बुधवार, 14 जुलाई 2010

आ कि तुझ बिन इस तरह ऐ दोस्त घबराता हूं मैं !

सुबह सुबह दिनेश राय द्विवेदी जी के हैंगोवर के टिकाऊपन के लिए चिंता व्यक्त कर ही रहा था कि डा. अरविन्द मिश्र जी अधरों से कपोल तक की जात्रा में शामिल हो लिये  !  पता नहीं उन्हें ये उम्मीद कैसे हुई कि दिवेदी जी को 'सारा कार्बोनेरो' के बारे में विस्तृत जानकारी होगी ? शायद ऐसे ही कारणों से मैं अपने आलेखों में किसी खूबसूरत शै  की फोटो छापने से डरता हूं कि कहीं भाई बंद डिटेल ना पूछने लग जायें ! आज भले ही हम तीनों की उम्र जगन्नाथ जात्रा  में शामिल होने की है पर लालसाओं   का क्या करें ,कमबख्त पलट पलट कर आती हैं स्मृतियों के खूबसूरत लम्हों के अक्स बनकर जेहन में ! वकील साहब नें भले ही कुछ दिन पहले आप बीती बताते हुए उधार की लाईट से काम चला लिया था पर इस मामले में... मैं और अरविन्द मिश्र तो आज भी अंधेरे में दुबके बैठे हैं ! उधर गिरिजेश राव जी संस्मरणाते हुए फोटो भले ही बेटन की चिपकायें पर पूरा फोकस गोरकी पे  ! मतलब ये कि हुस्न...इश्क और चुम्बन इंसानी जीवन के वैकल्पिक विषय तो हैं ही नहीं कि चाहा तो लिया और पास किया नहीं तो कोई बात नहीं ! 'चाहत' अपने नाम से भले ही वैकल्पिक लगे , पर है ये अनिवार्य विषय...उम्र कोई भी हो...पर शक्लें बदल बदल के चस्पा बनी रहती है ! शुरू में सैद्धांतिक...फिर व्यावहारिक और बाद में अनुजों के व्यवहार पर समालोचनात्मक सैद्धांतिक की तर्ज़ पर...कई बार तो अनुजगण, चिढवश इसे बुढौती की लालसा भी कह बैठते हैं जबकि उन्हें अच्छे से पता होता है कि आगे चलकर यही चैप्टर उन्हें भी पढ़ना होगा ! कहना ये है कि इंसान चाहे या ना चाहे चाहत से पिंड छुडाने का कोई चांस नहीं !

मैं भी अजीब हूं , सोच रहा था कि गोलकीपर रक्षा पंक्ति में गिना जाता है , उसका काम डिफेंसिव है , उसका स्वभाव भी डिफेंसिव ही होना चाहिए पर 'आईकर कैसीलस' नें मुझे और दुनिया को दिखा दिया कि खिलाडियों के दिल जवान हों...उनमें इश्क का जूनून हो...तो वे डिफेंसिव नहीं रह जाते और तब उन जैसों की टीम को विजेता बनने से कोई भी नहीं रोक सकता !  उधर फ्रांस में नकाब पर प्रतिबन्ध लगा , इधर एक आस जगी... अब कुछ और फोटोजेनिक इश्क नमूदार हो पाएंगे टीवी पर...शायद फ़्रांस की टीम अगले विश्वकप में बेहतर परफार्मेंस दे पाये ! हां ये जरुर है कि तब तक हमारे कितने ही अनुज लालसा श्रेणी के अध्येता बन चुके होंगे !एक बात जो मुझे हमेशा खटकती है वो ये कि हम भारतीय मर्द -ओ- औरत इश्क भी चोरों की तरह से करते हैं तो फिर जीत का जूनून...ज़ज्बा भी हीनभावना से बाहर कैसे निकले ?  अगर इश्क सहज हो तो प्रतिभायें निखरती हैं ! ओ कैसीलस...ओ सारा...डियर , खुदा का शुक्र है कि तुम , हम जैसे कुंठित प्रेमी नहीं हो वर्ना  तेजाब...दहेज...कैरोसिन...बलात्कार और जेल जैसे घटनाक्रम के इर्द गिर्द जीवन बिताते घूम रहे होते ! यक़ीनन तब तुम्हारी जगह वेब पेज में नहीं बल्कि  मुकदमों की नस्तियों में तय थी !  मुमकिन है तुम दोनों ने सात जन्मों के लिए अनुबंध ना भी किया हो पर तुम्हारीं प्रेम सहजता की उपलब्धियां बेहद सकारात्मक हैं !  तुम्हें पता है  ? कभी हमारे यहां भी शीरीं फरहाद हुये हैं...उन्होंने भी जन्म जन्मांतर के बजाये इसी जीवन में , हर लम्हां अटूट प्रेम किया और फिर...शताब्दियों से हमारी स्मृतियों में अमर हैं  !  वैसे ही तुम भी प्रेम पाकर सुरभित हुए हो क्योंकि तुम अपने  आज को सहज जी रहे हो ! 

शायद तुम्हें अंदाज़ नहीं कि हम भारतीयों में भी प्रेम की असीम संभावनायें  है पर यहां नैतिकता के शब्दजाल और जाति / धर्म / ऊंच नीच के तकाजे हैं  ! यहां प्रेम परदे में है , वो नकाब पहनता है , हम प्रेमियों को कच्चे घड़े और पत्थरों की मौत देते हैं !  परदे की ओट में अभिव्यक्त प्रेम भला सहज हुआ है कभी ?  प्रेम को लेकर हम असहज हैं इसलिए हमारी उपलब्धियां भी इस असहजता की वज़ह से ख्याति  के आकाश नहीं छू पातीं !  यहां स्त्री हैं...पुरुष हैं ...और ओट की खोट हैं  ! ...खैर अब रात का इंतज़ार है , बच्चे ज़रा सो जायें  !  ओह सारा तुम तो कैसीलस की प्रेमिका हो अभी  !  मैं तो अपनी बीबी तक को दिनदहाडे चूम नहीं सकता  !  देखों ना गिरिजेश जी भी बेटन को आगे आगे किये हुये  हैं और अपने द्विवेदी  जी फुटबाल को ! ...सोचता हूं अरविन्द जी के साथ मिलकर कुछ टुच्चापन करूं , एक छद्म नामधारी ब्लॉग बना कर...प्रेम पर और भी जोरदार धमाकेदार लिखा जाये  ?

22 टिप्‍पणियां:

  1. ..सोचता हूं अरविन्द जी के साथ मिलकर कुछ टुच्चापन करूं , एक छद्म नामधारी ब्लॉग बना कर...प्रेम पर और भी जोरदार धमाकेदार लिखा जाये ?
    vichaarneey post !

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  2. @ संजीव तिवारी ,
    तकनीकी जानकारी के अभाव में आपकी टिप्पणी मुझसे विलोपित हुई इसका खेद है !

    @ बिलासपुर टाइम्स,रमेशकेटीए जी ,समीर भाई ,बेनामी जी ,नमिरा,जय भाई,
    आपका शुक्रिया !

    @ ज़ाकिर भाई ,
    टुच्चेपन के लिए हौसला बढ़ाने के लिए क्या कहूं :)

    @ क्षमा जी ,
    उम्मीद है आख़िरी लाइन मज़ाक ही मानी होंगी :)

    @ भावना जी ,
    शुक्रिया !

    @ आदरणीय सुब्रमनियन जी ,
    आपका आभार !

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  3. प्रेम की सहजता और वर्तमानता को लेकर बढियां बात कही आपने | व्यक्तिवाचक संज्ञाओं पर कुछ नहीं कहूंगा | कभी कभी लगता है जिसे नफरत करना नहीं आता उसे प्रेम करना भी नहीं | नफरत में भी खोट इसलिए प्रेम में भी खोट | भारतीय सन्दर्भ में प्रेम बहुत कुछ ढो रहा है , इश्के-हकीकी , दैहिकता को पापबोध के साथ लेना , ख़ास स्थिति में ईश्वरत्व का पाठ , आदि - आदि ........... और हाँ खामखा का मेंटेन करने वाला बहनापा और भाईचारा भी | .... पर मजाल है कि
    अवचेतन के रंगमंच पर थोड़ा धुंधलका होने पर कुछ भी बचता हो , सब हो ही जाता है ! ........ फिर सुबह आदर्श का पाउडर चेहरे पर लफोद लेना जरूरी है ! इस आदर्श को धुत्त और उस यथार्थ को प्रणाम !

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  4. ढाई आखर प्रेम का पढ़े सो पंडित होय -चेतना सर्वथा और चिर नवीन होती है -देह के बारे में है कि कालो न जाता वयमेव जाता ,मेरी उम्र अभी २५ की जस्ट पूरी हुयी है ,आप से कम से कम २५ वर्ष छोटा तो हूँ ही -आप टुच्चा मंडली में शमिलियिआना चाहते हैं तो आईये न मना कौन कर रहा है -मिलिए इस ग्रुप के सदस्यों से गिरिजेश ,जाकिर ,जीशान ,मिथिलेश .हिमांशु(तनिक अज्ञात वास पर हैं ) ,और फलाने फलानी (कुछ इन दिनों अपुन से तुनक मिजाजी दिखा रही हैं) ...मुला तनी अपने हमउम्र दोस्तों से पूछ तो लूं ! उन्हें अगर कोई परहेज नहीं तो मुझे क्यों होने लगी -मैंने तो पहले से ही हुजूर को अली सा की पदवी दे डाली है ..,.

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  5. हम 3 दफा पढ़े तब समझे. कहां कहां जाना पड़ा ! भारी लोग हैं, कुछ कहेन की हिम्मते नइ परी. मुदा हमें तो कहीं कोई हरज नहीं दिखी.असल में 18 की उमर है और अभी गदहपचीसी भी बौत दूर है.
    साहब, आप माडरेसन लगाए हैं कि नहीं
    जो हो तो ठीक नइ तो न ठीक लगे तो मेटा दीजिएगा.

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  6. आप कुछ नहीं करने जा रहे हैं, कर ही नहीं पायेंगे। जो गरजते हैं वो बरसते नहीं। आप सिर्फ़ हम टुच्चों लुच्चों से ईर्ष्या कर सकते हैं।
    इतना भड़काने पर भी अगर आप न भड़के तो फ़िर ऊपर लिखा ही सच मानेंगे हम :)
    वैसे अली साहब, लिखा बहुत खूब है।

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  7. .
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    .
    एक बात जो मुझे हमेशा खटकती है वो ये कि हम भारतीय मर्द -ओ- औरत इश्क भी चोरों की तरह से करते हैं तो फिर जीत का जूनून...ज़ज्बा भी हीनभावना से बाहर कैसे निकले ? अगर इश्क सहज हो तो प्रतिभायें निखरती हैं ! ओ कैसीलस...ओ सारा...डियर , खुदा का शुक्र है कि तुम , हम जैसे कुंठित प्रेमी नहीं हो वर्ना तेजाब...दहेज...कैरोसिन...बलात्कार और जेल जैसे घटनाक्रम के इर्द गिर्द जीवन बिताते घूम रहे होते ! यक़ीनन तब तुम्हारी जगह वेब पेज में नहीं बल्कि मुकदमों की नस्तियों में तय थी ! मुमकिन है तुम दोनों ने सात जन्मों के लिए अनुबंध ना भी किया हो पर तुम्हारीं प्रेम सहजता की उपलब्धियां बेहद सकारात्मक हैं ! तुम्हें पता है ? कभी हमारे यहां भी शीरीं फरहाद हुये हैं...उन्होंने भी जन्म जन्मांतर के बजाये इसी जीवन में , हर लम्हां अटूट प्रेम किया और फिर...शताब्दियों से हमारी स्मृतियों में अमर हैं ! वैसे ही तुम भी प्रेम पाकर सुरभित हुए हो क्योंकि तुम अपने आज को सहज जी रहे हो !

    ओह अली साहब, क्या लिखा है ! शानदार !

    "सोचता हूं अरविन्द जी के साथ मिलकर कुछ टुच्चापन करूं , एक छद्म नामधारी ब्लॉग बना कर...प्रेम पर और भी जोरदार धमाकेदार लिखा जाये ?"

    काहे छद्म नाम से ? खुला लिखिये न...डर काहे का है... वर्जनाओं को तोड़ने का बहुत कारगर माध्यम है ब्लॉग... मैं बिना शर्त साथ हूँ आपके!

    आभार!


    ...

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  8. हमें तो ऎसी टुच्चागिरी सीखने के लिए भी अभी एक ओर जन्म प्रतीक्षा करनी होगी...ये जन्म तो गया यूँ ही फ्री फंड में :)

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  9. @ अमरेन्द्र जी ,
    व्यक्तिवाचक संज्ञाओं पर टीप नहीं करने की मुकम्मल आज़ादी है ! सोचा गिरिजेश जी नें एक बेटन से बहु पात्र हांके हैं हम तीनै धकिया लें :)
    शेष कमेन्ट से सहमति है !

    @ अरविन्द जी ,
    आप ज़रा ग्रुप वालों से सहमति तो ले लें :)

    @ लंठ जी ,
    जब प्रेम बाधा पै खखुआये रहे हैं तो माडरेशन लगा के विचार काहे बाधित करते :)

    @ गिरिजेश जी,
    क्या ये आप ही हैं ? प्रोफाइल नहीं खुलता ?

    @ मो सम कौन ? जी ,
    बुढौती में शोले इतनी आसानी से भडकते हैं ? :)
    शुक्रिया !

    @ ललित शर्मा जी ,
    आभार !

    @ प्रवीण शाह जी ,
    खुलेपन पर आपका स्वागत है ! वो टुच्चापन बुर्काधारियों को समर्पित है :)

    @ पंडित डी.के.शर्मा वत्स जी ,
    सोच लीजिए भगवान को क्या जबाब दीजियेगा ? जब वो पूछेंगे कि आपको देह दिये थे तो टुच्चापन काहे ना किये :)

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  10. बेनामी ब्लाग के बड़े फायदे नज़र आते हैं , जो दिल में आये बोलो , जिन दोस्तों को गालियाँ देने का दिल करता है उन्हें खूब दो ...खूब तालियाँ बजेंगी ! ....
    मगर छिपाऊंगा कैसे , एक से एक धुरंधर बैठे हैं ! ताड़ लेंगे ...फिर उसके बाद ...
    आप शुरुआत करें ......
    शुभकामनाएं !

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  11. हिन्दुस्तानी प्रेम पर अच्छा आलेख ..हमें तो यही समझ आया ...:):)

    @ अमरेन्द्र ...
    जो नफरत नहीं कर सकता , प्रेम भी नहीं कर सकता ...
    या जो प्रेम करता है , नफरत नहीं कर सकता ...कम से कम किसी मनुष्य से तो नहीं...!

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  12. @ सतीश सक्सेना जी ,
    आपको याद जरुर होगा वो गीत ..." ये जो चिलमन है दुश्मन है हमारी" चिलमन से दुश्मनी की आदत पुरानी है बस दोस्ती का ख्याल अभी आया , शुरुआत की हिम्मत नहीं पड़ रही ससुरी :)
    और जो ताडू दोस्त हैं ना वो तो पहले से ही चिल्मनियाये हुए हैं !...क्या है कि एक दो की चिल्मन में हम जबरिया घुस के देख लिये :)

    @ वाणी जी ,
    :)

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  13. @ शिवम मिश्रा जी,
    कल मैंने ब्लाग4वार्ता देखी तो थी ! कमाल है अपना ही लिंक कैसे नहीं देख पाया :)

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  14. @ वाणी जी ,
    मेरा आशय आप तक नहीं पहुँच सका , जरूर मेरे लिखने में कमी रह गयी है ..
    मेरा कहने का मतलब यही है कि जब तक हम नकारात्मक मूल्यों की पहचान और उनके प्रति तीव्र नफरत का भाव नहीं रख सकते , हम सकारात्मक के प्रति प्रेम का भाव भी नहीं रख सकते | अगर नफरत लिजलिजी तो प्रेम भी लिजलिजा ! प्रभावहीन सा , रूग्ण सा !
    @ या जो प्रेम करता है , नफरत नहीं कर सकता ...कम से कम किसी मनुष्य से तो नहीं...!
    जो आप कह रही हैं उसका आशय यह है , जिसे मैं त्रिलोचन के शब्दों में कहना चाहूँगा और इससे मेरी सहमति भी है ---
    '' मुझे जगत जीवन का प्रेमी
    बना रहा है प्यार तुम्हारा | ''
    पर इसका आशय यह नहीं कि खल-पात्रों , लम्पटों से भी प्रेम होने लगे !
    कुछ श्रेष्ठ कृतियों में देखिये श्रेष्ठ नायिकाएं श्रेष्ठ नायकों से जितना प्रेम करती हैं उतना ही खलनायकों से नफरत !

    मेरी बात किसी की किसी किस्म की प्रेम-संकल्पना से विलग बैठ रही हो तो क्षमा चाहूँगा ! पर मैं ऐसा ही सोचता हूँ और इसे रख भी दे रहा हूँ ! आभार !

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  15. अली भाई, आपकी पोस्ट आज "चर्चा मंच" पर टाँग दिए हैं, ताकि ये "टुच्चा कल्ब" तनिक ओर विस्तार पा सके. देख लीजिएगा :)

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