रविवार, 9 अगस्त 2009

बेचारी गाय... आक्सीटोन ....धर्म ...और माल बनाओ ...?

तब बोर्ड की परीक्षायें चल रही थीं और मैं संस्कृत के पेपर की तैय्यारी बतौर जोर जोर से रट रहा था ..निबंध ....अस्माकम धेनुः ...यानि हमारी गाय ! मित्र और नातेदार पास से गुजरते और कुछ इस अंदाज से मुस्कराते ..अरे बेवकूफ ... और ले संस्कृत ! सच कहूं तो मुझे भी पता नहीं था कि मैंने संस्कृत को अपनी स्टडीज का हिस्सा क्यों बनाया जबकि उसका मेरे पारिवारिक -सामाजिक बैकग्राउन्ड से कोई लेना देना नहीं था और ना ही इस मामले में , मेरे सनातन धर्मी मित्रों और मुंहबोले रिश्तेदारों का चंद्रमा उच्च का था लिहाजा संस्कृत को एक विषय के रूप में चुनने और पढने की कोई सीधी सादी और ठोस वजह नजर नहीं आती है ! हो सकता है बचपन में उर्दू और अरबी भाषाओँ के अध्ययन नें , भाषाओँ के प्रति कोई मोह जगा दिया हो और मैंने संस्कृत का अध्ययन करना चाहा हो ! वैसे कुछ भी पक्के तौर पर कहना मुश्किल है लेकिन ये तो तय है कि उन दिनों धर्म , दोस्तियों / संबंधों को निबाहने / भाषाओँ को सीखने से लेकर दिन प्रतिदिन की जीवन शैली में निषेध आज्ञायें जारी करने की रूचि या शायद हैसियत नहीं रखता था !
बहुत मुमकिन है कि आज के हालात में धर्म और उसके नाम से फैलाए जा रहे वैमनस्य की तुलना में मेरे किशोरवय निष्कर्ष / अनुमान बेहद कच्चे हों ?.....हो सकता है मेरा बचपन /मेरे दोस्त /मेरे सम्बन्ध ....केवल ....अपवाद हों ..या.. मेरी कल्पना की उपज हों और वास्तव में धर्म तब भी आज जैसा वहशियाना हरकतों और दरिंदगी को प्रेरित करने वाला रहा हो ? कौन जाने सच क्या है .....मैंने जो बचपन जिया वो ..या अभी जो महसूस होता है वो .....भला कोई ईश्वर /कोई धर्म , इंसानों को घृणाजीवी हिंसक और पशुवत कैसे बना सकता है ?
लगता है ...विषयांतर होने लगा है जबकि मैं गाय और उसके जीवन दाई दूध की शुद्धता और मुनाफे के लिए उसमें होने वाली मिलावट की चर्चा के लिए उस निबंध को याद कर था , जोकि मैंने बोर्ड परीक्षा की वैतरणी पार करने के लिए याद किया था !... कमाल की बात ये है कि मेरे मित्र गण मुक्ति के लिए /वैतरणी पार करने के लिए गाय का सहारा लेना चाहते हैं और मैं पहले से ही ले चुका हूँ ...जबकि कुछ लोग इस परोपकारी जीव से मिलने वाले जीवन रस को अपनी आजीविका का आधार बनाये हुए हैं और आजीविका को सम्पन्नता में परिवर्तित करने के चक्कर में बेचारी गाय को आक्सीटोन की डोज पर डोज दिए जा रहे हैं ?... गाय की ऐसी की तैसी ...लोगों की सेहत की ऐसी की तैसी ...जिसकी जान जाना है जाए !... माल अपनी पाकेट में बराबर आता रहे ! लगता है जैसे गाय इन धनकुबेरों /ग्वालों , की लालसा का शिकार होकर , लोगों को जीते जी नरक पहुंचाने का माध्यम बन गई हो ? अब कौन जाने गाय की तरह धर्म भी इन व्यवसाय प्रिय लोगों के 'आक्सीटोन इन्जेकटेड अभियान' चलाओ और माल बनाओ का शिकार हो गया हो ...?
वैसे मुझे मेरी कल्पना और किशोरवय के स्वप्न में ही जीना पसंद है फ़िर चाहे ग्वाले ...दूध ....गाय ....और धर्म के बिना भी !

4 टिप्‍पणियां:

  1. ab dharam laram wale hisse pe koi tippani nahi karehge,magar haan aapke jaise hi humne bhi sanskrut kahe iya tha,pata nahi tha,shayad jyada marks milte hai iske liye. magar dhokha de gayi bhasha,shayad hindi hota tho jyda number aate.

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  2. भाई धर्म तो पहले ही शिकार था..अब तो बस गाया व उसके दूध की बारी है...

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  3. हमारे मित्र कहते हैं कि भाषाओं पर हमारी अच्छी पकड़ है. काश हमने अरबी सीखी होती. जब भी किसी पुराने सिक्के को मौलवी से बाँचने के लिए कहता हूँ तो झट जवाब मिलता है कि इसे अगरबत्ती दिखाया करो क्योंकि अक्सर उनमें कलमा होता है. हमारी चाहत होती थी कि वे बताएँ कि इसमे किस सुल्तान का नाम लिखा है और किस सन का है. विषयांतर हो गया.
    आपकी पोस्ट बड़ी प्यारी लगी. हमें आप पर प्यार हो आया.

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  4. भाई धर्म तो पहले ही शिकार था..अब तो बस गाया व उसके दूध की बारी है...


    ji haan baat to ulti hai...
    Kajal kumar ji ki baat se sehmat !!

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