गुरुवार, 11 जून 2009

लोक कथा के बहाने : ईश्वर नौसिखिया है या खून का प्यासा ?

मेरी स्पष्ट मान्यता है कि इंसानी सभ्यता और संस्कृति के विकास के शुरुवाती दौर में अनुभवों को लिपिबद्ध किये जाने का तंत्र विकसित नहीं हुआ था इसलिए अनुभवों से प्राप्त ज्ञान को पीढी दर पीढी हस्तांतरित करने के लिए वाचिक परम्परा का सहारा लिया गया ! यही परम्परा आगे चलकर इंसानी संस्कृति / सभ्यता और तकनीकी उन्नति का आधार बनी ! सच कहूं तो वाचिक परम्परा / लोककथायें ज्ञान को लिपि बद्ध किये जा सकने वाले कालखंड में भी उतनी ही प्रभावशील हैं जितनी कि वह पूर्व में हुआ करती थीं ! मगर इन्सान तो इन्सान है उसने अपने स्वार्थ के लिए लोककथाओं में भी 'पंक्चर जोडाई ( पैबंद टांकने ) के अलावा मनमाफिक लोककथायें गढ़ने के यत्न किये हैं जिससे लगता है कि ईश्वर या तो नौसिखिया है या कि खून का प्यासा !
अभी कल ही आदरणीय सुब्रमणियन जी का आलेख पढ़ रहा था"अम्बर किले से जुडा बंगाली समाज " ! आलेख के दो ही स्रोत हो सकते हैं एक लिपि बद्ध इतिहास और दूसरा जनश्रुतियां ! जहां तक राजा मान सिंह की जय पराजय और राज्य विस्तार का सम्बन्ध है इसका सीधा साधा सरोकार इतिहास से है ! लेकिन राजतन्त्र के पोषकों नें बड़ी ही चतुराई से इसमें वाचिक परम्परा की कड़ी ठूंस दी कि राजा की विजय को देवी का आशीर्वाद प्राप्त है और उनके द्वारा किया गया नरसंहार ( पहले युद्ध में /बाद में पराजितों के साथ ) ग़लत नहीं है ! यानि कि ईश्वर ( देवी ) को नरबलि चाहिए ! अब आप ख़ुद ही तय करें कितना मासूम ? तरीका था अपने विरोधियों को निपटाने और अपने राज्य के विस्तार तथा शासन के स्थायित्व की लालसा को पूरा करने का ! अगर गहराई से देखा जाए तो इस जनश्रुति का स्रोत ख़ुद राजा मान सिंह ही दिखाई देता है जिसे देवी व्यक्तिगत रूप से यह सब करने के निर्देश प्रदान करती है ! यहां बस्तर में भी राजा द्वारा माई दंतेश्वरी के समक्ष नरबलि चढाये जाने की कहानियां कुछ इसी तर्ज पर प्रचलित रही हैं जैसे कि राजा मान सिंह को प्राप्त ईश कृपा !
भला ईश्वर एक इन्सान को दूसरे इन्सान की बलि चढाने का निर्देश कैसे दे सकता है ? क्या ईश्वर खून का प्यासा है ? अब आप ही कहें या तो उक्त जनश्रुति /लोककथा राजतन्त्र के निज स्वार्थ के लिए 'पंक्चर जोडाई' जैसा कूट कार्य है या फ़िर वाकई में ईश्वर खून का प्यासा है !
चलिए चतुर इंसानों की चतुराई का एक और नमूना देखें जिसमे एक इंसानी समुदाय दूसरो की तुलना में स्वयं की श्रेष्ठता सिद्ध करने के लिए ईश्वर को नौसिखिया सिद्ध कर डालता है ! कई वर्षों पहले सांस्कृतिक मानव शास्त्रियों के हवाले से पढ़ी हुई एक लोककथा का संक्षिप्त किस्सा दर्ज करना चाहूंगा ! एक आदिम समुदाय (विदेशी ) कहता है कि सृष्टि की रचना के बाद ईश्वर नें मनुष्य की रचना करने के लिए आटे से तीन पुतले बनाये और पकने के लिए आग में डाल दिए ! अपनी कृति को देखने के लिए ईश्वर इतना उतावला था कि उसने जल्दबाजी में एक पुतला बाहर निकाल लिया , यह कच्चा पुतला ( ज़रा रंग मिलान कीजिये ) अंग्रेज हुए ! इसके बाद अच्छी तरह से पक कर लाल हुए पुतले को ईश्वर नें निकाला , जिससे इस समुदाय के लोग बने ! दूसरा पुतला इतना सुंदर था कि ईश्वर मुग्ध हो गया और उसे देखते हुए तीसरे पुतले को समय पर निकालना भूल गया जोकि जल गया जिससे नीग्रो बने ! अब आप सीधे सीधे कहें तो यह कथा बहुत अच्छी लगती है लेकिन गौर से देखे / पढ़े तो पाएंगे कि दो समुदायों की तुलना में अपनी श्रेष्ठता सिद्ध करने और सौन्दर्य का बखान करने के लिए इस कथानक की रचना की गई है ! तो क्या इंसानों का रचयिता ईश्वर इस कदर नौसिखिया था ? कि वो पुतलों को समय पर पका भी नहीं सका ! अब आप ही कहें ये मासूमियत है या शातिरानापन ? एक वाजिब लोककथा या पंक्चर जोड़ाई ?
जैसा कि मैंने पहले ही कहा है कि" इंसानी संस्कृति /सभ्यता और तकनीकी विकास में 'जनश्रुतियों' /लोककथाओं द्वारा सहेजे गए ज्ञान का आधारभूत योगदान है " लेकिन मेरे कथन में संशोधन ये है कि 'पंक्चर जोडाई ' को छोड़कर !
और ये भी कि मेरा ईश्वर ना तो रक्त पिपासु है और ना ही नौसिखिया !

8 टिप्‍पणियां:

  1. लोककथा नही ये तो व्यंग्य लिख डाला भाई.बधाई

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  2. सही कहा आपने हर एक का इश्वर उसी के फ़ायदे की सोचता है :)

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  3. ईश्वर है सब का अपना अपना
    या है केवल अच्छा-बुरा सपना

    हम जैसा सोचेंगे वैसा ही ईश्वर बना लेंगे।

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  4. बहुत अच्छा आलेख..आपने स्वा्र्थी आदमी की पोल खोल दी..

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  5. इन्सान प्रारम्भ से यही तो करता आया है कि जहाँ अपना कोई हित साधना हो या फिर अपनी श्रेष्टता सिद्ध करनी हो, उसी अनुरूप अपना संसार रच लेंगे, वैसा ही अपने लिए ईश्वर का रूप भी निर्मित कर लेंगे।

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  6. ईश्वर केवल एक कल्पना है, उतनी ही अविकसित जितने कि हम स्वयं हैं।
    घुघूती बासूती

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  7. अरे भैय्या इस आलेख को तो हमने अब देखा जबकि बाद वाले पर टिपिया दिया था. सौ फीसदी सही बात कही है.

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