मंगलवार, 16 फ़रवरी 2010

सुनो पार्थ ये बाज़ार है...


सुबह बच्चों के स्कूल जाते हुए गौर नहीं किया पर वापसी में चंद लोग टिकटी / मृत्यु शैया बांधते दिखाई दिये ! मुख्य सड़क पर होटल के ठीक बगल की छोटी सी दुकान और उसी के अन्दर स्थित मकान में किसी बुजुर्ग की मृत्यु की खबर है ! कोई शोर-ओ-गुल नहीं रोने पीटने / सियापे के कोई स्वर नहीं ! मैं ठहर गया हूँ ! होटल अभी बंद है उसके कर्ताधर्ता हाथ बांधे हुए पड़ोसी की अंतिम यात्रा के इंतज़ार में है ! वे मौन हैं ! मैं भी मौन हूँ ! इशारों से पूछा क्या हुआ ? उन्होंने इशारों में ही पड़ोसी की इहलोक लीला समापन विषयक सूचना दी ! अंतिम यात्रा में देरी के संकेत हैं ! मुझे समझ में नहीं आता किसे सांत्वना दूं ? यहां मृतक के सम्बन्धी अंत्येष्टि से पूर्व की तैयारियों में व्यस्त तो हैं पर शोकाकुल नहीं दिखते  !  घर वापस भी जाना है, देर तक नहीं लौटने से परिजन चिंतित होंगें इसलिए गाड़ी में धंस जाता हूँ ! वहीं  पास में खड़े होटल के नियमित ग्राहकों के चेहरों पर चिंता की लकीरें हैं ! मैं आगे बढ़ जाता हूँ ! ये होटल आज बंद है ! मैं जानता हूँ कि इसमें सुबह / दोपहर / शाम नियमित ग्राहकों का जमावड़ा होता है पर आज केवल एक ईंट की दीवार के फासले पर हुई मृत्यु नें होटल का शटर डाउन कर दिया है ! होटल के ग्राहकों में बड़ी संख्या में विद्यार्थी और नौकरी पेशा लोग शामिल हैं लेकिन उन्हें आज कहीं और व्यवस्था देखना होगी...आह मृत्यु ...आस पास कोई दूसरा होटल भी नहीं है , उन्हें कुछ दूर जाना होगा ! इधर मैं घर वापस तो आ गया हूँ पर होटल के बाजू में हुई मृत्यु का ख्याल मेरा पीछा नहीं छोड़ रहा ! स्वल्पाहार का मूड नहीं ...सो पत्नि को मना कर दिया है पर चाय वो तो व्यसन है उसे किसी दूसरे की मृत्यु से क्या लेना देना !

नेट पर बैठता हूँ पर टिप्पणियां सध नहीं रहीं...उधर मृत्यु हुई है , ग्राहक चिंतित खड़े हैं , का ख्याल टिप्पणियों पर भारी है ! जैसे तैसे अपनी  उपस्थिति दर्ज कराता तो हूँ लेकिन भय है कि  प्रतिक्रिया चुगली ना कर दे ! खैर...जो भी होगा देखा जायेगा की तर्ज पर मित्रों के ब्लाग्स पर दस्तखत तो मार ही दिये हैं ! अब तक दिन काफी चढ़ चुका है लिहाज़ा नहा धोकर चल देता हूँ आफिस की ओर  हालांकि भोजन का मूड अब भी नहीं है ! सोचता हूँ कि पड़ोस की मृत्यु... होटल के चिंतित ग्राहक...और अपनी निष्प्राण हो चुकी भूख के साथ चाय की चुस्कियों और ब्लागिंग...काम्बिनेशन बड़ा अजीब है !

दोपहर बाद फिर से उसी सड़क पर निकल पड़ा...देखता हूँ  अब वहां  कुछ चादरों की ओट में  मृतक का घर / दुकान, सामने चंद कुर्सियां प्लास्टिक की...पड़ी हुई...लेकिन होटल वापस अपने रूटीन पर आ चुका है ! सड़क पर गैस चूल्हे से उठती हुई आवाज और समोसे के लिए चिल्लाते ग्राहक, गल्ले पर निश्चिन्त भाव से खड़ा होटल वाला ...मुझसे कहता है कैसा करेंगे सर...ग्राहकों की व्यवस्था तो करना ही पड़ेगी ना...आप कुछ लेंगे  ?  मैं मना करता हूँ पर वह चिल्लाता है ! अरे लड़के... देख सर के लिए कड़क चाय बना...अबे पत्ती बदल देना...थोड़ी अदरख डाल  !  बैठिये ना सर !  मेरा व्यसन चाय...पर मेरे मुंह में कड़वाहट सी घुल गई है और मैं  निस्तब्ध खड़ा हूँ...यहां कोई व्यास...कोई कृष्ण...कोई अर्जुन नहीं...धर्म अधर्म के लिए किसी युद्ध की कोई सम्भावना नहीं ...कोई उपदेश भी नहीं...सुनो अर्जुन...ये मैं ही जीता और मरता हूँ...नहीं...बिलकुल भी नहीं ! मैं बुदबुदाता हूँ ...अरे यार मेरा चाय पीने का मूड नहीं है...और धप्प से कुर्सी पर बैठ जाता हूँ, पर अन्दर ध्वनियां तेजतर होती हुई ...सुनो पार्थ ये बाज़ार है !

2 टिप्‍पणियां:

  1. अली साहब आप मनुष्य की कोई पुराणी प्रजाति हैं क्या ?
    अरे मैंने तो इसी को खुद अपने मरण का पूर्व शोक गीत मानकर सहेज लिया है -बीच बीच में पढता रहूँगा !
    उठिए बेगम साहिबा के हाथ के बने व्यंजनों का पुरलुत्फ जायका लीजिये कहाँ की लेकर पद गए आप भी
    यूं आउट डेटेड मैंन ......

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  2. बाज़ार सब कुछ लील जाता है ..भावनायें संवेदनायें । और अब तो मौत को भी बाज़ार बना दिया गया है । गनीमत हमारे आपके जैसे कुछ लोग है जिनकी संवेदनाये जीवित है।

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