुओं की थकाऊ और लंबी खोज से असफल होकर लौटे पिता ने देखा कि पुत्री अब भी उस युवा योद्धा से बात कर रही थी ! उसे अपनी पुत्री की लापरवाही पर अत्यधिक क्रोध आया , जिसके कारण वह अपना सारा पशुधन खो चुका था ! उसने पुत्री को डांटना शुरू किया और चिल्लाया...‘ता ओसिओत’...और वो लड़की उसी अकेशिया के दरख्त के नीचे बैठी हुई पत्थर बन गई ! सब लोग उसे इसेलेंकेई कन्या कहते हैं ! उस जगह को अब ‘इन्कोंगुए सेलेंकेई’ यानि कि उस कुंवारी लड़की का ‘जल स्रोत’ माना जाता है ! सुना है कि नदी के रेतीले तल पर बहता साफ पानी उस लड़की के पश्चाताप के आंसू हैं , जो लगातार बह रहे हैं ...! 

इसमें कोई संदेह नहीं कि मसाई समुदाय के लिए पशुधन , उसकी सबसे बड़ी और अंतिम पूंजी / धरोहर है ! वृद्ध पिता और पुत्री एकांत स्थान में रहते हैं और अपने पशुओं के पालन पोषण से अपनी जीविका अर्जित करते हैं ! उन दोनों का अस्तित्व पशुधन पर निर्भर है ! पशुधन यानि कि मृत्यु से पहले के जीवन की आश्वस्ति ! जब पिता किसी अन्य काम से बाहर गया हो तो नि:संदेह पशुओं की देखभाल पुत्री का उत्तरदायित्व है ! इसमें कोई आश्चर्य नहीं कि युवा होती हुई लड़की वहां से गुज़रते हुई युवा लड़कों के समूह में से किसी एक सुन्दर युवक के प्रति आकर्षित होकर उससे , बातों में व्यस्त हो जाती है और उसे यह भी स्मरण नहीं रह जाता कि वह अपने पारिवारिक जीवनाधार पशुओं को खोने जा रही है ! लैंगिक / दैहिक आकर्षण में फंसकर अपने सामाजिक पारिवारिक उत्तरदायित्वों की अनदेखी करना असहज बात नहीं है , किन्तु प्रेम के मोह में जीवन का एकमात्र संबल खो बैठना , सवालों के घेरे में है ! 

काम से लौट कर पिता पहले पहल भी , पुत्री को युवक से बातें करता देखता है , किन्तु कोई आपत्ति किये बगैर अपने पशुओं को ढूंढने का यत्न करता है ,यकीनन तब उसने पुत्री की गतिविधि को सहज माना होगा और उसे यह विश्वास भी रहा होगा कि उसका पशुधन आस पास ही कहीं मिल जाएगा ! लेकिन दूर दूर तक भटकने के बाद भी उसे पशु नहीं मिल पाते और यह विश्वास करना कि वह अपने परिवार का जीवन संबल , पुत्री के उस युवा से संवादरत रहने और अपने दायित्व के प्रति उदासीन हो जाने के कारण , खो चुका है , एक आघात सा है ! वह पशु खोज से थककर लौटा है और पुत्री अब भी दायित्व के प्रति सचेष्ट नहीं है ! वह अपना आपा / अपना संयम खो बैठता है , तथा पुत्री को डांटते हुए ,पत्थर हो जाने का अभिशाप दे बैठता है ! पत्थर हो जाने की सांकेतिक प्रतीति कमाल की है , एक युवती , एक युवा की मोहासक्ति में , कर्तव्य च्युत और संसार से निस्पृह...पाषाणवत ...पाषाण हुई !

कई बार लोक आख्यानों के कथन चमत्कृत करते हैं , युवती प्रेम के लिए अपने पारिवारिक कर्म से विमुख हुई , पिता ने प्रथम दृष्टया उससे कुछ भी नहीं कहा ! उसका क्रोध उस घटना की पुष्टि पर आधारित है , जहां वो और उसकी पुत्री , अपनी आजीविका खो चुके हैं ! पुत्री के पास घटनाक्रम को उलट पाने का अवसर नहीं है ! वह गुज़र गये समय को बदल नहीं सकती ! वह अपने प्रिय पिता के कोप के औचित्य से परिचित है ! किन्तु क्षमा का अवसर हाथ से निकल चुका है ! वो स्वयं अपना और अपने पिता का जीवनाधार खो चुकी , वो अपने किये के प्रायश्चित , स्वरुप लगातार रोती है ! एक नदी का जन्म होता है ! बेशक मसाई समुदाय के असंख्य परिवारों को जीवन देने वाली नदी का जन्म...उसके आंसू ...उसका प्रायश्चित !

25 टिप्‍पणियां:

  1. और उस युवक का क्या हुआ...उसका कोई जिक्र नहीं कहानी में ?...वो आम प्रेमी की तरह दुम दबा कर भाग गया...:)

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    1. उसका ज़िक्र आख्यान में नहीं है इसलिये मैंने उस पर कोई कथन नहीं किया ! संभव है आपका अनुमान सही हो या शायद ना भी हो !

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  2. मसाई कबीला काफी मशहूर रहा है !
    क्या इस कथा से सम्बंधित, यह पत्थर है वहाँ ?

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    1. कथा में जगह और नदी का नाम तो दिया है पत्थर भी होना चाहिये वहां !

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  3. मैने ऐसा महसूस किया कि इन कथाओं में किसी का भाग जाना(कहानी के परिदृश्य से लोप हो जाना) कोई मायने नहीं रखता। महत्वपूर्ण सिर्फ वही है जो कथा में अंत तक रहते हैं। कथा कहने वाले(ये वो कहानियाँ नहीं हैं जो सोच समझ कर बैठ कर, तिलस्म जोड़कर, पाठकों की रूचि को ध्यान में रखकर लिखी गई हैं।) कथा के माध्यम से कोई संदेश देना चाहते हैं।

    इस कथा में प्रायश्चित स्वरूप पत्थर बनी लड़की का निरंतर आँसू बहाना और आँसू की तुलना, व्यख्या में नदी से करना अत्यंत कारूणिक एहसास कराता है। कर्म से च्युत होने की सजा। पिता के लिए पशु धन ही जीने का सहारा, पुत्री के प्रेम पर भारी पड़ता है। रोटी, बेटी में रोटी बाजी मार लेती है। बेटी आँसू बहाती रहती है।

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    1. हां कथा का उदेश्य कोई सन्देश देना तो होगा ही ! पशुधन पिता और पुत्री दोनों के जीने का सहारा था , उसके बिना वृद्ध पिता भी जीवित नहीं रहा होगा यह अनुमान लगाना कठिन नहीं है ! पुत्री के प्रेम पर पिता का हमला आस के अंतिम रूप से टूट जाने के बाद हुआ वर्ना तो वो अकेले पशु ढूंढने गया ही था ! पुत्री तो अंतिम क्षण तक प्रेमलीन रही !

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  4. पाषाण बन प्रायश्चित - सुन्दर कथा.

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  5. पिता का कर्तव्य-विमुख पुत्री पर क्रोध स्वाभाविक है पर जहाँ पुत्री इसके लिए दोषी मानी जा सकती है,पिता को भी पूरी छूट नहीं दी जा सकती.
    ...एक तो प्रेम का आकर्षण ऐसा था जिसमें युवती अपनी जिम्मेदारियां भूल गई.यह स्वाभाविक ही था.उस युवक से पहली बार उसका मिलना हुआ और उसी में वह अपनी सुध-बुध खो बैठी.यह जानबूझकर किया गया अपराध नहीं था.पिता को तब गुस्सा अधिक आ गया जब पशुधन उसे ढूंढें नहीं मिला.उसने पशुधन तो खोया भी,अपना धन ,प्यारी-पुत्री भी पत्थर की बना डाली.सो उसके हाथ क्या आया..?

    हाँ,लड़की के पत्थर बन जाने के बाद जलस्रोत बनने से आस-पास के रहवासियों को पीने और खेती के लिए आराम हो गया.इसे ही उसका प्रायश्चित्त माना जाए !

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    1. संतोष जी ,
      धन्यवाद ! पिता के हाथ क्या आना था ? पहले पशुधन के उसके बाद पुत्री खोई भले ही आवेश में , और जब उसकी जीविका का साधन ही ना रहा तो वह खुद भी खो गया हो इसकी संभावना तो बनती ही है !

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  6. हम्म! गौतम ऋषि वहां भी थे लेकिन कोई राम नहीं पहुंचा अब तक !

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    1. गौतम ऋषि के पति होने और मसाई वृद्ध के पिता होने का अंतर छोड़ भी दिया जाये तो भी अभिशापित करने के कथन और उन कथनों की शक्तियों की उपस्थिति की कल्पना का साम्य तो है ही !

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  7. पत्थर हो जाने की सांकेतिक प्रतीति कमाल की है...इस पंक्ति पर ही अटकी हूँ . मोहासिक्त होकर कर्तव्यच्युत होना जैसे पाषाण हो जाना ....अहिल्या का पत्थर हो जाना भी ऐसा ही रहा होगा !
    नदी का जन्म स्त्री के प्रायश्चित से ही होना था , पुत्री को पाषाण बना देख पिता को प्रायश्चित नहीं हुआ !!

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    1. यदि जीवित रहा होगा तो ज़रूर प्रायश्चित किया होगा !

      हम भारतीय ढंग से सोचें तो कह सकते हैं कि , अपने अजीवित हो जाने की पुष्टि होते ही वह क्रोधित हुआ ! अपनी मृत्यु से पूर्व बिटिया को बेसहारा कैसे छोड़ता , अभिशाप देना नियति था , बिटिया को पश्चाताप के नाम पर पुण्यकर्म के लिए अमर कर गया !

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  8. मैंने नेता लोगों को देखकर 'ता ओसिओत' कहा. कुछ नहीं हुआ.

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    1. काजल भाई ,
      लगता है आपने सब को एक साथ कह दिया , एक एक करके कहते तो :)

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  9. The story not only reminds about Ahilya but about Shakuntaka who also commited same mistake and was cursed.

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  10. ऊपर की टिप्पणी मोबाईल से की गयी -कल सुबह ९ बजे से बिजली नहीं थी -अब आयी है -
    मैं यही कह रहा था कि इस लोकाख्यान से प्रस्तराभूत अहिल्या की याद तो आयी ही दुष्यंत की याद में आत्मविस्मृत और पितातुल्य कण्व ऋषि द्वारा अभिशापित शकुंतला की भी याद आयी!
    मूलस्थ भाव क्या है ?
    जो भी हो आत्म विस्मृतियों से बचना चाहिए -यहाँ ब्लॉग जगत में भी जब तब हम आप और वे भी आत्मविस्मृत हो उठते हैं !
    कई लोग तो कभी भी इस दशा से वापस लौटे ही नहीं :-)

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    1. पिता द्वारा अभिशापित होने पर शकुंतला और प्रस्तर हो जाने की स्थिति में अहिल्या का स्मरण स्वाभाविक है !
      नदी की शक्ल में सार्वजनीन हित साधन करना इस कथा का अतिरिक्त गुण है !

      दूसरे आत्मविस्मृत कौन है जो ...लौटे ही नहीं :)

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  11. शुक्र है , आजकल ऐसे शाप नहीं लगते !
    पहले ही आधे वाक्य में तीन अपरिचित स्थानों के नाम पढ़कर यही समझ आया की हमारी जियोग्राफी और हिस्टरी की नॉलेज बड़ी पूअर है . :)

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  12. डाक्टर साहब ,
    जगह भले ही अपरिचित हों पर शाप तो कामन हैं :)

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  13. सार्थक पोस्ट, आभार.

    कृपया मेरी नवीनतम पोस्ट पर भी पधारने का कष्ट करें.

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