बुधवार, 26 अगस्त 2009

ब्राह्मण...सर्वहारा......दूसरा ?

चाचा....आपकी पहचान तो बहुत है , उन लोगों से बोल दो ना , मैं कुछ भी कर लूँगा ! .... कुछ लगेगा तो , कर्ज लेकर भी दे देंगे , पिता जी ने कहा है ! ...तीनो पोस्ट के लिए आवेदन कर दिया है , अब उनकी मर्जी , चाहे भृत्य ...चाहे चपरासी ...चाहे ...सफाई कर्मी बना लें ! ....चाचा प्लीज बोल दोगे ना ? आपको तो मालूम है ? मैंने एम. ए. किया है , मगर उससे घर थोड़े ही चलेगा और पिता जी....? उनकी पूजा पाठ से मिलता ही कितना है ? जीना दूभर हो गया है ...आपसे क्या छुपा है !.....पहले सुनता रहा फ़िर भारी मन से उसे विदा किया , कहा... तेरे पिता जी से बात करूंगा फ़िर देखता हूँ कि क्या हो सकता है ....लेकिन अब मैं सोच में हूँ ....वो निर्धन है ....सर्वहारा है .....मूल अधिकारों से वंचित जनसँख्या का हिस्सा है ? ....एक बीपीएल मतदाता है ?... लाखों बेरोजगार युवाओं में से एक ? या फ़िर आदरणीय प्रभाष जोशी द्वारा उद्धृत ,"स्किलफुल/ बौद्धिक / आर्थिक / राजनैतिक वर्चस्व का प्रतीक " ...एक ब्राह्मण ? केवल एक जातीय पहचान ? एक श्रेष्ठि वर्ग ...का सच्चा प्रतिनिधि ?
मुझे लगता है कि क्रिकेट का 'दूसरा' भले ही सक़लैन मुश्ताक ने विकसित किया हो लेकिन विचारधारा का 'दूसरा ' जोशी जी से बेहतर कौन डाल सकता है ?

5 टिप्‍पणियां:

  1. समस्याएँ जाति देखकर आती नहीं....रिवर्स डिस्क्रिमिनेशन की समस्या को उजागर करता हुआ सार्थक लेख...

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  2. इसे पढ़ने के बाद, मेरा कल का (28.8.2009)कार्टून भी देखना...बनाया तो पहले था पर चांस की बात है कि कल पोस्ट कर रहा हूं

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  3. अनुराग जी ,
    जोशी जी के किसी आलेख पर तात्कालिक प्रतिक्रिया स्वरुप यह संस्मरण लिखा था !

    इसपर आपकी प्रतिक्रिया [ :( ] का सबब ?

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