सेहत बनाने के ख्याल से भोर में टहलने का शगल अपनी पसंद में शुमार नहीं रहा कभी...पर वे लोग बाकायदगी से एक छड़ी के हौसले पर, गुज़रे कई सालों से सेहतमंद होने के मुगालते में जी रहे हैं ! और वे , जिनकी जनानियां शायद, छड़ी अपने कंट्रोल में रखती होंगी, अपने पालतू चौपायों की गर्दन वाले पट्टे से सधी हुई डोर के छोर पर अपने हौसले को अटका कर रखते हुए सेहत बनाये रखने के नित्य कर्म में लीन, मेरे घर के सामने वाली सड़क से यूं गुज़रते हैं कि घड़ी मिला लूं जो एक लम्हा भी इधर से उधर हो जाये ! क़दमों में नपी हुई तेजी और सीने में कलफ लगी हुई अकड़ वाली स्मार्टनेस ! अक्सर ये फर्क करना मुश्किल हो जाता है कि दोनों में से कौन किसे टहला रहा है और किसका पालतू कौन ? सेहतमंद बने रहने की खातिर खास वक़्त पर सड़क नापने से पहले या बाद में या फिर इसके ठीक बीचो बीच किसी एक के फारिग होते रहने की कल्पनाओं और क्रियान्वयन-शीलता से मुझे बेहद कन्फ्यूजन होता है कि देह से त्याज्य पदार्थों को त्यागने का वास्तविक समय क्या है ? बेशक दोनों के पालतू होने के अहसास के समानान्तर विसर्जन की टाइमिंग एवं स्थानिक भिन्नता के कारण ही मेरा कन्फ्यूजन स्थाई भाव में बना रहता है !
जिन बन्दों के परिवार नई फसलों के मौसमों से गुज़र रहे हैं वे प्राम में अपनी उपलब्धियों को घुमाते वक़्त बे-औलाद घुमक्कडों से बेनियाज़ बने रहते हैं ! हालांकि डोर पट्टे से जुड़े टहल-रत जोड़े पर वो इस तरह से निगाहें डालते हैं जैसे अभी कह बैठेंगे...ओह आप भी ! मुझे समझ में नहीं आता कि डोर से बंधे पालतू और प्राम के संरक्षण वाले पालतू में से आगे चलकर किसकी सेहत ज़्यादा बेहतर रहने वाली है ! लेकिन मुझे पता है कि थोड़ी ही देर बाद सूरज सारे परिदृश्य बदल देगा उस वक़्त बे-टहले हुए लोग अपने चौपायों के साथ खेतों की ओर ...और एक बड़ी भीड़ शहर के निर्माणाधीन गंतव्यों की ओर चल पड़ेगी, उन्हें जीवित रहने के लिए खाने की और खाने के लिए टहल कर देह को झोंक देने वाली गतिविधि में लिप्त होने की अनिवार्यता है जबकि उनसे थोड़ी ही देर पहले इसी सड़क पर टहल रहे लोगों को अपने खानपान के बाद की समस्याओं से निपटने के नाम पर टहलना था !
मेरा ख्याल है कि इंसान धरती पर दाखिल होने से लेकर ख़ारिज होने तक के, दरम्यान ठीक उसी तरह के पालतूपन की प्रक्रिया से गुज़रता है जिसे कि उसने अपने अस्तित्व रक्षण के मद्दे नज़र चौपायों के लिए तय कर रखा है ! यानि कि धरती पर पशुओं के पालतूपन की शुरुवात से एन पहले इंसानों के खुद के पालतूपन की शुरुवात हुई होगी ! अगर वह खुद के पालतूपन के दौर / अनुभवों से नहीं गुज़रता तो फिर पशुओं के पालतूपन को अपने लिए मुफीद कैसे जानता ? सच कहूं तो पालतूपन से पहले के मनुष्य और पशु में कोई अंतर भी नहीं है और अगर पशु जगत में से कोई एक वर्ग भी, मनुष्यों से पहले पालतू हो पाया होता तो शायद दुनिया का नज़ारा कुछ और ही होता ! नि:संदेह पहले के पालतू को बाद वाले पालतू पर वैसे ही बढ़त हासिल होती जैसे कि आज मनुष्यों को पशुओं पर है ! मुझे यकीन है कि खालिस देह से मनुष्य हो जाने और मनुष्य होकर दूसरी देहों को अपने मातहत कर लेने में पालतूपन का बहुत बड़ा योगदान है !
अगर हम इंसान अपने जन्म और मरण के बीच का वक़्त खुद के पालतू होने और बाद में दूसरों को पालतू बना लेने में, नहीं गुज़ारते तो, पशुओं की तर्ज़ पर एक घर और नियमित भोजन की सुविधा के अभाव तथा प्राकृतिक आपदाओं के विरुद्ध स्वयं के संरक्षित बने रहने की समस्या से जूझ रहे होते ! यौन जीवन की अनियमितता, अनियंत्रित प्रजनन से दुनिया का तब क्या हाल हुआ होता यह सहज ही कल्पना की जा सकती है ! तब कोई किसान भोजन नहीं उपजाता, कोई मजदूर घरौंदों का निर्माण नहीं करता, कोई अनुभव समृद्ध ज्ञान को नहीं सहेजता, कोई यांत्रिक उन्नति भी नहीं होती, कोई राग नहीं रचे जाते और ना ही नृत्य गीत, तब कोई उत्सव और उल्लास के सामूहिक आयोजनों के कारण भी नही होते, इस सूरत-ए-हाल में कोई प्राम भी नहीं होती और ना ही श्वानों के गलों पे बंधे हुए पट्टे से जुड़ी हुई डोर के स्वामियों का आत्म विश्वास बढ़ता ! कहन और श्रवण से उपजे संसार, सभ्यता और संस्कृति का भी कोई अस्तित्व नहीं होता अगर मनुष्य ने पालतूपन को स्वीकार नहीं किया होता और हां...तब अच्छी सेहत के ख्याल से भोर में टहलने का तो सवाल ही नहीं उठता था !
प्रस्ताव -'पालतूपना अभिशाप या बरदान' ☺
जवाब देंहटाएंकाजल भाई ,
हटाएंपालतूपन है तो वरदान ही पर इसमें थोड़े बहुत अभिशाप के कंटेंट भी मौजूद हैं :)
Ha ha ha!Ghoomti to mai bhee nahee,lekin haan...sehat ke liye subah ghoomna achha hai ye to mantee hun!Ab paltupan to pata nahee...uspe koyee comment nahee!
हटाएंक्षमा जी, शुक्रिया !
हटाएंटहलने की बात को छोड़ भी दे तो ज़रा कल्पना कीजिये कि बच्चे पैदा होने के बाद अगर पाले ना जायें तो क्या होगा उनका ? उनमें और जानवरों में क्या फर्क होगा ? और तो और हम भी अगर पाले ना गये होते तो क्या होते आज :)
अजी!
जवाब देंहटाएंडोर के दोनों सिरों पर रहते हैं पालतू
लेकिन मालकिनों की निगाह में रहेंगे फालतू
मालकिन भी तो पली पलाई लाई जाती हैं :)
हटाएंमार्निंग वॉकर्स अपने घुमक्कड़ी के अभिमान में विश्वविद्यालय के आवासीय खिड़की से झांकते, अभी अभी सो कर उठे, ऊँघते प्रोफेसरों को देखकर आलसी परजीवी समझते हैं, वे मार्निंग वाकर्स के बारे में कैसे उलूल-जुलूल खयाल रखते हैं!
जवाब देंहटाएंदर्शन के लिहाज से पालतूपने का जो दर्शन आपने झोंका है वह अनूठा होने के साथ-साथ मस्त है।
गंभीर शब्दों में हंसाते-हंसाते दर्शन झोंक देने की कला कोई आपसे सीखे। इसे पढ़कर आँखों में चमक, दिल में गुदगुदी, अधरों पर मुस्कान और दिमाग में खुजली सब एक साथ होने लगती है।
अंत में प्राम गाड़ी का एक चित्र चिपका दिये होते तो सही रहता। काजल कुमार जी से कहिये कि बनाकर भेज दें मेल से
ऊंघते प्रोफेसर्स पे आलसीपन का इलज़ाम तो समझा पर...परजीवी :)
हटाएंअसल में हम सभी पालन पोषण की प्रक्रिया की वज़ह से इंसान हैं / सामाजिक हैं वर्ना अब भी पशु होते ! मुझे खुशी है कि इंसान ने सबसे पहले पालतू हो जाने का सबक और लंबा सुगठित तंत्र विकसित कर लिया और इसके ही कारण से अन्यान्य देह रचनाओं ( पशुओं ) को अपने से हीन साबित कर पाया !
आपकी टीप के तीसरे पैरे को मेरे प्रति आपकी दरियादिली / सहृदयता मानने ही वाला था बल्कि मान ही चुका था कि लफ्ज़ खुजली ने खटका पैदा कर दिया है :)
देखते हैं काजल भाई इस पर क्या प्रतिक्रिया देते हैं :)
हां, खिड़की देख कर अंदाजा लगाना गलत है कि कौन परजीवी है, कौन श्रमजीवी। सभी एक जैसे नहीं होते। मैने लिखा.. मार्निंग वॉकर्स अपने घुमक्कड़ी के अभिभान में ऐसा कहते हैं। यह शब्द उस पर उछाल दीजिए जिस पर फिट बैठता हो, होंगे तो जरूर आस पास:)
हटाएंलफ्ज़ खुजली से भी सशंकित न हों। मेरा आशय आपकी पोस्ट से चिढ़ना नहीं बल्कि पोस्ट के मूल भाव को जैसा मन में है वैसा अभिव्यक्त न कर पाने की वज़ह से था। गलत लिख गया, वापस लेता हूँ। खुजली तो टीपें पढ़ कर आपको हो रही होगी।:)
मानव जानवर भले न हो, मगर पालतू है इसे तो आपने सिद्ध कर ही दिया। मानव का स्वभाव ही पालना और पलवाना होता है। समर्थ होने पर पालता है और असमर्थ होने पर चाहता है कि कोई उसे पाल ले। इसके पीछे मानव के संवेदनशील मन को और उदात्त प्रेम की भावना को ले सकते हैं। जब वह जानवरों को भी पालना शुरू करता है तो उसमें प्रेम के साथ-साथ कई कारक जुड़ जाते हैं। जैसे उसका शक्ति प्रदर्शन या फिर प्रेम से उलट जानवरों को पालने से होने वाले लाभ के प्रति स्वार्थ की भावना। शीर्षक से ही बात स्पष्ट हो जाती है कि आप क्या कहना चाहते हैं। आपका आशय यह कि संपूर्ण जहान ही इसी पालतूपने के आश्रित है । अब जैसा कि काजल कुमार जी ने विषय दिया है शाप या वरदान। यह विषय का दूसरा अध्याय हो सकता है। विश्वास है कि आप उस चेप्टर को भी पढ़ाना चाहेंगे..:)
ये मार्निंग वाकर्स खिड़कियां देखने जाते हैं या... :)
हटाएंमन की शंका से एक वापस ली लेकिन दूसरी टीप देखने वाले पर धर दी :)
जन्म लेने के समय तक मनुष्य भी पशु (तुल्य) ही होता है ,पैदा होने के बाद पालन पोषण के कारण अंतर जुड़ते जाते हैं !
पामेला एन्डरसन एक बार कुछ युवाओं को पालतू कुत्ते की तरह चेन लगाये शान से चल रही थीं ...ऐसे पालतूपना के बारे में आपका नजरिया क्या है ?
जवाब देंहटाएंपामेला वाला मसला तो उसके एड.गुरु / एड.एजेंसी / फोटोग्राफर / सलाहकार या किसी व्यवसायी दिमाग की उपज रहा होगा पर...रमणियों के पीछे बिना पट्टे भी जुबान लपलपाते हुए घूमने वाले आपने देखे ही होंगे :)
हटाएंजहाँ तक मैं समझता हूँ , पालतूपना शौक़ से कहीं ज्यादा एक प्रवृत्ति होती है.पुरुष को स्त्री के बहाने उसका दंभ कुछ शांत होता है तो स्त्री इस तरह अपनी दमित इच्छाओं को पूरा करने का प्रयास करती है .
जवाब देंहटाएंपालतू होने में स्त्री पुरुष का भेद नहीं है !
हटाएंआपने दुरुस्त फ़रमाया,मैं ही विषयान्तर कर बैठा था !
हटाएंमैंने कुछ लोगों को दिन में 12.00 बजे पार्क में जोगिंग करते हुए देखा,
जवाब देंहटाएंशायद इसी को कहते हैं "जब जागो तब सवेरा"। आपका कहना सही है।
'रूसो' ने इसी पालतूपन को 'social contract' में जंजीर बताया है,यानि
वही पट्टा इन्सान के गले पे भी बंधा हुआ है और स्वामी है दुनिआवी
जरूरतें और उससे भी बढकर तृष्णा।
@ जब जागो तभी सवेरा , वाह !
हटाएं@ रूसो , हां ये एक किस्म का सोशल कांट्रेक्ट ही है !
"यशोदा हरि पालने झुलावें"... 'पालना' झुलाना और 'पालना'... और पालते-पालते उन्हें पालतू बना देना या मनुष्य एक पालतू जानवर है जैसा मुहावरा गढ़ लिया जाना... सच है, सोच है और इसी सोच से एक गहन दर्शन की पैदाइश होने की उम्मीद की जा सकती है!!
जवाब देंहटाएंसुबह घूमना तो दीगर सुबह कहते किसे हैं, नहीं मालूम!! आराम बड़ी चीज़ है मुँह ढँक के सोइए वाले उसूल पर चलकर इस पालतूपन... सॉरी फालतूपन को उपलब्ध हुए हैं!!
सलिल जी,
हटाएंहम बच्चे पालते हैं और वे एक समय में हम बूढों को ! पालना शब्द एक सामाजिक प्रक्रिया के लिए प्रयुक्त प्रतिनिधि शब्द है ! जिसमें लिप्त उभय पक्ष को क्रमशः पालनहार और पालतू (पालित) ही माना जायेगा ! मसला मुहावरे का नहीं है यह एक सत्य है जिसकी वज़ह से हम पशुता से मुक्त (श्रेष्ठ) हुए हैं हमारा समाज , हमारी संस्कृति , हमारी सभ्यता हमारे पालतू होने के जीवंत सबूत हैं !
आपकी तर्ज़ पर हमने भी सुबह को शब-ब-खैर कह रखा है :)
अगर मनुष्य ने पालतूपन को स्वीकार नहीं किया होता तो आज दुनिया का क्या आलम रहा होता हम तो इसी सोच में मशगूल हैं.
जवाब देंहटाएंअब उस आलम की कोई उम्मीद नहीं इसलिए फ़िक्र छोड़ दीजिए :)
हटाएंआपको नहीं लगता है कि अक्सर हम लोग फालतू को ही पालतू सा बनते हुए या बनाने की कोशिश करते देखते है? वैसे भी हम मनुष्य बगैर स्वार्थ किसी को पालतू क्यों बनाएँ? ई समीकरण / समीकरण कुछ गड़बड़ा नहीं रहा ?
जवाब देंहटाएंअस्तित्व बनाये रखने के लिए पालतू हो जाना ही सबसे आदर्श स्थिति थी इसे भी हमारा स्वार्थ माना जा सकता है :)
जवाब देंहटाएंशिशु जन्म के समय एक देह मात्र होता है उसे सामाजिक जीवन में प्रवेश के लिए पालतू होने की प्रक्रिया से गुजरना ही होता है :)
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जवाब देंहटाएं.
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पालतूपने के सम्मान में पालतू आलेख पर अपनी एक पालतू टीप भी पाल ही लीजिये... :)
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आपने एक ख्वाहिश पाली की हम एक टीप पाल लें तो लीजिए पाल लिया :)
हटाएंपहले तो व्यंग्य की तर्ज़ पर ही पढ़ा , मगर आप तो पालन पोषण को लेकर गंभीर निकले !
जवाब देंहटाएंये पालतूपन तो बड़े काम का है !
शुक्रिया !
हटाएंपालतु चौपायों के गले में पट्टा बांध कर चलने वालों और भोर में चौपायों संग खेतों की ओर जाने वालों पर --
जवाब देंहटाएंवहां काम पर जाते हैं पैदल चलकर
यहाँ पैदल चलना भी एक काम है !
नित्य निवृति के बारे में --
वहां सुबह सवेरे जाते हैं जोहड़ जंगल
यहाँ घर में ही विश्राम कक्ष का आराम है !
लेकिन यदि पालतूपन न होता तो evolution of man न होता .
आपके दोनों शेर शानदार हैं :)
हटाएंपालतूपन ने हमको क्या से क्या बना दिया :)
परफेक्ट ब्लागर चिंतन.
जवाब देंहटाएंआभार
हटाएंक्या पता कौन किसे पालतू मानता है ...
जवाब देंहटाएंजरूरत एक दूसरे की है ..
आपको शुभकामनायें !
पालतूपन के इतने फायदों के बारे में पहली बार ही पता चला। :)
जवाब देंहटाएंतात्विक विवेचनः
जवाब देंहटाएंधन्यवाद !
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