शुक्रवार, 16 सितंबर 2011

वे सूरज को स्पेस नहीं देते !


यूं तो सुबह को जागे हुए अरसा हो गया ... पर घने स्याह बादल आहिस्ता आहिस्ता लपकते टपकते हुए माहौल को गहरी स्याह रंगत में जकड़े हुए , गोया उन्हें एक जिद सी  कि सूरज को स्पेस नहीं देंगे  !  अभी कल ही गरजकर दो इंसानी जान लील चुके हैं वे   !  मैं डरता हूं ...कहीं वे मेरे कम्प्यूटर को मेरी दिलजोई के वास्ते हौसलामंद होने की सजा ना दे डालें  !  बादलों की इस हरकत पर उस पार के  सूरज की प्रतिक्रिया क्या होगी ये जानना दुश्वार है लेकिन इस छोर पर मैं और मेरा कम्प्यूटर बादलों की दैहिक दबंगई का शिकार हैं  !  घर के अंदर और बाहर ...बेहद धूसर और कुम्हलाया सा माहौल मेरे ख्यालों  को बेढब और बेतरतीब होने के दायरे से बाहर आने ही नहीं देता !  मेरे ख्याल ,गीले पिचपिच गहरे दलदल में फंस गये हों जैसे ...बाहर निकलने की हर कोशिश लगभग उतना ही अंदर धकेलती हुई  ! 

उधर इराक ...अफगानिस्तान ...पाकिस्तान में ...आत्मघाती हमले हुए  !  इबादतगाहों को युद्ध के मैदानों... कत्ल खानों में तब्दील कर दिया गया इधर हमारे खुद के बाज़ार...इन्साफ के मंदिर और गली मोहल्लों में यही बादल गरजते  लपकते  टपकते और  फिर मासूम इंसानी जानों को लीलते हुए  ! धरती के हर हिस्से की सुबह के ऐन आगे , जबरिया अड़े हुए ...जाइए , हम आपको स्पेस नहीं देंगे की तर्ज़ पर  !  बादल बादल दुनिया , बादल बादल ज़िन्दगी और बादल बादल मौत की गड्डमड्ड में लाशें...खून...गीले पिचपिच गहरे दलदल में फंस गयी सुबह  !

गहरे धूसर गरजते बादल हम सब के ठीक बीचोबीच गहरी पैठ लिए  प्रेम तक को पैर पसारने का स्पेस नहीं देते  !  यौन आकर्षण... वैवाहिक जीवन के विरूद्ध और फिर पति पत्नी को भाई बहन हो जाने के फतवे पर अड़े हुए बादल ! हम सबके अपने अपने बादल अपने अपनों  की सांसों पर बंदिशें लगाते ...लगाम खींचते और दम घोंटते  हुए  ! रस्सी के फंदों , छोटे बड़े धारदार नाखूनों , आग बरसाते कैप्स्यूल्स की दम पर प्रेम और जीवन को खून खून करने पर अड़े हुए बेहद जिद्दी बादल  !  असहिष्णुता के गीले पिचपिच गहरे दलदल में फंस गयी ज़िन्दगी  !

मैं खुद भी इस माहौल से उबरने की फिराक में हूं  और सोचता हूं कि पहले पहल हम सभी किसी एक 'विचार' से दुश्मनी की हद तक असहमत होते हैं और फिर किसी एक 'देह' को इसकी सजा दे डालते हैं   !

35 टिप्‍पणियां:

  1. ये हठी उद्दण्डताएँ ऐसे नहीं मानने वालीं !
    इन्हें सबक सिखाने को इतिहास से उलट चलना पड़ेगा !
    मानव मन की ये संकीर्ण ग्रंथियां सदियों से गहरी जड़ें पकड़ चुकी हैं !
    घर के अन्दर विशाल होते ये वटवृक्ष के नीचे बैठे हम लोग, लगता है पौराणिक मानवीय अंत की और जा रहे हैं !
    हताश मन करे तो क्या करे ??
    सिर्फ शुभकामनाओं से कुछ नहीं होने वाला अली सर !
    रास्ता कहाँ है !

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  2. इस दमघोटूं माहौल में जनाब जिन्दा कैसे हैं -ज़रा राज तो बताइयेगा ....कहीं पहलू में कोई सूरज को तो दबाए नहीं बैठे हैं ?:)

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  3. खुदा का शुक्र है केवल दो ही जानें गयीं. अकाल की स्थिति सुनी थी, तब क्या होता. कुछ कुर्बानी तो देनी ही पड़ती है (अपनों को छोड़कर). बादलों से कहो, जम के बरसे. लुका छुपी न करें. तब तक फतवे पर अमल हो.

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  4. आओ मिलकर
    बादलों को निचोड़ दें
    सूरज को स्पेस दें
    रात हो भी
    तो चाँद हो पहलू में
    सहर हो
    तो लाज़वाब हो।

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  5. गद्यमय कविता के बीच छोटी-लंबी कौंध.

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  6. @ सतीश भाई ,
    यह अनुभूति हो जाना भी अपने आप में एक रास्ता है

    @ अरविन्द जी ,
    नहीं नहीं मिश्र जी ऐसी तो कोई बात नहीं
    सूरज दबा के बैठने की अपनी औकात नहीं :)

    @ प्रिय संजय जी ,
    बहुत आभार !

    @ आदरणीय सुब्रमनियन जी ,
    पानी वाले बादल होते तो कह भी देता कि जनाब बरसते रहिये पर ये बादल (वैचारिक असहिष्णुता) पूरी दुनिया पे खतरे की घंटी हैं सो चिंता कर रहा हूं !

    @ देवेन्द्र जी ,
    आपसे सहमति !

    @ राहुल सिंह जी ,
    आभार !

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  7. समझाना तो पड़ेगा ही, उसके लिये जितना हो रहा है वह नाकाफ़ी है।

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  8. कैसे भी बादल हों, सूरज को हमेशा के लिये ढँक नहीं सकते। हमें यकीन है, यकीनन आप भी इत्तेफ़ाक रखेंगे।

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  9. @ स्मार्ट इन्डियन जी ,
    सही !

    @ दीपक जी ,
    ?

    @ काजल जी ,
    वो सूरज ही सही , स्पेस तो उसे भी चाहिए !

    @ मो सम कौन जी ,
    यकीनन आपसे इत्तेफाक है ! पर दिक्कत भी यहीं है ...
    कौन जीता है तेरी जुल्फ के सर होने तक
    ख़ाक हो जायेंगे हम तुम को खबर होने तक

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  10. संजय मो सम कौन से सवाल-जवाब अच्छा लगा। क्या कहूँ, मैं तो इन दोनों ही पक्षों में विश्वास रखता हूँ, बल्कि मेरी समझ में प्रकृति तो ऐसे ही काम करती रही है। हाँ, हम मानवीय दखल से मामूली सा परिवर्तन ला सकते हैं। वह मामूली परिवर्तन भी उन लोगों के लिये महत्वपूर्ण है जिनका जीवन उससे बदल जाता है। एक पुरानी कहानी:
    एक आदमी सागर किनारे खडा होकर ज्वार के साथ बहकर आयी और रेत पर तडपती स्टार फ़िश को उठाकर वापस पानी में फेंक रहा था। किसी ने पूछा, "इससे तुम्हें क्या फ़र्क पडता है?"
    "मुझे नहीं, पर उस स्टारफ़िश को पडता है जो वापस जा पायी।"

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  11. तो गोया हमारे खाक होने पर कायनात भी खाक हो जायेगी? हम नहीं होंगे लेकिन जो होंगे उनके लिये तो स्पेस होगा, अपन B+ ब्लड ग्रुप वाले हैं जी।

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  12. @ स्मार्ट इन्डियन ,
    बेहद खूबसूरत मिसाल दी आपने !

    @ मो सम कौन जी ,
    कायनात का खात्मा ? नहीं जी बिलकुल भी नहीं ! आपकी और हमारी आशावादिता में फ़र्क सिर्फ स्टार्टिंग प्वाइंट का है ! 'कल' सच में बेहतर होगा पर 'आज' से हो तो और भी बेहतर है :)

    ब्लड ग्रुप तो अपना भी बी+ है जनाब :)

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  13. सच है,'स्पेस वार'इस दौर की विकट समस्या है।

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  14. "उम्मतें" का जवाब नही!
    सच अली जी! एक एक लफ्ज़ सही है.....
    मेरे ब्लॉग पर अर्ज़ आपकी पैरोडी का भी जवाब नहीं.....
    साथ बना रहे...
    -आमीन

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  15. वो सुबह कभी तो आयेगी, सत्यमेव जयते या फिर इस रात की सुबह नहीं..इतनी उम्र निकाल दी हमने भी इसी इंतज़ार में.. अभी तक सुबह नहीं आयी.. न ही अंधेरी गुफा के उस ओर कोई रोशनी की किरण दिखाई दी..
    उम्मीद लगाए तो हम भी बैठे हैं..कौन सी हमारे टेंट से कुछ खर्च होता है उम्मीद लगाने से!!
    ज्ञानियों का शास्त्रार्थ अच्छा लगा!!
    अली सा, मुआफी देर की (आप भी अब देर करने लगे हैं) मसरूफियात जाँ लेने पर तुली है!! और हम भी देखना है जोर कितना वाले अंदाज़ में हैं!!

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  16. सूरज के लिए न सही पर अपुन के लिए फुल स्पेस है.........:)

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  17. @ रोहित बिष्ट जी,
    आपका स्वागत है !

    @ लोरी अली साहिबा,
    सुम्मा आमीन !

    @ संवेदना के स्वर बंधुओ,
    आपकी शिकायत जायज़ है ! माफी के तलबगार हैं!
    अर्ज ये कि देरियां बेसब नहीं है सो दूरियों में ना गिनी जायें ! उन्सियत बनायें रखें !

    @ ललित भाई ,
    जी ज़रूर !
    आपसे एक बात कहना थी ! एग्रीगेटर ललित में टिप्पणी का विकल्प ढूँढने की गुस्ताखी कर रहा था पर...
    वो जो स्वागत का चलता हुआ सन्देश आपने लगा रखा है ! उसे भागते भागते पढ़ना पड़ता है अब इस उम्र में हम जैसों को कितना दौड़ाइयेगा :)

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  18. एग्रीगेटर ही भागते दौड़ते बनाया है, अब चलित पट्टिका की गति धीमी कर दी गयी है. देख कर बताएं.

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  19. यह पद्यात्मक चिंतन बहुत दुरुस्त है.अब वो भी दिन जल्द आने वाले हैं जब 'स्पेस' को ही स्पेस नहीं मिलेगा ! बहुत कुछ सोचने को मज़बूर कराता है यह माहौल !

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  20. सचमुच, देह को दण्‍ड देकर विचार को मारा भी नहीं जा सकता, पर यही आसान रास्‍ता है और दुनिया हमेशा आसान रास्‍ते को ही चुनती है।

    ________
    आप चलेंगे इस महाकुंभ में...

    ...मानव के लिए खतरा।

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  21. हर कोई अपना अपना सूरज आज साथ लिए चलता है और दूसरे को जगह नहीं देना चाहता ... माहोल तो बद से बद्तर होता जा रहा है ... अब आसमानी सूरज को अपना कद दिखाना पढ़ेगा ...

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  22. अली, इन्हें बादल मत कहिए.मकड़ी का जाला, कहने पर भी चाहें थोड़ी आपत्ति है,फिर भी चलेगा. बादल तो प्राणदायक होते हैं.
    घुघूतीबासूती

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  23. बिना स्पेस सूरज भी क्या कर लेगा!

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  24. पहले पहल हम सभी किसी एक 'विचार' से दुश्मनी की हद तक असहमत होते हैं और फिर किसी एक 'देह' को इसकी सजा दे डालते हैं!

    कितना भयानक सत्य...

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  25. पहले पहल हम सभी किसी एक 'विचार' से दुश्मनी की हद तक असहमत होते हैं और फिर किसी एक 'देह' को इसकी सजा दे डालते हैं !

    kya khub likha hai....

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  26. ये सुधारने की शुरुआत तो होनी चाहिए

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  27. बेहतरीन लिखा है !

    कृपया पधारें ।
    http://poetry-kavita.blogspot.com/2011/11/blog-post_06.html

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