शुक्रवार, 29 जून 2012

योद्धा की प्रेयसी ...!

यह आख्यान मसाई कबीले के एक सुन्दर और बहादुर योद्धा का हृदय जीतने के यत्न में लगी आठ युवतियों से सम्बंधित है !  वे सभी उस युवक से विवाह की इच्छुक हैं और उसकी प्रशंसा में गीतों की रचना करके उसे आकर्षित करने का प्रयास करती हैं , किन्तु उनमें से सबसे छोटी युवती की कविता अत्यन्त हृदयस्पर्शी है , अतः वह इस बहुमूल्य प्रेमी का वरण करने में सफल हो जाती है ! उसके गीत में प्रेम की उद्घोषणा तथा एक चुनौती निहित है , उसने कहा...मैं जिस योद्धा से प्रेम करती हूं / जिसके लिये मैंने अपने पिता के पशु झुण्ड से मीठे दही और दूध की व्यवस्था की है और जिसके लिये मैंने अपने पिता के चर्बीयुक्त मेढ़े रख छोड़े हैं , कि वह उनकी बलि दे , उनका सेवन करे / वो जिसके आराम के लिए मेरी सुडौल जांघें सतत प्रतीक्षित हैं / वो किस के साथ अपनी अगली विजय यात्रा के लिए प्रयाण करेगा ? सुदूर लक्षित विजय यात्रा पर अकेले निकलने से पहले योद्धा ने अपनी प्रेयसी से कहा कि वो , एक तुमड़ी में दूध रखे और उसकी अनुपस्थिति में प्रतिदिन उसका रंग देखती रहे यदि दूध का रंग लाल हो जाये तो वह यह समझ ले कि उसका प्रेमी योद्धा या तो गंभीर रूप से घायल हुआ है अथवा मारा गया है ! युवती ने वैसा ही किया जैसा कि उसके प्रेमी ने कहा था ! योद्धा के प्रस्थान के कई दिन बाद उसने देखा कि दूध का रंग लाल हो गया है ! वह जान गई कि अघट घट चुका है , वो फूट फूट कर रोई , किन्तु किसी दूसरे से यह दुःख भेद नहीं कहा ! वह तुमड़ी लेकर अपने प्रेमी के अवशेष लाने के लिए निकल पड़ी , वह कई दिनों तक चलती रही !

रात में जंगली जानवरों से बचने के लिए पेड़ों के ऊपर सोती और वही गीत गाती जो उसने अपने प्रेमी की प्रशंसा के लिए रचा था! दूध का रंग प्रतिदिन और भी गहरा लाल होता जा रहा था ! यात्रा की नौवीं संध्या को उसे , अपने गीत के प्रत्युत्तर में अपने प्रेमी की मद्धम आवाज सुनाई दी ! उसकी आवाज डूब रही थी ! वह एक पेड़ के नीचे घायल पड़ा हुआ था , कई दिनों से बिना भोजन और रक्त के बह जाने के कारण लगभग मृतवत हो चुका था ! उसकी ढ़ाल , उसकी तेज तलवार और नुकीला भाला उसके बगल में पड़े हुए थे ! उसकी प्रेयसी ने अपनी जांघ में उसका सिर रख लिया वह दर्द से कराहते हुए फुसफुसाया , तुमने वह कार्य किया है जो आज तक किसी स्त्री ने नहीं किया ! तुम्हारा प्रेम और मेरे प्रति तुम्हारी चिंतायें , हमेशा हमेशा के लिए मेरे हृदय में अंकित हो गई हैं ! मैं जब मर जाऊं तो तुम मेरे हथियार घर ले जाना और उन्हें मेरे उस बेटे को देना जो अभी पैदा होने वाला है ! वह इनसे वो लक्ष्य प्राप्त कर सकेगा जो मैं नहीं प्राप्त कर पाया ! युवती का संसार बिखर गया था , उसका देवता , उसका प्रियतम उसकी आंखों के सामने पड़ा था ! वह बेहोश हो गया था , हालांकि युवती उसकी मद्धम चलती सांसों को महसूस कर पा रही थी ! अचानक उसमें एक दैवीय शक्ति का संचार हुआ , उसने योद्धा के हथियार से एक चिंकारे का शिकार किया ! उसके प्रेम की भावना ने उसे साधारण प्रेयसी से एक योद्धा और एक नायिका में बदल डाला ! 

उसने अग्नि जला कर मांस भूना और अपने हाथों से अपने प्रेमी को खिलाया जोकि ठंडी हवाओं के चलते होश में आ चुका था ! अंधकार ने जैसे उसे रौशनी का मार्ग दिखा दिया हो ! वह स्वयं तब तक नहीं खाती थी जब तक अपने प्रेमी को ना खिला दे , उसके घावों में जड़ी बूटी का लेप करती और इस तरह से प्रेमी की सुश्रूषा करते हुए छै माह बीत गये , उसके घाव भर चले थे ! उधर गांव में युवती के मायके वालों ने कई महीनों से उसकी आश्चर्यजनक गुमशुदगी के बारे में सोचा कि , शायद उसने आत्म हत्या कर ली हो या फिर उसे जंगल में तेंदुआ खा गया हो , उन्होंने रो धो कर उसका श्राद्ध कर दिया ! इस तरह से मायके में उसका नाम मिट गया किन्तु योद्धा के परिजनों को अब भी उम्मीद थी ! अतः उन्होंने आठ माह तक उसकी प्रतीक्षा की , यहां तक कि योद्धा के छोटे भाई का खतना भी नहीं कराया गया ! लंबी प्रतीक्षा से थक हार कर योद्धा के पिता ने एक दिन उसके अंतिम संस्कार की व्यवस्था की , उस दिन सूर्य तेज चमक रहा था , संबंधियों ने शोकाकुल होकर अपने सिर और भंवें मुड़वा लिए थे ! मित्र / पड़ोसी / संबंधी लोग उसे श्रृद्धांजलि दे रहे थे ! अचानक किसी ने कहा हुश...चुप रहो...युद्ध गीत की आवाज आ रही है ! शोक सभा में सन्नाटा छा गया ! युद्ध गीत में एक तेज स्त्री स्वर और एक मद्धम टूटता हुआ पुरुष स्वर ! युद्ध गीत तेज और तेज होता जा रहा था ! रास्ते में झुण्ड की शक्ल में आ रहे पशुओं के गले की घंटियां जैसे युद्ध गीत से संगत कर रही हों ! अचानक सभी खुशी से चिल्लाये...अरे वे जीवित हैं  !  वे दोनों , जो मृत प्रेमियों की शोकसभा में उपस्थित लोगों के बीच में जीवित मौजूद थे !

मसाई लोग मूलतः पशुपालक और आखेटक समुदाय हैं ! उनमे से प्रत्येक के पास पशुधन होने की स्थिति में उन्हें बड़े और विशाल चरागाहों की ज़रूरत तो है ही जबकि वन्य जीवन भी चरागाहों और निकटवर्ती जंगलों में फलता फूलता है ! चाहे वे आखेट करें या ना भी करें तो भी उन्हें जंगली मांसाहारियों से , अपने पालतू पशुओं की सुरक्षा के लिए हथियारों की ज़रूरत पड़नी ही है ! कथा में उल्लिखित योद्धा के विषय में यह ज्ञात नहीं है कि वो योद्धा सुदूर विजय के नाम पर हर बार जाता कहां है ? क्या वह किसी दूसरे गांव और कबीले को अपने चरागाहों की सुरक्षा और विस्तार के लिहाज़ से दूर खदेड़ने वाली विजय यात्रा पर निकलता है अथवा जंगली मांसाहारी पशुओं के उन्मूलन का यत्न करता है ताकि उसके गांव का पशुधन सुरक्षित रहे ? बहरहाल यह सुनिश्चित है कि वह कथा कहे जाते वक़्त एक शानदार सुन्दर विवाह योग्य योद्धा था !  आख्यान के अनुसार उस युवक से प्रणय / विवाह की उत्सुक युवतियों की संख्या आठ है और वे सभी उस योद्धा के शौर्य की प्रशंसा में गीत लिखा कर उसे अपनी ओर आकर्षित करने का यत्न करती हैं ! लगता यह है कि युवक का सुन्दर होना एक अतिरिक्त गुण है जबकि वह युद्ध निपुण होने के कारण अपनी भावी पत्नी और परिवार को सुरक्षा की गारंटी देने में सक्षम तो खैर है ही , संभवतः वे आठों युवतियां युवक की इन दोनों विशिष्टताओं को ध्यान में रखकर ही , उसे अपने प्रेम , अपने पति के रूप में हासिल करने का प्रयास करती हैं !

यह समझना रोचक है कि ज्यादातर समाजों में स्वयं पुरुष ‘पहल’ करके , स्त्रियों को हासिल करने , उन्हें लुभाने की , कोशिशे करते होंगे पर इस समाज में स्त्रियां ये ‘पहल’ करती दिखाई दे रही हैं ! यानि कि दूसरे समाजों में प्रेम गीत / प्रशंसा / स्तुति गीत और प्रणय निवेदन में सम्मिलित तमाम प्राथमिक क्रिया-विधियां पुरुषों के हिस्से आती हैं तो इस समाज में यह सारा प्रपंच प्रथमतः युवतियों के हिस्से आया है ! कथा में कहा गया कि सबसे कम उम्र युवती का गीत हृदय स्पर्शी था तो वह युवक को प्रेमी और पति रूप में पाने में सफल रही , तो क्या उम्र ? इस चुनाव का कोई कारक रही होगी ? अथवा वह युवती अन्य युवतियों से अधिक सुन्दर रही होगी ? या उसकी पारिवारिक पृष्ठभूमि इसके लिए उत्तर दाई है ? वह कहती है कि युवक के लिए दूध और दही तथा मेढ़े का चर्बीयुक्त मांस पिता के पशु झुण्ड से , उपलब्ध है और उसकी सुडौल जांघें , थककर आये युवा की विश्रांति के लिए ! पौष्टिक भोजन और प्रेमिल विश्रांति तथा आगामी युद्ध यात्रा में सहचर हो पाने से जुड़ी भावनाओं को अभिव्यक्त करने यह गीत , विवाह योग्य उस युवा के भावी जीवन लक्ष्यों की ओर संकेत करता है ! भोजन , विश्राम और युद्ध के लक्ष्यों की सहचरी होने के शाब्दिक संकेत / आश्वासन युवती की प्रणय विजय का कारण बनते हैं ! उसके लक्ष्य प्रधान इस गीत को हृदय स्पर्शी कहा गया है ! योद्धा की अगली विजय यात्रा से पूर्व युवक और युवती विवाहित दंपत्ति हो चुके हैं और जैसा कि कथा में आगे स्पष्ट होता है कि युवती गर्भवती भी है !

मृत्यु की आशंकाओं से घिरा युवक अपने अजन्में शिशु के लिए अपने हथियार सुरक्षित रखना चाहता है ! वो कहता है कि वो जिस लक्ष्य को स्वयं हासिल करने में असफल रहा , उसे उसका पुत्र पूरा करे ! यही तो हम सब अभिभावक आज भी करते हैं , बिना इस बात की चिंता किये हुए कि पैदा होने वाली संतति की अपनी स्वयं की आकांक्षायें भी हो सकती हैं ! यानि कि नई पीढ़ियों पर , अभिभावकों की असफल / अपूर्ण इच्छाओं के आरोपण का सिलसिला सदियों से यथावत चला आ रहा है ! इसमें कोई आश्चर्य नहीं कि पुरुष प्रधान समाज का वह युवक अपने अजन्मे शिशु की कल्पना केवल बालक के रूप में ही कर पा रहा है,बालिका का जन्म उसकी प्राथमिकता नहीं है ! आप कह सकते हैं कि प्रेयसी के साहस , पराक्रम और समर्पण से प्रभावित होकर भी वह अपनी भावी संतति को स्त्री रूप में नहीं देखता / देख पाता ! युवा पत्नी को छोड़ कर विजय प्रयाण के लिये निकलते युवक के लिए लक्ष्य साधन , शौक की अपेक्षा अपरिहार्यता ही रहा होगा , शायद वही , अपने पालतू पशुओं के चारागाहों को सुरक्षित रखने की कवायद , हिंसक वन्य पशुओं से या अन्य किसी समुदाय से ! तुमड़ी का पात्र बतौर इस्तेमाल , समुदाय की ग़ुरबत का प्रमाण है ! प्रस्थान से पूर्व तुमड़ी में दूध रखे जाने का स्पष्ट अर्थ भले ही ना दिखे पर इसका कोई सांकेतिक औचित्य ज़रूर हो सकता है ! दूध का रंग लाल हो जाना अथवा कई दिन गुज़रने पर उसका खराब होते जाना ? इस गतिविधि का सही मकसद क्या था ? निश्चित तौर पर कुछ कह नहीं सकते ! शायद इसे वियोग का समय नापने , अधिक समय हो जाने पर खतरे का अनुभव करने के संकेत बतौर इस्तेमाल किया गया हो / कहा गया हो !

पति की लंबी अनुपस्थिति से चिंतित पत्नी अपने संबंधियों को अपनी आशंकायें बता कर हलाकान नहीं करती और पति के अवशेष लाने के नाम पर अकेले ही निकल पड़ती है ! चूंकि कथा का अंत सुखांत है सो इसे उसका साहसिक और उचित निर्णय कहा जाएगा वर्ना संकट / विपदा के समय एकाधिक संबंधियों की मौजूदगी / संबंधियों को विश्वास में लेने की ज़रूरत से कौन इंकार कर सकता है ? यदि कोई अनहोनी घटती और कथा दुखांत हो जाती तो युवती के इसी निर्णय की लानत मलामत करने की पर्याप्त वज़हें पैदा हो जातीं ! ससुराल पक्ष , युवा पति पत्नी के जीवित रहने को लेकर कहीं अधिक आशावादी है जबकि युवती का मायका पक्ष , छै माह के अंदर ही युवती की आभासी मृत्यु को परिस्थितिजन्य साक्ष्यों के आधार पर स्वीकार कर लेता है ! कथा कहती है कि श्राद्ध के बाद मायके में उसका नाम मिट गया ,यानि की जीवित संबंधियों की सूची में से ख़ारिज कर दी गई वो ! इसके लगभग दो माह बाद ससुराल पक्ष भी इसे होनी मानकर शोक कार्य क्रम की व्यवस्था करता है ! उधर वह युवती अकेले ही अपने युवा पति की खोज उस गीत को गाकर कर पाती है , जो उसने उसकी ही प्रशंसा में रचा था ! युवक अपनी जीने की उम्मीद खो चुका है और एक तरह से वह युवती के प्रति अपने प्रेम का अंतिम प्रदर्शन / स्वीकृत , करता है / देता है ! यहां तक कि वह अपनी आख़िरी वसीयत भी कह डालता है किन्तु युवती का प्रेम उसे पति को बचने के लिए प्रेरित करता है ! 

आख्यान कहता है कि अंधकार ने युवती को रौशनी दिखाई ! आप कहिये घनघोर प्रतिकूल परिस्थितियों / निराशाजनक माहौल में भी प्रेम प्रेरक बनकर युवती से वह सब करवाता है जो वह अपनी घरेलू जीवनचर्या में शायद कभी नहीं करती ! जहां किसी दूसरे से कोई उम्मीद शेष नहीं , वहां प्रेमासक्त वह स्वयं , केवल प्रेमिका और पत्नी की ही भूमिका में सीमित नहीं रह जाती ! वो एक शिकारी , एक उपचारक भी बन जाती है ! गहन वन में आठ माह तक असहाय / घायल पति को , भोजन कराने से लेकर भोजन की व्यवस्था तक वह स्वयं करती है ! उसके घाव के लिए आवश्यक जड़ी बूटियां , योग्य सुश्रुषा उसे भी एक सामर्थ्यवान योद्धा के रूप में स्थापित कर देती है ! कथा में घर से अनुपस्थिति के आठ माह का समय शायद जानबूझकर निर्धारित किया गया है , क्योंकि युवती गर्भवती है और उसे नौ माह में शिशु जन्म के लिए गांव वापस लाना कथा , कहने वाले की मजबूरी हो गई होगी ! शोक सभा में सभी सम्बन्धी मुंडन करवा चुके है ! एन मौके पर दंपत्ति की वापसी का युद्ध गीत , युवती के तेज स्वर और युवक के टूटते स्वर में , पार्श्व से उभरता और निरंतर तेज होता हुआ बतलाया गया है ! स्वस्थ होते हुए पति के खंडित स्वर और स्त्री के बुलंद / तेज स्वर , अपनी विजय यात्रा की सफलता के उद्घोष जैसा ! पालतू पशुओं के गले की घंटियों का संगीत गोया सोने पर सुहागा ! एक पराजित योद्धा की प्रेयसी का विजय अभिषेक !


31 टिप्‍पणियां:

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    1. सञ्जय जी ,
      आपकी आमद सुखद है ! बाकी तो शाब्दिक जोड़ घटाने हैं उनका क्या :)

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  2. ...मैं केवल इतना समझ पाया हूँ कि कविता रचने वाली को ही उस योद्धा ने अपने अनुकूल पाया क्योंकि इस विशेषता के चलते उसे जानकारी हो गई कि वह युवती संवेदनशील है.इस बात को युवती ने बाद में सिद्ध भी किया.

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    1. आपसे सहमति ! युवती सामर्थ्यवान थी यह उसने सिद्ध किया !

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  3. मनोरंजक एवं सुखांत यह कहानी अच्छी लगी, इस लड़की का साहसिक प्रयास प्रशंसनीय था ...
    विश्व में प्रचलित आख्यान पर शायद यह पहली पुस्तक होगी अगर आप लिखें तो ??
    शुभकामनायें !

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    1. सतीश भाई ,
      ऐसा नहीं है , लोक आख्यानों पर बहुत ज्यादा लेखन हुआ है , मित्रों ने हजारों किताबें छपवा रखी हैं ! दुनिया भर की यूनिवर्सिटीज में इसके नाम से डिपार्टमेंट और जाने कितनों की रोजी रोटी चलती है :)

      आपके प्रोत्साहन को मान कर अगर मैं इसे किताब की शक्ल दूं तो इसमें रेफरेंस वगैरह डालने का काम और थोड़ा बहुत पुनर्लेखन करना पड़ेगा और अभी तो मैंने एक छोटी सी मैग्जीन के लायक भी नहीं लिखा है :)

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    2. मुझे इस बारे में पता नहीं था, मगर यह रोचक साबित होंगे !

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    3. सतीश भाई ,
      आपसे फोन पर चर्चा करूंगा !

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  4. एक अमर और सुखान्त प्रेम कथा .....समर्पण और त्याग की भी बेमिसाल कहानी!
    इन प्रेम कहानियों की मीमांसा पर भी नज़ारे फिरा लेता हूँ-कहानी तो तन्मयता से पढता हूँ !
    अब आपकी कक्षा का क्षात्र तो हूँ नहीं कि मीमांसा पार्ट में दिमाग खपाऊँ -उसके लिए और
    पक्के आडियेंस तो हैं ही आपके -पुरुष एक माशूकाएं आठ आठ -चिट्ठा चर्चा बन गयी यह बात !

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    1. आपके नज़रें फेर लेने से मीमांसा को कितना दुःख हुआ होगा :)

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    2. @मीमांसा कमसिन हो तो कुछ बात भी बने-अब प्रौढा मीमांसा हमारी और सतीश जी की रूचि तो है नहीं आपकी बनी हुयी है तो जरूर बचपन का कोई फिक्सेसन है -:)

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    3. अरविन्द जी ,
      आपकी बात ही निराली है पर बेचारे सतीश जी जैसे साधु व्यक्ति को काहे लपेटे में ले रहे हैं :)

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    4. अली सर,
      संभालिए अपनी मीमांसा को ...
      :)

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    5. सतीश भाई ,
      चिंता ना कीजिये ! अरविन्द जी ने उसे प्रौढा मान लिया है :)

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  5. समय नापने के लिए तुमड़ी के दुध की तरह, कभी मुट्ठी, बीत्ता(बालिश्त), हाथ से ठंड नापी जाती थी।

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  6. अन्य वर्णित गुणों के अतरिक्त छोटी युवती के गीत में निहित चुनौती के भाव ने ही योद्धा को अधिक आकर्षित किया होगा।

    सुखांत कथा का यह अंश ह्रदयस्पर्शी है...

    युद्ध गीत की आवाज आ रही है ! शोक सभा में सन्नाटा छा गया ! युद्ध गीत में एक तेज स्त्री स्वर और एक मद्धम टूटता हुआ पुरुष स्वर ! युद्ध गीत तेज और तेज होता जा रहा था ! रास्ते में झुण्ड की शक्ल में आ रहे पशुओं के गले की घंटियां जैसे युद्ध गीत से संगत कर रही हों ! अचानक सभी खुशी से चिल्लाये...अरे वे जीवित हैं !....
    ...आपकी व्याख्या हमेशा की तरह सुंदर है।

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    1. देवेन्द्र जी ,
      पहले भी कहा था फिर से कह रहा हूं लिखने वाले का दिल रखना / खुश करना , कोई आपसे सीखे !

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    2. पहले आपने दूसरे ढंग से कहा था। आज कहने में कटाक्ष का भाव भी नज़र आ रहा है। क्या समझूँ?:)

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    3. देवेन्द्र जी ,
      शब्दों में अंतर हो सकता है पर प्रेम / स्नेह वैसा ही लबालब , एक जैसा :)

      जो अपने दिल में घर बना कर रह जायें उनको कटाक्ष कैसा ? और काहे ?

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  7. सच्चा प्रेम साहसी बना देता है !

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  8. सुन्दर कथा. एक फिल्म बनायीं जा सकती है.

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  9. कथा अगर मेरी लिखी हुई होती तो कहता जो जी में आये कीजिये :)

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  10. रोचक और सुखान्त कहानी है...कहानी के सारे तत्वों का समावेश किए हुए...

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    1. क्रेडिट उस कथा को कहने वाले का हुआ ! धन्यवाद !

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  11. .
    .
    .
    अली सैयद साहब,

    यहाँ एक बात और काबिले-गौर है... वह यह कि वह योद्धा युद्ध पर जाते समय महज एक चुंबन लेकर या आलिंगन कर भी जा सकता था... पर वह दूध भरी तुमड़ी के रूप में प्रेयसी के पास एक संकेतक छोड़ गया जिसमें रखे दूध का लाल होना उसकी जान के ऊपर आये खतरे के बारे में बताता है... कहीं न कहीं उसे यह भरोसा है कि उस पर आये खतरे को जान प्रेयसी समाज के हर बंधन को तोड़ उस तक मदद पहुंचाने की कोशिश करेगी... यह हुआ भी... मौत को करीब जान योद्धा ने प्रेयसी की ओर भविष्य में पैदा होने वाले पुत्र को अपने शस्त्र देने को कह एक और अंतिम चुनौती सी भी दी, अघोषित रूप में वह यह कहना चाह रहा था कि अगर इस समय मेरे पास मुझ सा ही शस्त्रों को इस्तेमाल करने की क्षमता रखने वाला पुत्र होता तो शायद हम इतने लाचार न होते... और अपनी समस्त शक्ति को जुटा उन्हीं शस्त्रों से एक चिंकारे को मार व प्राप्त पौष्टिक मांस से प्रेमी की प्राणरक्षा कर प्रेयसी ने वह चुनौती भी जीत कर दिखाई...

    बहुत-बहुत किस्मत वाला व बुद्धिमान था वह योद्धा... और वह प्रेयसी तो पूर्ण नायकत्व लिये हुऐ है यहाँ पर...




    ...

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    1. प्रवीण शाह जी ,
      कथा के दूध वाले एलिमेंट को बांचते हुए मैं थोड़ा कशमकश में था ! मुझे समय बीतने पर उसका खराब होना तो समझ में आ रहा था पर लाल रंग का हो जाना सांकेतिक ही लगा ! बेशक नायिका एक सम्पूर्ण योद्धा सिद्ध हुई !

      आपकी प्रतिक्रिया से सहमति !

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