शनिवार, 20 फ़रवरी 2010

प्रेम गली अति सांकरी जामें दो ना समायें : एक पूर्ण प्रेम की अपूर्ण कथा !


उन दिनों घर से कालेज के लिये ग्यारह नंबर की बस पर करीब करीब 3 किलोमीटर का सफ़र...पहुंचने में एक  घंटा लगता...जल्दी भी किसे होती ! भला प्रोफ़ेसर साहब का लड़कियों को देख कर पढ़ाना किसे हज़म होता, लिहाज़ा शरारतन  देर से पहुंचने का एक फायदा तो होता ही था कि वे डांटने के बहाने मुझसे काफी देर मुखातिब रहते और मैं पीरियड के बाद इस बात पर डींगे हांकता कि मेरी वज़ह से कई मिनटों तक सहपाठिनें नज़र-ए- बद से बची रहीं ! मित्रगण ठठाकर हंसते ! इसे संयोग ही माना जायेगा कि उसका घर मेरे कालेज की जानिब और मेरा घर उसके स्कूल की सिम्त हुआ करता...सुबह वो स्कूल जाती और मैं कालेज फिर  शाम को वापसी  इसके उलट हुआ करती !

कोई वज़ह भी नहीं थी एक दूसरे को जानने की ! मेरी ग्यारह नम्बरी बस के मुकाबिल उसके पास साइकिल थी सो कुछ सेकंड्स से ज्यादा  कभी भी नहीं लगते उसको, मेरे सामने से गुज़र जाने में ! ...उस दिन उसे कुछ जल्दी थी घर जाने की तो अपनी साईकिल रेलवे क्रासिंग के पैदल यात्री वाले हिस्से में घुसा दी और मैं उसको सामने देख हड़बड़ा सा गया फिर बिना मुड़े...पीछे हटकर उसे रास्ता देते हुए भी मुझे कुछ सूझ नहीं रहा था...! इस लम्हें ने गोया जिन्दगी बदल दी हो मेरा घर...उसका घर...मेरा कालेज...उसका स्कूल, सब के सब एक सिम्त हो गये ! अब मेरी प्राथमिकता में प्रोफ़ेसर साहब कहां थे ? कभी रास्ते में मिलते...कहते बेटा अब तो तुम लेट भी नहीं आते !

मैं जानता था कि वे उदास हैं, उन्हें मुझे डांटने की आदत पड़ गई थी, एक उम्मीद कि वे मुझे सुधार पायेंगे...ख़त्म हो चली थी ! हम रोज मिलते...जब भी मिलते...कोई दूसरा दिखता भी कहां था...गुड बाय के बाद का समय कितनी मुश्किल से गुज़रा बयान करते करते फिर से गुड बाय कहने का वक़्त आ जाता ! लेकिन घडियां कमबख्त ठहरती भी कहां हैं अलबत्ता धड़कने ही ठहर जाया करतीं...फिर एक दिन...एक और दिन...पता ही नहीं चला वो क्यों नहीं आई ...फिर कभी भी ! हम दो थे... दो ही बने रहे ! लोग कहते प्रेमगली अति सांकरी जामें दो ना समायें तब मुझे इसका मतलब भी कहां पता था...किसी ने समझाया भी नहीं कि दो और एक होने का भेद क्या है...

8 टिप्‍पणियां:

  1. अरे इतनी छोटी प्रेम कथा -ये प्रेम कथाएं इतनी अल्पावधि क्यों होती हैं ?
    और प्रोफ़ेसर से शिष्य की कैसी रकाबत -गुरु दक्षिणा भी कोई चीज है -

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  2. तकाजा ये की सहपाठिनों को अपने सिवा ना कोई देखे
    गर कोई देख भी le तो फिर अपना ई रकीब ही देखे

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  3. गुदगुदाती..याद दिलाती ..बहुत कुछ कहती है
    ऐसी कहानी यदा-कदा पढ़ने को मिलती है.

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  4. वाह और नाइस !
    घुघूती बासूती

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  5. .....होली की लख-लख बधाईंया व शुभकामनायें!!!!!

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