कल शाम तकरीबन सात बजे , बेटे का बुलावा , पापा...आपके स्टुडेंट्स आये हैं ! उन्हें बैठा दो अभी आता हूं , सोचा इंटरनेट बंद करने की जरुरत नहीं है...ये गया और वो आया ! वे दो लडकियां उम्र कोई २०-२२ साल के आस पास , उनमें से एक जिसे मैं पहचान सका , मोहल्ले के विद्युत कार्यालय से रिटायर्ड बड़े बाबू की बेटी थी पर दूसरी को पहचानना मुमकिन नहीं लगा ! उसे सवालिया निगाहों से देखता हूं ! सांवली , दुबली पतली , दरम्याने कद वाली उस लड़की को समझते देर नहीं लगती कि मैं उसका परिचय जानना चाहता हूं ! वो कहती है ...আমার মা আপনার ছাত্রী ছিলো ! ओह ... তোমার মায়ের নাম কী ? ... রীনা মন্ডল ! मैं हंसता हूं ...इससे पहले तुम्हें देखा नहीं कभी ! अच्छा कहो , कैसे आना हुआ ! सुनते ही , वो अपने हाथ आगे बढ़ाती है , जिनमें पिछले सालाना इम्तहानात की दो फोटोस्टेट कापियां थीं , ज़ाहिर है कि इन्हें उसने सूचना के अधिकार के तहत विश्वविद्यालय से हासिल किया होगा !
उसने कहा मैंने एम .ए. फाइनल का इम्तहान दिया था ! दूसरे और तीसरे पेपर में कम नंबर मिलने की वज़ह से पुनर्मूल्यांकन करवाया लेकिन इसके बाद तीसरे पेपर में मेरे नंबर और भी कम हो गये हैं ! कापियों को एक बार आप देख लीजिए ! अगर आप कहेंगे तो फिर से जांच की अपील करूंगी ! मैंने कहा , देखो ...मैडम के पास चली जाओ वहां मेरा नाम लेना वो तुम्हारी कापियों का वाजिब मूल्यांकन कर देंगी ! उसने कहा मां ने कहा है , जो भी कहेंगे बस आप ही कहेंगे ! उसकी ज़िद को देखते हुए मैंने कापियां देखना शुरू किया और ...पूछा , तुम्हें लगता है कि तुमने सारे सवालों के जबाब एकदम सही दिए थे ,उसने सहमति में सिर हिलाया ! मैंने फिर से पूछा कौन कौन सी किताबें पढीं थीं ...तुमने इम्तहान देने से पहले , उसने कहा ट्वेंटी क्वेश्चन सीरीज से तैय्यारी की ... अब सिर पीटने की बारी मेरी थी !
सवाल बेहद आसान थे पर लड़की उतनी ही संभ्रमित ! हिंदू विवाह को संस्कार साबित करने के लिए उसके पास कोई तर्क ही नहीं थे और ना ही कोई कंटेंट , बस एक दो पैरा फिजूल से शब्द जाल में लपेटे हुए ! उसे यह तक पता नहीं था कि जाति क्या होती है ? और यह भी कि यह खालिस हिन्दुस्तानी अवधारणा है ! कापी में जबाब दर्ज करते हुए उसने बड़ी ही मासूमियत से लिखा ... जाति भाषा के आधार पर बांटी जाती है ...उड़िया , तमिल , तेलगु , गुजराती वगैरह वगैरह और हद तो यह हुई जब उसने कहा कि वर्ग से हमारा मतलब है ...ब्राह्मण , क्षत्रिय ,वैश्य , शूद्र ! यहां तक कि उसे वर्ण और वर्ग में फ़र्क ही महसूस नहीं हुआ ! कापी में उसके लिखे को तूल देने का कोई कारण ही नहीं था सो मैंने उससे दो चार छोटे मोटे सवाल किये और कहा अब तुम ही कहो , क्या फिर से जांच की अपील करना सही होगा , उसने कहा नहीं मुझसे ही गलती हुई है !
वो चली गई पर मैं सोचता हूं कि उसमें खुद के अधपके ज्ञान पर अति आत्मविश्वास क्यों था ? अव्वल तो उसे यह फ़िक्र भी नहीं थी कि मास्टर्स डिग्री की तैयारी ट्वेंटी क्वेश्चन सीरीज से करने पर हासिल क्या होगा ? वो नौजवान लड़की शार्टकट से ज्यादा नंबर पाने की ख्वाहिश मंद थी सो पाये हुए नम्बरों का बीस फीसदी पुनर्मूल्यांकन के नाम पे गवां बैठी ...उस पर हौसला ये कि एक बार और जांच की अपील करने का ख्याल ! मास्टर्स डिग्री के इम्तहानात के लिहाज़ से उसने जो पढ़ा वो कतई अपर्याप्त था ...और जो लिखा वो भी गलत था ! इस उम्र में , सही और गलत समझने का विवेक विकसित हो जाये , उसमें ऐसी कोई ललक भी ना थी...वो एक बर्बाद शुद पीढ़ी के प्रतिनिधि सी , मुझे नाउम्मीद कर गई ! उसे समझना चाहिए था कि उसके पैरों पर अंततः उसे ही खड़े होना है ! शार्ट कट बैसाखी तो हो सकते हैं पर वे जीवन संघर्ष का माद्दा / हौसला पैदा नहीं कर सकते...बुद्धि को तराश नहीं सकते ... विवेक को जागृत भी नहीं कर सकते ! एक बोध , एक समझ , जिसकी ज़रूरत तमाम ज़िन्दगी पड़ती ही रहेगी ! उसे नसीम-ए-बहार होना चाहिए ...होना ही होगा ! वो महज़ एक नौउम्र लड़की नहीं ,आखिर को उसे नस्लों की विरासत का मुहाफिज़ भी होना है !
* তোমার মায়ের নাম কী ? = तुम्हारी मां का नाम क्या है !
* রীনা মন্ডল = रीना मन्डल !
माँ कैसी थीं...?
जवाब देंहटाएं@ देवेन्द्र जी ,
जवाब देंहटाएंइनसे थोड़ा बेहतर थीं ! उन्होंने अपने अकादमिक मूल्यांकन को कभी चैलेन्ज करने का दुस्साहस नहीं किया इस हिसाब समझदार भी !
अब ये मत कहियेगा कि गुरु जी कैसे थे :)
चोरी कहीं खुले न नसीम-ए बहार की,
जवाब देंहटाएंऐसी ही फ़स्ल बोई है,ऐसी तयार की !
शॉर्ट-कट का पूरा ढांचा खड़ा है,उस लड़की का ज़्यादा दोष नहीं है !
आमार माँ आपनार छतरी छिलो..
जवाब देंहटाएंतोमार मायेर नाम की?
रीना मंडल!!
लिखने की वज़ह सिर्फ इतनी की ज़माने बाद बांग्ला के ये लफ्ज़ (जो मेरे लिए बकौल राही मासूम महज़ देखने की चीज़ नहीं) मुझे मेरे अपने लगे!
रीना मंडल नाम सुनकर आप हंसते हैं... हंसने की वज़ह (सूचना के अधिकार नहीं, जिज्ञासा के अधिकार के तहत) सवाल पैदा करती है.. क्या आप पहचान पाए कि वो कौन थी?? या आपको पता था कि यथा पुत्री तथा माता और आपको हँसी आ गयी!!
जहाँ डिग्री हासिल करना ही पढ़े-लिखे होने की निशानी रह गयी हो वहाँ यह सब तो होना ही है...!
अभी सबको नतीजे चाहिये होते हैं, चाहे जैसे भी आयें।तकनीक और गैजेट्स के मामले में बेशक पीढ़ी दर पीढ़ी समझ बढ़ रही है, ज्ञान और साधन के बारे में ग्राफ़ नीचे और सिर्फ़ नीचे जा रहा है। इस परिवर्तन (नीचे ले जानेवाले)में हमारा भी सक्रिय योगदान है।
जवाब देंहटाएंमेरे साथ अंगरेजी साहित्य (MA) में पढ़ने वाले वे छात्र जो बीस प्रश्न से तैयारी करते थे और जिन्होंने कभी महान उपन्यासों के लघु संस्करण भी नहीं पढ़े, वे ही आज अंगरेजी साहित्य के व्याख्याता बने हुए है. गाइड देखकर पढ़ाते हैं.
जवाब देंहटाएंउसपर तुर्रा यह कि वे अंगरेजी साहित्य यह सोचकर पढ़ने आ गए थे कि इससे उनकी अंगरेजी अच्छी हो जायेगी. यह सुनकर मेरे गुरु श्री रमेश चन्द्र शाह जी ने उन्हें यह कहकर लताड़ा कि 'अंगरेजी साहित्य तो केवल उन्हें ही पढ़ना चाहिए जिनकी अंगरेजी पहले ही बहुत अच्छी हो'.
हमने तो ऐसे छात्र भी देखे हैं जो अंगरेजी निबंध की जगह अनसीन पैसेज के कंटेंट को ही तीन बार लिख देते थे. मजेदार बात यह है कि उनके नंबर मुझसे कुछ कम ही होते थे. तभी समझ गया था कि ज्यादातर कॉपी जांच्नेवाले केवल पन्ने गिनकर नंबर देते हैं.
यह सब भोपाल की बातें हैं.
गज़ब!
हटाएंहाय रे .......ई कौन सा विश्व-विद्यालय जहाँ ऐसे भी फेल हो जाते हैं ......इधर तो पन्ने भरने वाले भी पास हो जाने का शैक्षिक अधिकार रखते देखे गए हैं ..................:-)
जवाब देंहटाएंपन्ने कैसे भरे जाते हैं .....अब ई ना पूछियेगा ....प्लीज !!
Mai aaj hee apko likhne wali thee ki,bade dinon se aap ne kuchh likha nahee!Khair!Der se sahee lekin dilchasp post leke aaye!Maza aa gaya!
जवाब देंहटाएंअरे नहीं...गुरू जी को तो जानता ही हूँ। दिमाग तो तगड़ा है ही, याददाश्त भी तेज। नाम सुनकर ही पहचान गये!
जवाब देंहटाएंएम.ए. की तैयारी...और ट्वेंटी क्वेश्चन सीरीज से...फिर क्या उम्मीद रह जायेगी...
जवाब देंहटाएंमकसद डिग्री लेना भी होता है...या शादी तय होने तक टाइम-पास...:(
एक समय था, कुंजी छुपा कर पढ़ी जाती थी. आज ट्यूश्न स्कूलिंग से ज़रूरी हो गया है. उस दिन मुझे ट्यूश्न के लिए पड़ोसी से एक नया व आदरणीय शब्द सुनने को मिला -'हमारी बेटी doubts clear करने जा रही है' पहले ट्यूश्न लेने वाले बच्चे कमज़ोर माने जाते थे आज ट्यूश्न न लेने वाले ग़रीब/मूर्ख/रेस में पीछे छूट जाने वाले माने जाते हैं. मास्टर लोग भी कुजियों से पढ़ा रहे हैं. कुजी लेखक, पुस्तक लेखकों से कही ज़्यादा कमा रहे हैं. कई स्कूलों के बच्चों को तो मां-बाप पुस्तकें ही नहीं खरीदवाते, न ही मास्टर लोग पूछते हैं. कुजी लेखक पुस्तक लेखकों से ज़्यादा प्रसिद्ध हैं आज.
जवाब देंहटाएंशायद मैं ही ग़लत हूं कि आज भी वहीं चिपका बैठा हूं, अपनी सोच को लिए...
@ सलिल जी ,
जवाब देंहटाएंजिज्ञासा के अधिकार पे खुलासा ये कि मां को तो पहचान ही गया पर पुत्री का मूल्यांकन अब तक किया नहीं था उसे अगले कुछ मिनटों बाद होना था अतः यथा मां तथा पुत्री वाला मसला नहीं था , हंसा इसलिये कि अपनी उम्र एम.ए. पास कर चुकी कन्या के नाना जैसी कब हो गई पता ही नहीं चला :)
@ प्रवीण जी ,
विश्वविद्यालय तो सारे एक जैसे ही हैं ! हर जगह 'पृष्ठ गणना महात्म्य' ख्यात रहा है पर पिछले कुछ समय से सूचना के अधिकार को नारद मुनि समझ के गुरु जी लोग घबराए हुए हैं :)
@ क्षमा जी ,
याद रखने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया ! ब्लागिंग के अलावा ज़िन्दगी से भाग तो नहीं सकते हम लोग बस इसीलिये देरी हुई !
@ देवेन्द्र जी ,
भाई , दिमाग चाहे जैसा भी हो पर गुरु जी लोग हमेशा 'मुंह की खाते' हैं :)
@ रश्मि जी ,
शादी तक के टाइम पास वाली शैक्षणिक तैयारियों वाला 'मकसद' एक दिन ज़रूर बदलेगा !
@ काजल भाई ,
गज़ब , सच कहूं तो कमेन्ट आफ द डे !
उसी शाख (सोच) पे हमें भी चिपका हुआ मान लीजिए !
यूँ भी डिग्रियां ज्ञान की परिचायक नहीं हैं ! केबीसी में कई बार देखा और अनुभव किया !
जवाब देंहटाएंनमस्ते अली साब, कल शाम इस पोस्ट पर मैंने भी कमेन्ट किया था, वह शायद कहीं खो गया है या स्पैम में चला गया है. कृपया जांच लें.
जवाब देंहटाएं@ वाणी जी ,
जवाब देंहटाएंआपका यह मानना ठीक लगता है कि डिग्रियां सामान्य ज्ञान के कार्यक्रम जितना सामर्थ्य भी नहीं दे पा रही हैं !
@ निशांत जी ,
आज सुबह 'मो सम कौन' साहब की भी यही शिकायत थी ! पिछले दिनों मित्रों के ब्लॉग पर मेरी टिप्पणियाँ स्पैम हुई थीं तब से हर बार नेट पर आते ही स्पैम चेक कर लेता हूं !
अफ़सोस ! आप दोनों की टिप्पणियां मुझे नहीं मिल सकीं !
परीक्षा का ताला और सीरीज की कुंजी से उपाधि लो और खड़े हो जाओ शिक्षित बेरोजगारों के लाइन में, पिछले कई सालो से यही देखते आ रहा हूँ ... आपने बच्ची को विशद अध्ययन के लिए प्रेरित करने वाला जवाब दिया आशा है भविष्य में वो अध्ययन के प्रति गंभीर होगी.
जवाब देंहटाएंজ ভী হ উস ডেভি কা ব্লাগিং ভাভিশ্য় বহুত উজ্জ্ভাল হাই !
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एक बोध , एक समझ , जिसकी ज़रूरत तमाम ज़िन्दगी पड़ती ही रहेगी ! उसे नसीम-ए-बहार होना चाहिए ...होना ही होगा ! वो महज़ एक नौउम्र लड़की नहीं ,आखिर को उसे नस्लों की विरासत का मुहाफिज़ भी होना है !
अली सैयद साहब,
बात तो आपकी सही है पर उतना ही सही यह भी है कि उस लड़की जैसे या उससे भी बदतर कई हमारे शिक्षा के मंदिरों में ऊँची-ऊँची कुर्सियों पर काबिज हैं...
ओऊर फुतुरे इस भैरी-भैरी दार्क !!!
लिंक लगाने के लिये अग्रिम क्षमायाचना सहित...
...
@ संतोष त्रिवेदी साहब ,
जवाब देंहटाएंगज़ब का शेर गढ़ दिया आपने :)
@ मो सम कौन जी ?
हमारे योगदान के भार से ही ज्ञान की ग्राफ लाइन नीचे की ओर झुक गई है ! सहमत हूं !
@ निशांत जी ,
भोपाल की बातें बहुत दूर दूर तक व्याप्त हैं ! दिक्कत ये है कि अब यही बंदे गुणवत्ता का मूल्यांकन करने के लिए अधिकृत हैं ! मूल्यांकन जो आप और आपके सहपाठियों के बीच अन्तर नहीं देख सका !
दरअसल 'पहुंच' ने 'ज्ञान' की वाट लगा दी है ! यह नये किस्म के विश्वास का संकट है !
@ संजीव तिवारी जी ,
निशांत जी के लिए जो प्रतिक्रिया दी वो ही आपके लिए भी उचित लग रही है !
@ अरविन्द जी,
খুব ভালো কমেন্ট :)
@ प्रवीण शाह साहब ,
लिंक पर जाकर पता चला कि मैं तो वहां पहले से ही मौजूद हूं :)
मैं आपके बांगला ज्ञान से प्रभावित होकर गूगल -मदद से बांगला में टीप टाप कर फुरसत पा लिया था मगर फिर वह मुझे ही समझ में नहीं आयी ...
जवाब देंहटाएंमेरा आशय यह था कि मोहतरमा के लक्षण इस दुनिया में चाहे जैसे हों वे हिन्दी ब्लागिंग की दुनिया में निश्चित ही धमाल मचा सकती हैं! यहाँ उनका स्वागत है -कईयों को झेला ही जा रहा है उन्हें भी हंसी खुशी संभाल ही लेगें -ह्रदय हमारा विराट है !
ब्लॉग का नाम देवनागरी लिपि में करने का आभार !बारीक अक्षरों में इसका मानी (विचारों का मदरसा,आदि)भी लिख लें तो बेहतर होगा !
जवाब देंहटाएंऐसे उदाहरण और भी हो सकते हें, लेकिन इसे एक उदाहरण से अधिक कुछ मानने को मन नहीं कर रहा. (नए उम्र के ऐसे पढ़ाकू हो सकता है संयोगवश मुझे मिलते रहते हैं, जिनसे मिल कर में चकित होता रहता हूं, आश्वस्त रहता हूं.)
जवाब देंहटाएं@ अरविन्द जी ,
जवाब देंहटाएं:)
@ संतोष जी ,
प्रेरित करने के लिए शुक्रिया !
@ राहुल सिंह जी ,
अपवाद को अपवाद मिलना स्वाभाविक है :)
आश्वस्त होने से पहले परीक्षाओं के समय स्नातकोत्तर स्तर की ( वन डे सीरीज मार्का ) पुस्तिकाओं की बिक्री और प्राइवेट परीक्षार्थियों की संख्या पता कर लीजिए :)
हमारी शिक्षा व्यवस्था की सच्चाई! विकट सच्चाई।
जवाब देंहटाएंसन 1983 में बिहार के एक अध्यापक के मुंह से सुनी बात याद आती है-हमको इस बात की चिंता नहीं है कि यहां नकल होती है। हमें चिंता इस बात की है कि अगर ऐसे ही चलता रहा तो अगली पीढी को नकल कौन करायेगा। :)
oh God, Ali uncle!!!!
जवाब देंहटाएंreally hats off!!!
शुक्रिया !
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