बुधवार, 10 फ़रवरी 2010

नित खैर मंगां सोणियां मैं तेरी दुआ ना कोई होर मंगदी !

मुझे पता नहीं पंजाबियों से मेरे क्या रिश्ते हैं, पंजाबी जुबान कभी पढ़ी नहीं...फिर ये जुबान और इसका सूफियाना संगीत क्यों कर मेरे सिर  चढ़ कर बोलता है ? रब जाने ? इस जनम में कभी पंजाब गया नहीं, जरुर पिछले जनम का लेन देन बाकी रहा होगा ! यूं  तो मुझे संस्कृत ऋचायें और उनका गायन भी बहुत भाता है पर बाबा फरीद, बुल्ले शाह...गोया  रूहानियत सी तारी कर जाते हैं ! पंजाबी लोक संगीत और कथायें आह...कैसे कहूं कितनी अपनी सी लगती हैं ! पता नहीं क्यों आज  सुबह से कुछ सूफियाना  सुनने का  दिल कर रहा है  ऐन इसी वक्त दिनेश राय द्विवेदी जी ने राठौर बनाम उत्सव के बहाने मुझे छेड़ दिया है और जब मैंने कल्पना करना चाही कि आस्ट्रेलियाई  नस्लभेदी कैसे दिखते होंगे तो यकीन जानिये ठाकरों के चेहरे कौंध गए! बेचैन था सो नेट पर पंजाबी लोक और सूफियाना संगीत  की खोज कर डाली ! मुझे ये तो पता नहीं की सूफी संत रब के साथ आशिक-ओ-माशूक की तर्ज पर बातें क्यों किया करते हैं और क्या ये तरीका सही भी है ? कौन जाने रब है भी कि नहीं ? पर मुहब्बत...वो तो है ही ! डरता हूं कि मैं मुहब्बत की बात करूं और साइंस ब्लागर्स असोसिएशन मेरे ज़ज्बात...मेरे अहसासात को गैर साइंसदाना मान कर डस्टबिन के हवाले कर दे पर आज अन्दर कुछ है जिसे बाहर आना जरुरी है, बेहद जरुरी ! भले ही इसकी कीमत  कुछ  भी हो  !  पता नहीं मैं क्या बकवास कर रहा हूँ...पुनर्जन्म...रब...आशिक-ओ- माशूक ! कितना सही हो ग़र मैं  तर्कपूर्ण ढंग से सोचूँ और इन सब ख्यालातों को झटक कर फेंक दूं ...मगर नहीं...इन दिनों मेरी दुनिया...मेरा मुल्क मुसीबत में है !  परवाह नहीं कि रब होने का अहसास निहायत ही अतार्किक और गैर साइंसदाना है ! यू ट्यूब पर राहत फ़तेह अली खान और हंसराज हंस...इधर  अपने डेस्क टाप के की बोर्ड  पर मैं...झूम रहे हैं मस्त...एक नशा सा तारी है ! मेरा मुल्क...ओ रब...मेरा मुल्क...मेरी मुहब्बत ! मुझसे सुर नहीं सधते  पर उनके सुरों के साथ मेरे ज़ज्बात सध गये हैं ! मैं गा रहा हूँ "होर की मंगणा  मैं रब कौलों ..इक खैर मंगां तेरे दम दी...नित खैर मंगां सोणियां मैं तेरी दुआ ना कोई होर मंगदी ! अब मेरा रोम रोम पुलकित है मेरे मुल्क...मेरे महबूब ...नित खैर मंगां ...! 

7 टिप्‍पणियां:

  1. आपका ब्लॉग सदा पढ़ती हूँ और आपके लेखों को पसन्द भी करती हूँ और प्रायः आपके विचारों से सहमत भी होती हूँ किन्तु आज आपका लेख मुझे भी एख आत्मीयता में जोड़ता हुआ लग रहा है। शायद सूफी गीत सुनते हुए लिखने के कारण?
    घुघूती बासूती

    जवाब देंहटाएं
  2. जिस मिट्टी में ही इतनी प्रेम-गाथाएं हों वहां का खुदा आशिक-माशूक के अलावा हो भी क्या सकता है... पंजाब आशिकों की ज़मीन है...दुनिया से बेख़बर आशिकों की ज़मीन

    जवाब देंहटाएं
  3. जब मैंने कल्पना करना चाही कि आस्ट्रेलियाई नस्लभेदी कैसे दिखते होंगे तो यकीन जानिये ठाकरों के चेहरे कौंध गए !
    ...बेहतरीन कटाक्ष...वाह!

    जवाब देंहटाएं
  4. मामला सचमुच गंभीर लागे हैं -साईंस ब्लाघर्स असोसिएशन को करीब से आकार तन मन का मुआईना करना पड़ेगा .
    कुछ रूहानी मामला है मगर फ़िक्र नहीं मेरे पास उसके भी एक्सपर्ट हैं -जाँच जरूरी है नहीं तो पता चला की एक बन्दा राम से भी गया और रहीम से भीहा हा

    जवाब देंहटाएं
  5. बसद सामाने रुसवाई सरे बाज़ार मी रक़सम !!! :)

    जवाब देंहटाएं