अभी सुबह सुबह की ठण्ड में घर से बाहर के काम रास नहीं आते पर अपना परिवार अपनी जिम्मेदारी ,सरकारों पे अंगुली उठाने से तो निभने वाली नहीं ! सो गाड़ी उठाई और चल दिए काम पे ...वैसे हमारा पसंदीदा शगल ये कि जो भी लिखो सरकार के ऊपर लिखो ,सड़कों पे कचरा बिखरा , बाबू ने रिश्वत ली , नदी तट पर पालीथिन की भरमार , जगह जगह मानव उत्सर्जन के ढेर , दहेज के कारण नवविवाहिता का अग्नि स्नान , जमीन बटवारे को लेकर भाइयों में मारपीट , प्रेम को लेकर दो समुदायों में बलवा , बिजली के तारों पे लोगों ने हुक लगा कर बिजली चोरी की , राशन की चोरी , ड्राइविंग लाइसेंस से लेकर जाने अनजाने करोड़ों मुद्दे पर हिट लिस्ट में एक ही नाम , सरकार निठल्ली कुछ करती क्यों नहीं ? मतलब ये कि नागरिक के रूप में हमारा योगदान क्या हो ? कैसी सरकार चुने का कोई ख्याल नहीं , बस एक ही रट ये सरकार ...
दिन तमाम ग्राहकी की उम्मीद में दुकानें सजने लगी हैं दुकानदारों ने अंदर का खास माल बाहर सड़कों के मुहानों पे अटकाना शुरू कर दिया है ! अब मार्केट में राह और सकरी होती जायेगी क्योंकि दुकानों ने ग्राहक लपेटने के वास्ते अपनी जीभ बाहर कर ली है ! दिन अभी शुरू ही हुआ है सो नगर निगम की कल्याण योजना में शामिल स्वीपर्स शिद्दत से धूल झाड़ने में भिड़ गये हैं...सारी सड़क की धूल अब सड़क के ऊपर के आसमान में , मेरे हिस्से , नाक को रूमाल से ढ़कने के सिवा कोई विकल्प शेष नहीं ...कुछ दूरी पर चंद गायें सड़क के बीचो बीच पगुराती हुई बेफिक्र कि इंसानों को यहां से गुज़रना होगा और यह भी कि उनके बिना उनके मालिकान का जीवन कितना दुश्वार हो गया होगा...ये सरकार ...
यहां दुकान और मकान के भेद मिट चुके हैं...एन सामने नालियां बजबजाती हुई , रेत और गिट्टियां सड़क पर , ज़रूर अंदर कोई निर्माण का काम चल रहा होगा ! नालियों के ऊपर पक्की फर्श ढ़लाई और उसके ऊपर तक अपने घर / दूकान का एक्सटेंशन...निश्चय ही प्रवेश की सीढियां और रेम्प आगे चल कर इस सार्वजनिक सड़क को उपकृत करने वाली हैं ! सार्वजानिक नल की टोंटियां अब नल पर नहीं हैं ! चमचमाती कार में बैठे बड़े साहब अपने मोबाइल कैमरे से इस परिवेश और आसपास बिखरी हुई गंद-ओ- ग़ुरबत की तस्वीरें खींच रहे हैं ! उन्हें शौक है अपने परिवेश को निरखने और बरास्ता तस्वीर सामाजिक आर्थिक बदहाली-ओ-बदलाव पे आलेख चिपकाने का ! सुना है वे असल ज़िन्दगी में एयर ट्रेफिक कंट्रोलर हैं सो उन्हें समाजी जीवन के बदहाल ट्रेफिक की फ़िक्र का शौक पालने में सहूलियत हुई ! उनका ड्राइवर कार से उतर कर नाई की ओर लपकता है , साहब तुमसे मिलना चाहते हैं...लेकिन नाई को साहब के शौक आराई की फुर्सत नहीं ! उसे रोजी कमाना है बच्चे पालना है ! वो शौक नहीं पाल सकता लेकिन आदत उसे भी है ग्राहकों से निपटते हुए , नीचे गिर रहे बालों को बाहर की नाली की ओर धकेलने की , आहिस्ता आहिस्ता ...ये सरकार...
राज्य के सबसे बड़े बैंक घोटाले के मुख्य आरोपी इन दिनों जमानत पर हैं , दुकान के ठीक सामने मेरे करीब ही खड़े टीम अन्ना के शैदाई उनसे भावी आन्दोलन में शिरकत करने की गुज़ारिश कर रहे हैं और शिकवा भी कि भैय्या आप पिछले वाले में नहीं आये ! वे कनखियों से मुझे ताड़ते है कि कहीं मैं उनकी बातचीत का नोटिस तो नहीं ले रहा ! मैं ब्लागजगत की प्रविष्टियों में लघु टिप्पणियों की तर्ज़ पर मुस्कराता हूं...अति सुन्दर ! मुंह फेरने से पहले पूछता हूं , मुझसे कुछ कहा क्या ? मगर स्मित हास्य चेहरे पर चस्पा किये हुए...होठों पे बुदबुदाता हूं सालो...लगे रहो...नहीं आपसे कुछ नहीं कहा ! वे आश्वस्त हैं कि मेरा ध्यान उनपर नहीं है ! ये कहने में कोई हर्ज़ नहीं कि मेरा ध्यान , जैसा कि , उन पर है भी तो ? मैं उनका क्या उखाड़ लेने वाला हूं ! खैर...मुझे घर लौटना है , मैं जानता हूं कि हम सब एक ही आदत में जी रहे हैं जहां खुद के गिरेहबान में झांकने की सख्त मुमानियत है !
वाहद्व क्या सवेरा है.
जवाब देंहटाएं:):):)
जवाब देंहटाएंpranam
ननी पालखीवाला की पुस्तक "वी द पीपुल" के समर्पण पृष्ठ पर लिखा है उन्होंने कि यह पुसतक समर्पित है उन समस्त देश वासियों को जिन्होंने स्वयं को विश्व का वृहत्तम संविधान दिया, मगर उसे संभालने की योग्यता नहीं पाई, जिनके पास एक गौरवशाली अतीत है, किन्तु उसे जीने का ज्ञान नहीं पाया, जो झेलते हैं और सहे जाते हैं सबकुछ, बिना अपने अंदर छिपी शक्ति के बोध के!!
जवाब देंहटाएंशायद इससे अधिक कुछ कह भी नहीं सकता हूँ.. शाम को घर लौटकर आईने में अपनी शक्ल भी देखनी है और उससे नज़रें भी चुराना है, रोज यही सवाल पूछता है मुझसे, जो आपने पूछा है!!
Shashopanj me hun ki kya tippanee dee jay! Khamosh laut rahee hun.
जवाब देंहटाएं@ राहुल सिंह जी ,
जवाब देंहटाएंआपसे पूछता नहीं तो सशंकित बना रहता :)
@ संजय जी ,
धन्यवाद :)
@ सलिल जी ,
आप हमेशा पोस्ट को कुछ ना कुछ देकर ही जाते हैं !
@ क्षमा जी ,
आपका आना ही काफी है !
असल में इस समय सबसे अमीर है तो सरकार ,गरीब है तो सरकार.....हम जैसे नाकुछ लोग हर काम पर दो-चार गालियाँ तंत्र-सिस्टम को देकर अपनी हवा ज़रूर निकाल लेते हैं...और इससे सरकार-बहादुर भी खुश है.उसका क्या जाता है ? वह जानती है कि ऐसे लोग कुछ उखाड़ने से तो रहे,उनकी सांसें ही उखड़ लेंगी !
जवाब देंहटाएंहम अपनी ज़िम्मेदारी भी निभाएं और सरकार को गरियायें भी,क्योंकि यह 'असीमित' ऊर्जा आखिर कहाँ जायेगी ?
चौराहे पर खड़े हैं अकेले अकेले....
जवाब देंहटाएंयूँ तो पूरी पोस्ट लाज़वाब है मगर अंतिम पैरा बेहतरीन बन पड़ा है। यह पंक्ति तो हर शहर के फेस में चिपकाने लायक है...
जवाब देंहटाएंअब मार्केट में राह और सकरी होती जायेगी क्योंकि दुकानों ने ग्राहक लपेटने के वास्ते अपनी जीभ बाहर कर ली है !
हा हा हा ..ड्राइवर और उनका नवाबी शौक का अफसर! हुंह! :)
जवाब देंहटाएंआहिस्ता आहिस्ता ...ये सरकार...
जवाब देंहटाएंआनेवाली हर सरकार को देश का यही हाल करना है...जब तक हम सब मुहँ घुमा कर कहते रहेंगे....'ना कुछ देखा...ना कुछ सुना..ना कुछ जाना'
@ संतोष जी,
जवाब देंहटाएंवास्ते दूसरा पैरा...जिस दिन हम अपनी जिम्मेदारी निभाने लग जायेंगे उस दिन सरकार की क्या औकात कि... :)
@ देवेन्द्र जी ,
(१) चौराहे का अकेलापन बड़ा मारक होता है :)
(२) शुक्रियाSSSSSSSS :)
@ अरविन्द जी ,
यही तो :)
@ रश्मि जी ,
अगर नागरिक जिम्मेदार हो जायें तो सरकार अपने आप जिम्मेदार हो जायेगी वर्ना अंगुलियां दिखाने का चलन तो है ही देश का बड़ा गर्क करने के लिए !
पहले लघु टिप्पणी के बारें विचार कर रहा था जब तक अंतिम पैराग्राफ .....
जवाब देंहटाएंनहीं नहीं ..
अली भाई को पढ़ रहा हूँ !
गागर में सागर ..
कमाल की बारीक नज़र है हुज़ूर ...
खैर...मुझे घर लौटना है , मैं जानता हूं कि हम सब एक ही आदत में जी रहे हैं जहां खुद के गिरेहबान में झांकने की सख्त मुमानियत है !
सबसे सच्ची लाइन है हम देसियों के बारे में..
सब फन्ने खान...सब ईमानदार जब तक अपनी जेब पर बात न आ जाये !
जेब भरी होना जरूरी है... उसका जुगाड़ सबको पता है
मेरी देश की धरती सोना उगले ...
हार्दिक शुभकामनायें भाई जी !
ह्म्म्म...पहले एक पोस्ट और फ़िर उस पर आई टिप्पणियाँ ..देख रही हूँ मैं(...पढ़ तो लेती ही हूँ)..
जवाब देंहटाएं@ सतीश भाई ,
जवाब देंहटाएंधन्यवाद !
@ अर्चना जी ,
बहुत दिनों से आपसे भेंट नहीं हो पा रही है !
vah ali sahab .... badhai.
जवाब देंहटाएंसरकार और मौसम का क्या है... जब चाहा दन्न्न से इनपर बात कर ली :)
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हम सब एक ही आदत में जी रहे हैं जहां खुद के गिरेहबान में झांकने की सख्त मुमानियत है ! स्साली ये सरकार...
अली सैयद साहब,
बड़ी नफासत से चोट मारी है... लेकिन मारी सही जगह है...बहरहाल, बैंक-घोटालारोपी अब कुछ दिन में अनशन पर बैठेंगे व उसके बाद जेल भरों में भी शिरकत करेंगे {यह उड़ती-उड़ती खबर अभी अभी कान में पड़ी मेरे...:-) }
...
वोट देते समय हम सरकार नहीं, व्यक्ति के बारे में सोचते हैं , फलाना जाति , फलाना धर्म ...
जवाब देंहटाएंऔर देश की बदहाल स्थिति पर बात करते समय सरकारों के बारे में ....
विरोधाभास हम नागरिकों में ही है , हम समझते भी है , करते नहीं , इस हम में मैं खुद को भी शामिल करती हूँ !
@ नवीन मणि त्रिपाठी जी ,
जवाब देंहटाएंधन्यवाद !
@ काजल भाई ,
सुलभ ... :)
@ प्रवीण शाह जी ,
वास्ते स्सा...
जोड़ा तो मैंने भी आखिर में यही था पर नफासत के चक्कर में डिलीट कर दिया :)
@ वाणी जी ,
बहुत बहुत शुक्रिया !
मैं ब्लागजगत की प्रविष्टियों में लघु टिप्पणियों की तर्ज़ पर मुस्कराता हूं...अति सुन्दर !
जवाब देंहटाएंअति सुन्दर :)
@ अनूप जी ,
जवाब देंहटाएंदेखियेगा , कहीं मेरी मुस्कराहट और उसपर आपकी भावपूर्ण प्रतिक्रिया को चर्चा मंच वाले ना ले उडें :)