पिछले कई दिन अपनी सरकारी नौकरी पर स्यापा करते गुज़रे ! घर से बाहर...स्वजनों से अलग ! जहां गये ,वहां इंटरनेट कनेक्शन तो था पर अपनी महारत के फॉण्ट मयस्सर ना थे...फिर हुआ ये कि मित्रों के ब्लॉग पढ़े तो सही पर रोमन लिपि में टिप्पणी करने का हौसला नहीं जुटा सके ! इधर हम अपनी शरीक-ए-हयात से दूर हुए...उधर डाक्टर अरविन्द मिश्रा , श्रीमती मिश्रा के मायका गमन वर्णन में तल्लीन...हर्षित / पुलकित / कम्पित हृदय से ब्लागरों से इस अवसर का लाभ उठाने के नुस्खे पूछ रहे थे ! बहरहाल उनके आलेख में पतियों के बहिर्गमन वाले हालात का कोई ज़िक्र ना था ! इसलिए हमने भी रंजिशन एक लंबी चौड़ी प्रतिक्रिया दर्ज कराके चैन पाया भले ही इसके चक्कर में हमें हिन्दी फॉण्ट डाऊनलोड करने की मशक्कत भी करना पड़ी !
अपने घर से बहिरागत होने से पहले प्रेम पर जो संस्मरणात्मक कथा लिखी थी ... मित्रों को उसके आगे के घटनाक्रम को जानने की इच्छा थी ! जो बरास्ते फोन और मेल्स पता तो चली पर काम काजी हालात में उसे तहरीरकर पाना मुमकिन नहीं हुआ ! अब जो घर लौटे हैं , तो ख्याल ये आया कि कहानी आगे बढ़ाई जा सकती है !
जैसा कि हमने लिखा और मित्रों ने भी अहसान और ज़ोया के रिश्तों में सुहेल की भूमिका को दरकिनार नहीं किये जाने की सलाह दी थी ! इसलिए सुहेल की पक्की खोज खबर लेने की ज़रूरत आन पड़ी ! सो प्रेम कथा में अगला ट्विस्ट ये कि सुहेल स्वयं शादीशुदा और कुलीन परिवारोत्पन्न...पालित पोषित युवा और एक सरकारी कारिन्दा है जोकि उसी संस्थान में काम करता है , जिसमें कि ज़ोया ने पढ़ाई की है ! ज़ोया की कम उम्री और पढ़ाई के दौरान मिले निकटता के अवसरों का लाभ सुहेल ने उठाया क्योंकि वह ज़ोया की डिग्री को प्रभावित करने की हैसियत रखता था और देखने सुनने में उसे अहसान से कही ज्यादा बेहतर मान जाये ! शायद ज़ोया की फिसलन को इन्हीं दो बिंदुओं और अहसान की अनुपस्थिति के त्रिकोण में बांध कर देखना उचित होगा , लेकिन यह सुनिश्चित है कि सुहेल ने अपनी हैसियत का नाजायज़ फायदा उठाया है !
चिंतनीय विषय यह है कि सुहेल ना तो ज़ोया से शादी कर सकता है और ना ही उसके बच्चे को अपनाने की इच्छा रखता है और ना ही ऐसा करना अफोर्ड कर पायेगा क्योंकि उसका अपना पारिवारिक जीवन भी है ! फिलहाल सुहेल अहसान और ज़ोया से दूर संभ्रांत नागरिक होने का ढोंग / पाखण्ड जी रहा है ! ज़ोया और अहसान ने अतीत को भुलाकर साथ रहने का फैसला किया है और अहसान ज़ोया के पक्ष में इसलिए खडा हुआ क्योंकि उसे सुहेल का छल नजर आ रहा है और वह स्वयं ज़ोया से प्रेम भी करता है ! सुहेल की हैसियत के छल को वह ज़ोया की मजबूरी...समय का खेल और दुर्भाग्य समझ कर भूल जाना चाहता है क्योंकि ज़ोया के पछतावे और उसके प्रति स्थाई कमिटमेंट और प्रेम पर उसे अब भी यकीन है ! दुआ करें कि इस दंपत्ति का भावी जीवन निष्कंटक गुज़रे ! किन्तु एक प्रश्न अभी भी जीवित है कि सुहेल अब भी वही हैसियत रखता है ! वह उसी महिला संस्थान में कार्यरत है जहां अगले बरस कोई और ज़ोया अपनी तालीम के लिए आयेगी ! ...आगे भी अनेकों ज़ोया आती रहेंगी ! खुदा खैर करे...
आज सुबह सुबह प्रेम की एक और गाथा ने होश फाख्ता किये हुए हैं सो चलते चलते वो भी सही ! मुख्तार और समन पिछले तीन साल से साथ रह रहे थे , हालंकि उनका प्रेम इससे भी कहीं ज्यादा पुराना था ! सन 2011 की दूसरी छै माही की शुरुवात में ही समन ने एक बिटिया को जन्म दिया ! इसे संयोग ही कहा जायगा कि हमारे एक ब्लागर मित्र भी उसी सरकारी अस्पताल में काम करते हैं जहां मुख्तार और समन का प्रेम फलीभूत हुआ ! बिटिया के जन्म के लगभग तीन माह बाद भी प्रेमी युगल प्रेमासक्त बने रहे ! अक्टूबर 2011 को एक बार फिर से वे अपना गांव छोड़ कर उसी शहर पहुंचे जहां बिटिया का जन्म हुआ था ! लाज में प्रेमी जोड़े के दरम्यान रिश्तों को शादी में बदल देने के मसले पर बात हुई ! अगली सुबह मुख्तार अकेले ही नवजात कन्या को , अपने परिजनों के पास ले जाने के लिए , लेकर निकला और जाते जाते वह कमरे का दरवाजा बाहर से बंद कर गया और शाम को समन के पास वापस लौटा तो वह अकेला था ! इस बाबत समन की पूछताछ पर मुख्तार के गोलमोल जबाबों ने समन को परेशान कर दिया जिस पर उसने पुलिस को अपने सवालों के जबाब ढूंढने की जिम्मेदारी सौंप दी ! पुलिस को घुमाते हुए मुख्तार आखिरकार टूट गया और उसने क़ुबूल किया कि बच्ची को आधा जला कर उसने अमुक स्थान पर लगभग ज़िंदा दफ्न कर दिया है ! मामला फिलहाल पुलिस की तहकीकात में शामिल है ...पर प्रेम ने मुझे अब भी कन्फ्यूजन में डाल रखा है !
विशेष टीप :
पात्रों के नाम बदल कर लिखी गई इस संस्मरणात्मक कथा का अंत चाहे जो भी हो पर... प्रेम , इंसान , उसके ज़ज्बात और रिश्ते बेहद कन्फ्यूज करते हैं मुझे !
1.ज़ोया और अहसान ने अतीत को भुलाकर साथ रहने का फैसला किया है ....
जवाब देंहटाएंअच्छा लगा यह जानकर , कारणों में जाने की ज़रूरत ही नहीं लगती.
2.महानगरों में किसी को फ़ुर्सत नहीं होती किसी दूसरे के ज़िदगी में झांकने की.
(2)मसला दूसरों के झाँकने से ज्यादा खुद ही पलट कर झांक लेने की आशंका वाला है !
हटाएंबाप रे! लोमहर्षक संस्मरण.....मुख्तार जैसे हृदयहीन व्यक्ति को प्रेम का ककहरा भी नहीं पता...समन से उसे कतई प्रेम नहीं था...और शायद ही वो कभी शादी करता...अब तो समन को ही उस से शादी नहीं करनी चाहिए.
जवाब देंहटाएंजोया और अहसान के कथा की सुखद परिणति स्वागतयोग्य है
मुख्तार अब जेल जाएगा तो समन उससे शादी करे यह संभावना लगती तो नहीं है !
हटाएंमेरा कमेंट गायब हो गया लगता है। बड़ा अच्छा कमेंट था। सुहेल को कोसा था और सजा दिलाने की बात लिखी थी। आपकी हिम्मत (मेरा मतलब मोहब्बत के किस्से) की दाद भी दी थी कि अभी एक खत्म नहीं हुई, दूसरी पे चालू हो गये! वह भी लोमहर्षक!! मेरा तो रोम-रोम हिल गया। दरअसल ऐसे रिश्तों को प्यार का नाम देना ही गलत है।
जवाब देंहटाएंस्पैम में ढूंढा नहीं मिला ,माडरेशन में देखा नहीं मिला मतलब ये कि वो मुझ तक पहुंचा ही नहीं ! आपके हाथ से पहले ही छूट गया कहीं :)
हटाएंआपके रोम रोम हिलने से क्या फायदा ! रोम रोम मुख्तार का हिलता तो कोई बात बनती !
इसलिए ही तो कहता हूँ थोडा जैवीय नजरिया अपनाईये ....मनुष्य से बड़ा कामुक ,भोगी आक्रामक ,ढोंगी ,भगेडू ,अहसानफरामोश और कोई जानवर नहीं है .....बच के रहना रे बाबा !
जवाब देंहटाएंथोड़ा जैवीय क्यों ? हमने तो फिफ्टी परसेंट जैविकता के हिस्से में दिया हुआ है :)
हटाएंvicharniy post.aabhar..mere jile ke neta ko C.M.bana do and 498-a
जवाब देंहटाएंशुक्रिया !
हटाएं१) अहसान और जोया ने हालात को मद्दे नज़र रखते हुए सही फैसला लिया है ।
जवाब देंहटाएं२) जाने कितने सोहिल समाज में भरे पड़े हैं ।
३) हैरान हूँ कि छोटे शहरों में भी लिविंग इन रिलेशनशिप होने लगे हैं ।
४) कन्फ्यूज होने की ज़रुरत नहीं --प्रेम अब दुर्लभ हो गया है । जो है , उसे प्रेम नहीं कहा जा सकता । सेक्स एक ऐसी चीज़ है जो हमेशा से मनुष्य पर हावी रहा है और रहेगा । इसीलिए गीता में मन को नियंत्रण में रखने की बात कही गई है । और कोई रास्ता है ही नहीं ।
(१) शायद यही पाजिटिव और बेहतर विकल्प है वर्ना तलाक की निगेटीविटी तो पहले ही मुंह बाए खड़ी ही थी !
हटाएं(२) सही है !
(३) डाक्टर साहब आपने गौर नहीं किया ये सारे किरदार कबीलाई पृष्ठभूमि के लोग हैं इसलिए लिविंग इन रिलेशनशिप हैरानी का सबब नहीं है !
(४) सेक्स और प्रेम में भेद करने का अख्तियार जे.सी.जी को है मुझे इस बाबत कुछ पता नहीं :)
अली साब,
जवाब देंहटाएंआप भी न औरों की तरह रति-प्रसंग में पुरुषों को दोषी ठहरा रहे हैं,जबकि सम्बन्ध बनाते वक्त जोया पूरे होशो-हवास में थी और यह भी कि वह यक़ीनन जानती थी कि सुहेल उसका भविष्य नहीं है.इसलिए उसे इस मामले से बरी करना मुझे तर्क-संगत नहीं लगता.पुरुष तो हमेशा ही मौके की ताक में रहते हैं, यह स्त्री ही है कि अपने बेजा इस्तेमाल को न होने दे.मजबूरी और दबाव कमज़ोर कारण हैं उसके पक्ष में.
अहसान और जोया का मिलन हो गया है पर अभी कहानी का पटाक्षेप नहीं हुआ है इसलिए कोई निष्कर्ष निकाल लेना बेमानी होगा,भले ही उन दोनों की पृष्ठभूमि आदिवासी है.
मुख़्तार की क्या कहें ,जहां उस समाज में इससे भी ज़्यादा गड्ड-मड्ड चल रहा है.
..आप की भूमिका अब खत्म हो गई या नजूमियत ही करते रहोगे ?
संतोष जी ,
हटाएंइस प्रकरण में स्त्री पुरुष से पहले मुद्दा ये है कि एक छात्रा और उसके शिक्षक तुल्य में से किसे बड़ा गुनाहगार बताऊँ ! छात्रा की हैसियत से ज़ोया की गलती यकीनन सुहेल से कमतर मानी जायेगी ! वैसे गलती तो उसकी भी है ही ! फिलहाल कहानी ने एक सकारात्मक मोड़ लिया है सो आशीर्वाद ही दीजिए ! पटाक्षेप की जल्दी में हम भी किसी खास निष्कर्ष से चिपक कर नहीं बैठे हैं ! हां उम्मीद हमेशा बेहतर की ही रहेगी और रखना भी चाहिये !
मुख्तार मोटे तौर पर एक दुर्दांत कसाई जैसा है जिसने अपनी ही बेटी को क्रूरतम तरीके से मार डाला !
नज़ूमी की मदद करना हमारा फ़र्ज़ है ! अच्छे सम्बन्ध और मित्रता इसी से परखी जाती है :)
अली सा.,
हटाएं@मुख्तार मोटे तौर पर एक दुर्दांत कसाई जैसा है जिसने अपनी ही बेटी को क्रूरतम तरीके से मार डाला !
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इतने यकीनी तौर पर कैसे कह सकते हैं आप!! मामला अभी भी तहकीकात के लेवल पर है... ये नहीं हो सकता कि उसने अच्छी-खासी रकम लेकर किसी कोठे पर बेच दिया हो!! आखिर उस बच्ची की अम्मा से शादी का जहेज भी तो वसूल करना रहा होगा!!
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जस्ट अ प्वाइंट! और कुछ नहीं!!
सलिल जी,
हटाएंमुख्तार ने मौका-ए-वारदात से आधा जलाकर दफ्न किये गये दिवंगत शरीर के अंश बरामद करवा दिए हैं ! बेटी के कपड़ों के अधजले टुकड़े और जिस्म के भी,जिन्हें परीक्षण के लिए फारेंसिक लेब को सौंपा जाना है ! पुलिस के सामने मुख्तार का क़ुबूलनामा अगर सही ना हुआ तो संभावनाएं और भी हो सकती है ! अपना कथन आज की परिस्थितियों को लेकर है आगे के हालात में ज़रूरत हुई तो खेद सहित अपना कथन बदल लेंगे !
मुख्तार जैसों की चर्चा पढना भी मानवता के लिए कष्टदायक लगता है भाई जी ....
जवाब देंहटाएंशुभकामनायें जोया और अहसान को !
सतीश भाई ,
हटाएंदानवता के बिना मानवता का मोल कौन जानेगा ? हम हैं सो इन दोनों का सहअस्तित्व भी है !
मुख्तार के अपराध के बारे में तो कोई शक़ है ही नहीं, बेचारी समन अपनी नासमझी की सज़ा शायद जीवन भर भुगतेगी, मगर सबसे कठिन सवाल यह है कि मासूम बच्ची का अपराध क्या था? भविष्य में वैसी बच्चियों (और उनकी माँओं) को उस जैसों से कैसे बचाया जाये?
जवाब देंहटाएंपिछली कहानी के बारे में आपका उठाया हुआ सवाल जायज़ है। पति-पत्नी को मिलकर सुहैल के खिलाफ़ खड़े होना चाहिये। मामला खुलने पर कुछ अन्य पीड़ित भी सामने आ सकते हैं। शायद ऐसा न भी हो मगर फिर भी सामना किया जाना चाहिये भले ही उसके लिये डीएनए जाँच भी करानी पड़े। पति-पत्नी का लगाव इतना मजबूत तो लग ही रहा है कि इस घटना के बावजूद वे भविष्य में एक दूसरे का साथ ईमानदारी से निभा सकेंगे।
बेटियों और स्त्रियों के प्रति एक विशिष्ट मानसिकता हमारे समाज / हममें ही गहरे बैठी हुई है ! एक द्वैध है , हम कहते कुछ और हैं और करते कुछ और ! ऐसा नहीं है कि यह मनोवृत्ति सौ फीसदी पुरुषों में है पर जिनमें और जितने प्रतिशत में भी है वे चिंता का कारण ज़रूर हैं !
हटाएंभविष्य को लेकर किसी स्ट्रेटिजी के मुद्दे पर मैं खुद भी अनिश्चित मन: हूं कि इफेक्टिव क्या होगा ? कानून की कड़ाई या हम सबके दरम्यान कोई सामाजिक मुहिम ? ...और इसमें आधी दुनिया (स्त्रियों) के सपोर्ट बिना बात आगे कैसे बढ़ेगी ? वगैरह...वगैरह , कोई ठोस विचार नहीं है अब तक !
पिछली कहानी पर आपकी सदाशयता के लिए आभार !
पिछली कहानी में इस सुखांत की उम्मीद थी ...
जवाब देंहटाएंमुख़्तार जैसे लोंग प्रेम को बदनाम करते हैं ...
जोड़े के पारस्परिक प्रेम , गलतियों के पश्चाताप और विशाल हृदयता ने कथा को सुखांत कर दिया है ! वर्ना ...
हटाएंमुख्तार पे सहमति !
Prem ko badnaam nahi kiya ja sakta ye main maanta hun aur jo log badnaami kee chaah rakhte hai wo prem nahi karte... khair is par bahas aur bhi ho sakti hai... post achhi lagi...
जवाब देंहटाएंउन्हें जो करना है वे कर ही रहे हैं पर हम तो आगे की शल्यक्रिया में उलझे हैं , कि उन्होंने अच्छा किया या बुरा ! बदनाम किया या नेक नाम ! प्रेम किया याकि नहीं भी !
हटाएंप्रतिक्रिया के लिए आपका आभार !
हम्म..क्रिया प्रतिक्रिया अच्छी हो रही है।
जवाब देंहटाएंऔर क्रिया प्रतिक्रिया पे हुंकारे भी अच्छे हो रहे हैं :)
हटाएं"प्रेम , इंसान , उसके ज़ज्बात और रिश्ते बेहद कन्फ्यूज करते हैं मुझे !"
जवाब देंहटाएंमुझे भी :(
स्वाभाविक है !
हटाएंकहाँ का विकास ?कौन सा विकास? कहाँ की शिक्षा ?कौन सी शिक्षा ?क्या आज तक भी हमारा बौद्धिक विकास हो पाया है ?क्या जानवरों की श्रेणी से हम आगे निकल पाए है ?
जवाब देंहटाएंशायद नहीं !
हटाएंपिछली कहानी की भाषा बहुत कठिन थी. इस कहानी को प्रेम कथा नहीं वीभत्स कथा कह सकते हैं. दोनो कहानियाँ दुखी करने वाली हैं.
जवाब देंहटाएंमुझे तो एक ही बात समझ आती है कि परिवार नियोजन के बारे में पढ़े लिखे ही क्या डॉक्टर भी नहीं जानते. निचोड़ यह है कि सैक्स एजुकेशन आवश्यक है. परिवार नियोजन के लिए वेंडिंग मशीनों की आवश्यकता है अन्यथा हमें वापिस उस युग में जाना होगा जहाँ किशोरावस्था से पहले ही विवाह हो जाता था. क्योंकि प्रेम हो या वासना किसी भी बच्चे को यूँ अवांछित संसार में लाने का किसी को अधिकार नहीं हो सकता. अपनी संतान के प्रति सब दोषी हैं. अहसान इसलिए कि डॉक्टर होकर भी वह जोया को सुरक्षित रहने का महत्व नहीं सिखा पाया.
घुघूतीबासूती