शनिवार, 10 जुलाई 2010

फ्यूहरर...बारबरा मोरी और विष ग्रंथियों के प्रश्न से जूझता हुआ मैं !

सच्चे गणतंत्र के रूप में देश के लिये सार्थक सोच रखने और नियमित लिखा पढ़ी करने , वाले मित्रों की कमी नहीं है , पर दिक्कत ये है कि वे लिखने...सोचने और प्रवचन की निज सीमाओं के फ्यूहरर होकर रह गये हैं ! उन्हें असहमतियां पूर्वाग्रह लगती हैं और वैकल्पिक विचार विषवमन...कमाल ये कि वे दुखी भी होते हैं तो केवल इसलिये कि उनका , कोई पढ़ा लिखा मित्र देश की चिंताओं में उनकी तरह से दुबला नहीं होता !  वे लिखते हैं तो,उनका अनुगमन कर रही विशाल मानव श्रंखलाओं की अपेक्षा के साथ...वे सोचते हैं तो भी इसी कल्पनालोक में...और उनके प्रवचन अपेक्षाकृत जागरूक भीड़ों को सम्मोहित करने की मुद्रा में !  एक विवशता ये कि वे मित्र हैं और उन्हें देश की समस्याओं का बोध  हो गया है ?  पर अपेक्षा ये कि हमें भी इस बोधि वृक्ष के नीचे शीश नवाना चाहिये ! दूसरी विवशता ये कि अपने ही अन्य महाबाहु / बाहुबली बंधु गन पाइंट पर गणतंत्र ले उड़े हैं और वे भी चाहते हैं कि हम शराफत से केवल उनके ही अनुयाई बने रहे !  कहने का आशय ये कि ज्ञान मत्स्य बनाम शक्ति उपासकों के फ्यूहररत्व के दरम्यान हमारी अपनी कोई औकात है भी कि नहीं ?


कल ही किसी मैग्जीन में पढ़ रहा था कि स्पेनिश मूल की मैक्सिकन अभिनेत्री बारबरा मोरी को भारतीय पुरुष अच्छे लगने लगे हैं और वे हिंदी फिल्म जगत को फतह करने की ख्वाहिशमंद हैं !  ज्ञात हुआ कि मात्र तीन वर्ष की अल्पायु में उनके अभिभावक,  एक दूजे से अलग हो लिये , फिर जिंदगी के कठिन दौर से गुजरते हुए वे खुद भी अपना ब्वाय फ्रेंड खो बैठीं तब उनकी उम्र थी कुल जमा चौदह साल !  अगले पांच साल तक सतर्क जीवन यापन करने के बाद स्पेनिश अभिनेता सर्जियो मेयर उनकी अगली भावनात्मक सह दैहिक फिसलन का कारण बने जिसकी वज़ह से अब उनका एक बारह वर्षीय पुत्र भी है , जिसके लिए वे सर्जियो से अलगाव के बाद भी संपर्क बनाये हुए हैं !  सोचता हूं कि उनके माता पिता शादी करके अलग हुए तो वे केवल तीन वर्ष की उम्र में ही अभिशप्त शैशव की शिकार हुईं !  इसके विपरीत उन्होंने खुद तो शादी नहीं की लेकिन अपने पुत्र के लिये , पुत्र के पिता को बर्दाश्त कर रही हैं !  आंकड़ों के हिसाब से वे तीस बसंत कब के पार कर चुकी हैं पर सौंदर्य के मानदंडों से इस यथार्थ को झुठलाया जा सकता है  !   तो क्या जीवन की विकट परिस्थितियों से गुजरने के बाद भी सहज व्यावहारिक जीवन आयु को स्थिर और व्यक्तित्व को सम्मोहक बनाए रख सकता है ?  अगर यही घटना हमारे किसी शादीशुदा स्त्री या पुरुष मित्र पर गुजरती तो उसका दैहिक / मानसिक संतुलन अब कैसा होता ?  यक़ीनन उनके ३६ के बजाये ६३ जैसा दिखने की संभावनायें अधिक हैं !  मेरे ख्याल से बारबरा मोरी का हुस्न और उसकी सकारात्मक सोच का जरुर कोई सम्बन्ध है !  एक ख्याल ये कि , अगर वे मेरे देश की रूढियों / नैतिकता / सामाजिकता की बंदिनी हुई होतीं तो ?


बारबरा मोरी के भारतीय पुरुषों के प्रति आकर्षित होने के ख्याल से मैं खुद भी रोमांचित हूं पर यथार्थ की जमीन पर पड़ने वाले उनके अगले कदम के परिणामों को लेकर आशंकित भी...क्या उन्हें यहां पर स्त्री पुरुषों के संबंधों के सैद्धांतिक और व्यावहारिक सत्य का लेश मात्र भी अनुमान है ?  या फिर वे केवल व्यावसायिक नुक्तये नज़र से ये सब प्रचारित कर रही हैं !  ना जाने क्यों मुझे ऐसा क्यों लगता है कि पहली संभावना के साथ दूसरी संभावना का विकल्प मुझ जैसे साधारण इंसानों को फ्यूहरर बनने से बचाता है !  अभी पिछले ही दिनों एक ज्ञान मत्स्य ने मुझे अपने बोधिवृक्ष की पनाह में आने का निमंत्रण दिया पर आदत से मजबूर मैं , वहां भी दूसरी संभावना का विकल्प दर्ज कराके उनकी  क्रोधाग्नि में झुलस रहा हूं !  उन्होंने कहा...इस बोधिवृक्ष के नीचे एक बिल भी है , जब जी चाहे आओ और विषवमन करो ?  उन्हें मैं उनके जैसा नज़र क्यों आया ये तो वे ही जाने ! किन्तु मैं सोच रहा हूं कि हमारी चिंतन ग्रंथियों में कुछ विष जमा हो जाये तो ?  इन फ्यूहरर्स से परे , मुझ जैसे साधारण इंसानों की विष ग्रंथियां भी पुष्ट हो जायें तो ?... तो निश्चय ही इस महादेश / इस अनोखे गणतंत्र की आखिरी उम्मीद भी डूब जायेगी !


( फ्यूहरर जर्मन भाषा का शब्द है जिसे हिटलर ने जर्मन नेता बतौर अपनाया था )



17 टिप्‍पणियां:

  1. Bahut gahrayi me jaake likha hai aapne..We live on reactions...sahi hai...all our actions are based on reactions,unless we stop to analyze.

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  2. कुंठाओं से मुक्त यौवन/सौन्दर्य निश्चित ही दीर्घजीवी होता है -सूत्र वाक्य !
    ई मत्स्य ज्ञान ऊ आक्टोपस ज्ञान से तो प्रेरित नहीं है ?
    मैं तो बस मत्स्य न्याय का पक्षधर हूँ...
    बोधिवृक्ष के नीचे अब दो बिले हैं एक में करकर और दुसरे में दमनक हैं -दोनों पंचतंत्र के मुताबिक़
    गहरे मित्र हैं और बोधी वृक्ष के नीचे की भीड़ देख रहे हैं जीने बुद्धत्व न मिलने पर पेड़ का कतना तय है ..
    बिल वाले तो खैर सुरक्षित हैं ही ....

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  3. @ आचार्य उदय जी ,रमेशकेटीए जी ,समीर भाई ,भावना जी , प्रतिक्रिया के लिए आभार !

    @ बेनामी जी , जैसा आपको उचित लगे :)

    @ क्षमा जी , टिप्पणियां करते वक़्त आप हमेशा अपनापे के साथ पेश आती हैं,बहुत बहुत शुक्रिया !

    @ अरविन्द जी ,लगता है कि करकर और दमनक विषयक ज्ञान लाभ हेतु बोधि वृक्ष के नीचे जाना ही पडेगा :)

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  4. अली साहब,
    बोधि वृक्ष के नीचे से ज्ञान प्राप्ति करके लौटेंगे तो शेयर जरूर कीजियेगा हमारे साथ, और दमनक नाम तो ठीक है लेकिन दूसरा शायद करटक है।
    आभार।

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  5. अगली पोस्ट 'सुन्दर कैसे रहें?' पर लिखें. आज कल मेरे चेहरे की पेशियाँ गुरुत्व के प्रभाव में आने लगी हैं"। मेरे जैसों के लिए उपयोगी लेख होगा।
    बोधिवृक्ष, विष, बिल, पंचतंत्र की छाइयाँ - आर्यश्रेष्ठ (हिटलर वाला नहीं, भारतीय) धम्मपद का अध्ययन करें, मन को शांति मिलेगी।
    बारबरा मोरी का एक चित्र लगा देते तो ठीक होता। अफवाहों (इनके समाचार भी अफवाह होते हैं।) के अनुसार क्या उन्हें हमउम्र विवाहित पुरुषों में कोई दिलचस्पी है?
    मैं भी बेनामी बन कर टिप्पणी कर रहा हूँ। आप अनुमान लगाइए मैं कौन हूँ?

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  6. @ मो सम कौन ?
    भाई ,
    मै आदमजाद हूं ,मुझको बहक जाने की आदत है !
    {आपका संकेत सही है वो करकट ही है :)

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  7. @ गिरिजेश भाई क्या मैं गलत हूं :)

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  8. बाबा गिरिजेश ये जो भारतीय पुरुषों का आकर्षण है वो भौतिक है. बारबरा मोरी का ये आकर्षण भारतीय मोरी यानि नालियों की तरफ है आप जैसे महापुरुषों की तरफ नहीं :-)

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  9. @ गिरिजेश जी
    राजीव ओझा जी आपको तपोवन भेज दिए हैं
    तो इसमें हमारा कौनों दोष नहीं है ना :)

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  10. ओझा जी मेरे शुभेच्छु हैं। जो करेंगे ठीक ही करेंगे। वैसे अभी तक मुझे रोशनी का दीदार नहीं करा पाए हैं लेकिन प्रयासरत हैं। कामना है कि उन्हें सफलता मिले। :)
    @ किन्तु मैं सोच रहा हूं कि हमारी चिंतन ग्रंथियों में कुछ विष जमा हो जाये तो ? इन फ्यूहरर्स से परे , मुझ जैसे साधारण इंसानों की विष ग्रंथियां भी पुष्ट हो जायें तो ?... तो निश्चय ही इस महादेश / इस अनोखे गणतंत्र की आखिरी उम्मीद भी डूब जायेगी !
    - सकारात्मक बात। लेकिन मुझे हमेशा यह लगता है कि हमारा सकार हिटलरों की विषग्रंथियों को पुष्ट कर रहा है। मतिभ्रम की स्थिति है आर्य! शंका समाधान करें।

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  11. @गिरिजेश जी
    ज्ञानी मत्स्य और शक्ति उपासकों का फ्यूहरर होना देश का दुर्भाग्य है ! ये दोनों पक्ष ,साधारण जन के लिए चिंतन के अन्य विकल्पों को नकारते हैं निषेध करते हैं ! गण देश के लिए दोनों ही तानाशाही के प्रतीक हैं फिर हम इन फ्यूहररों से इतर रहें / रहना चाहें ,इनके रंग ( मनोवृत्ति /विषग्रंथी ) में ना रंगें ,तो मतिभ्रम कहां है मित्र !

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  12. संदर्भ के चलते... समाज में शायद तीन तरह के ही लोग होते हैं शासक, शासित और वे जिन्हें वैचारिक स्तर पर लगता है वे शासित नहीं हैं. शासकों के अपने-अपने बोधिवृक्ष रहते हैं. जिस प्रकार तीसरी श्रेणी के लोगों को अपने विश्वास के कारण कोई समस्या नहीं होती उसी तरह मोरी समाजों में मोरी परिस्थितियां सामान्य बात हो रहती हैं.

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  13. हम तो पहले से ही जानते हैं बेनामी कौन है ..एक बार हडकाए तो मालूम हो गया :)

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  14. @ जय भाई ,काजल जी ,प्रतिक्रिया के लिए आभार
    @ अरविन्द जी फिर से शुक्रिया !

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  15. अरविन्द जी ने जिन बेनामी को हड़काया है, उनका नाम भी सार्वजनिक करें। :)

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  16. अफ़शोस कि मैं अब कुवांरा नहीं रहा. :)

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